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Thursday, August 16, 2007

प्रतियोगिता से एक कविता


हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के जुलाई अंक की आठवें स्थान की कविता 'मिट गया हूँ मैं' के रचनकार 'रविकांत पाण्डेय' ने इस प्रतियोगिता में पहली बार भाग लिया और अपनी कविता से ज़ज़ों का दिल जीत लिया। आज प्रस्तुत है उन्हीं की कविता। आशा है आप सभी को पसंद आयेगी।

रचना- मिट गया हूँ मैं

रचनाकार- रविकांत पाण्डेय, कानपुर


तुम जो आए स्वप्न-से
पग के अनेकों शूल चुनकर।
स्याह अमावस की घड़ी में
मिले विभा के फूल बनकर॥
इन रिक्त अधरों को मेरे
मधुगीत का वरदान देकर।
किया शमित चिर-तृषा को
स्नेह-सिक्त रसपान देकर।
किन्तु किस कौतुक कला से
तुम हुए दृग से अलक्षित।
सूने मन के हाट में फिर
विरह व्यथा से हो व्यथित।

तुम्हें ढूँढ़ता हूँ मैं।
तुम्हें ढूँढ़ता हूँ मैं।

मै बावरा सब जग फिरा
तुमसे मिलन की आस में।
अज्ञात था ये भेद तब
तुम ही बसे हर सांस में।
तुमसे परिचय जब हुआ
दृग ने अनोखी दृष्टि पाई।
तुम्हारी वीणा के स्वरों पर
झूमती ये सृष्टि पाई।
क्यों है ये खोने का भय
पाकर अपनी ही थाती को।
प्यासा सीप ज्यो चाहे संजोना
बूंद-बूंद जल स्वाती को।

तुम्हें देखता हूँ मैं।
तुम्हें जी रहा हूँ मैं।

हर्ष में या विसाद में
कभी छांह मे कभी धूप में।
आलोक तुम्हारा ही प्रकट
इस रूप में उस रूप में।
मिथ्या भय था खो जाने का
व्यर्थ विकल थे मेरे प्राण।
सच पूछो मेरा होना भी
तुम्हारे होने का ही प्रमाण।
अब मैं नहीं अब तुम नहीं
फिर मिलन भी कैसे कहूँ?
जब शेष नहीं कोई भेद
बोलो द्वैतमय कैसे रहूँ?

मिट गया हूँ मैं।
तुझमें खो गया हूँ मैं।


रिज़ल्ट-कार्ड

प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ९, ७॰५
औसत अंक- ८॰१६६६७
स्थान- पहला

द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
८, ७, ८॰७५, ७॰५, ६॰३३, ८॰१६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰६२४४४
स्थान- चौथा

तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
विषय पारम्परिक है। प्रतीक का अच्छा निर्वाह ।
अंक- ३॰५
स्थान- आठवाँ

पुरस्कार- सुनील डोगरा ज़ालिम की ओर से उन्हीं की पसंद की पुस्तकें।

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

विपिन चौहान "मन" का कहना है कि -

रविकांत जी..
हिन्द युग्म पर आपका स्वागत है..
आप प्रतियोगिता में शामिल हुये..बहुत बहुत आभार..
आप की रचना बहुत सुन्दर है...
और आप का स्तर समझ में आता है..
बहुत सम्भावनायें हैं आप में आशा करता हूँ कि इस बार की प्रतियोगिता में आप की बेमिसाल क्रति हमें पढने को मिलेगी..
प्रतियोगिता के परिणाम से दिल छोटा मत कीजियेगा..
बहुत प्यारी रचना है आप की..
आभार..

Anonymous का कहना है कि -

कविता शिल्प की दृष्टी से बेहद दमदार है.............
इस दृष्टी से पहले जज का निर्णय सही लगता है.........
इन्हे 8 वे नही 1ले अथवा दूसरे स्थान पर रखना चाहिए...........
शब्द चयन और भाषा का तो मै कायल हो गया.....
जैसे..
विरह-व्यथा से हो व्यथित.......
भाव भी अच्छे है,,,,,,
क्यों है ये खोने का भय
पाकर अपनी ही थाती को।
प्यासा सीप ज्यो चाहे संजोना
बूंद-बूंद जल स्वाती को।
और भी चमत्कार है,,,,,,,,,,,,,,,,अंतिम पद तो अदभुत जान पड़ा है......
तुम्हे देखता मै की पुनर्वृत्ती भी अदभुत प्रभाव छोड़ती है
पर चूनलि भाषा थोड़ी क्लिशट है सो दिल मे उतरने मे समय लगता है
और काव्य मे थोड़ी गति का अभाव है
शुभकामनाएँ

Kavi Kulwant का कहना है कि -

विपिन मन ने अच्छा लिखा है..कवि कुलवंत

शोभा का कहना है कि -

बहुत सुन्दर रचना है । यह कविता पढ़कर मुझै प्रसाद जी की कुछ पंक्तियाँ याद
आ रही हैं -----
शशि मुख पर घूँघट डाले
अंचल में दीप छिपाए
जीवन की गौधूलि में
कौतूहल से तुम आए ।
एक अच्छी अभिव्यक्ति के लिए बधाई ।

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

bahut bahut sundar likha hai....
aap ki shaili aur bhav donon hi uttam star ke hain...

piyush ke vichar
"इन्हे 8 वे नही 1ले अथवा दूसरे स्थान पर रखना चाहिए........... "
se poori tarah sahmat hoon...

likhte rahiye...
aapki kavitaon ka intazaar rahega..

गीता पंडित का कहना है कि -

रविकांत जी..

बहुत सुन्दर,
बहुत प्यारी ..
रचना.....

अच्छी अभिव्यक्ति
के लिए

बहुत-बहुत
बधाई ।


आभार..

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुन्दर रचना है ।

मै बावरा सब जग फिरा
तुमसे मिलन की आस में।
अज्ञात था ये भेद तब
तुम ही बसे हर सांस में।
तुमसे परिचय जब हुआ
दृग ने अनोखी दृष्टि पाई।

यह पंक्तियाँ बहुत सुंदर लगी किसी सूफ़ी रचना जैसी ....

anuradha srivastav का कहना है कि -

मै बावरा सब जग फिरा
तुमसे मिलन की आस में।
अज्ञात था ये भेद तब
तुम ही बसे हर सांस में।
रविकान्त जी अत्यन्त कोमल भावनाऒं के साथ अद्वैतवाद को बडी खूबसूरती से समाहित किया है ।
अब मैं नहीं अब तुम नहीं
फिर मिलन भी कैसे कहूँ?
जब शेष नहीं कोई भेद
बोलो द्वैतमय कैसे रहूँ?
बधाई

Anonymous का कहना है कि -

रविकांत जी,
आपने प्रथम बार प्रतियोगिता में भाग लिया और हमें इतनी अच्छी रचना पढ़ने को मिली..बहुत अच्छा लगा।

धन्यवाद,
तपन शर्मा

अभिषेक सागर का कहना है कि -

अच्छा लिखा है आपने।

गिरिराज जोशी का कहना है कि -

रविकांतजी,

रचना में बिम्ब बहुत ही सुन्दर है, कलात्मकता और भाव दोनों ही मुझे बेहद पसंद आये।

बधाई स्वीकार करें!!!

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इस विषय पर ऐसा कोई कवि नहीं होगा जिसने कलम न चलाई हो और वैसे भी छायावादियों कवियों आपके समान ही बहुत ही सुंदर-सुंदर छंद लिखे हैं।

आपकी कविता में बहुत सुंदर प्रवाह है। गाया जाय तो बहुत बढ़िया हो जायेगी।

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