मत तलाश दिल के सुकून को कहीं ए मन
अपने भीतर ही ज़ख़्मों को तू सीए जा
ना सूखने पाए मेरी बहती आँखो के जाम
हर पल नये दर्द से इन्हे तू लबरेज़ किए जा
कम ना हो बेदर्द सनम तेरे ज़ुल्मों का अंधेरा
तू मेरे दिल पे एक सितम और किए जा
मत डर मेरी जलती हुई आहों से तू अब ए
एक बार फिर से कोई झूठी कसम और
लिखे ना मेरे गीत अब कोई प्यार का लफ्ज़
मेरी वीरान दुनियाँ को और वीरान
नहीं हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तसल्ली से तू एक आज़माइश और किए जा !!
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27 कविताप्रेमियों का कहना है :
रंजना जी,
सुन्दर रचना के लिए बधाई।
काम ना हो बेदर्द सनम तेरे ज़ुल्मो का अंधेरा
तू मेरे दिल पे एक सितम और किए जा
इसमें ऐसा लगता है कि ’कम’ होना चाहिए ’काम’ के स्थान पर।
मत तलाश दिल के सकुन को कही ए मन
अपने भीतर ही ज़ख़्मो को तू सीए जा
नही हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तस्सली से तू एक आज़माइश और किए जा !!
ये पंक्तियाँ विशेष पसंद आईं।
शुक्रिया रवि ज़ी ..ज़ी हाँ वो कम ही था ठीक कर दिया है :)
अच्छी ग़ज़ल है,
अब ग़ज़ल कहूंगा तो राजीव जीं मीटर पकड़ कर बैठ जायेंगे....
नहीं हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से,
तसल्ली से तू एक आज़माइश और किए जा !!
ये पसंद आयी....लेकिन कसाव थोडा और होना चाहिए था पूरी कविता में.....आपसे ज़्यादा उम्मीद है..........
निखिल........
नही हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तस्सली से तू एक आज़माइश और किए जा !!
रंजना जी बहुत ही उत्कृष्ट रचना है । प्रेम संबंधित भाव प्रस्तुत करना तो कोई आपसे सीखे ।
रचना अच्छी है,भाव भी अच्छे हैं......
पर जो शुरूआत हुई है उस्से रचना के Title का कुछ संबंध नहीं लग रहा है...शुरूआत की पंन्क्तिया कुछ और होती तो रचना और सुन्दर लगती....बाद की पंन्क्तिया अच्छी है..........
वैसे भाव अच्छे हैं..........
"नहीं हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तस्सली से तू एक आज़माइश और किए जा !!"
बहुत खुब लिखा है आपने........
mujhe lagta hai kasak baki rah gayi.
बढ़िया है भाव प्रधान!! बधाई.
RANJANA JI,
APKI KALAM BAHUT ACHA LIKHTI HAI ,KUCH AISA JO MARM SAPRSHI HO , DIL KE ANDER TAK PHUCTE.
AAP MERI BADHAI SWEKAR KARE.
ARVIND
"नहीं हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तस्सली से तू एक आज़माइश और किए जा !!"
कृपया उपरोक्त लाईन में तस्सली को तसल्ली कर लें
ह्म्म्म, तसल्लीबख्श है कि इंसान हार नही मानता है।
रंजना जी!
हमेशा की तरह एक प्रेमिका के मनोभावों को पूरी शिद्दत से अभिव्यक्त करती रचना के लिये बधाई! लय में कहीं कहीं अवरोध है. कुछ और कोशिश करें तो बहुत सुंदर गज़ल बन जायेगी.
रंजना जी,
पहली दो पंक्तियों से जो शुरुआत हुई थी..उसका असर आखिरी पंक्तियों तक रहा.. और क्या कहूँ?
नही हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तस्सली से तू एक आज़माइश और किए जा !!
धन्यवाद,
तपन शर्मा
नहीं हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तसल्ली से तू एक आज़माइश और किए जा !!
वाह!बहुत खूब
रंजू जी...
गज़ल के भाव और शब्द चयन बहुत सुन्दर है...
अगर मैं आप को कोई राय दूँ तो इसे अन्यथा ना लीजियेगा..
मुझे लगता है कि कसाव और गज़ल के बहाव में कुछ एक स्थान पर थोडा सा विचार करने की आवश्यकता है..जैसे...
ना सूखने पाए मेरी बहती आँखो के जाम
हर पल नये दर्द से इन्हे तू लबरेज़ किए जा
यहाँ पर अगर आप तू को हटा दें तो शायद लय और अच्छी हो सकती है..
और एक छोटी सी कमीं मुझे महसूस हुई है वो ये है कि..
नहीं हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तसल्ली से तू एक आज़माइश और किए जा !!
यहाँ पर आप "नहीं हारी हूँ जमाने "मैं" तेरे आजमाने से...
अगर में के स्थान पर मैं हो और आप अभी को हटा दें तो गज़ल लय में शायद आ जाये...
ये मैं वो कह रहा हूँ जो मैने अनुभव किया है..
आप को मैं कोई सलाह नहीं दे सकता हूँ..क्युकि साहित्य में मैं आप का अनुज हूँ..
विचार कीजियेगा..
गज़ल पढ कर आनन्द की अनुभूति हुई है..
बहुत बहुत बधाई..
रंजना जी बहुत खूब लिखा । हम तो आपके मुरीद हो गये ।
bahut khoob ranju ji, aapki har pankti main sach main ek ajeb si kashish hai.
बहुत अच्छी गज़ल है रंजना जी।
रंजना जी
बहुत ही प्यारी कविता लिखी है । आपकी कविता तो प्रेम गंगा में
स्नान करा देती है । आनन्द आ जाता है पढ़कर । आफके मन में
मधूर भावनाएँ यूँ ही ताज़ा रहे यही शुभकामना है । एक अच्छी
रचना के लिए बधाई ।
वाह!
जो लोग ग़ज़ल को नाप-तोल कर पढ़ते है उनका तो पता नहीं, मगर मुझे आपकी इस रचना में बेहद आनन्द आया, ख़ासकर आपकी अंतिम पंक्तियाँ बेहद पसंद आयी -
नहीं हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तसल्ली से तू एक आज़माइश और किए जा !!
बधाई स्वीकार करें!
बहुत अच्छी गज़ल बन पड़ी है…
हर पंक्ति अपने आप में मुखर है
संकेत देता शब्द बहुत कुछ कह गया है…।
यह भी प्रयास बिल्कुल अलग लगा…।
सच कहते हैं सभी प्रेम के भाव को शब्दों में ढालना तो कोई आपसे सीखे | कोई और का तो पता नही पर मुझे सीखने की ज़्यादा ही आवश्यकता है |
कारण क़ि मै जब भी इस विषय पर कुछ लिखता हूँ तो बड़ा अपरिपक्व सा लगता है, आपकी रचना को पढ़कर पता चलता है क़ि वास्तव में कैसे लिखा जाना चाहिए | ग़ज़ल के शिल्प के बारे में तो ज़्यादा कुछ नही पता मुझे पर आपके भाव और उनका प्रस्तुतिकरण बड़ा मोहक है | किसी एक पंक्ति का ज़िक्र करना अन्य के साथ अन्यास हो जाएगा |
सुंदर रचना के लिए धन्यवाद ...
ivialफिर से एक सुन्दर रचना ।
घुघूती बासूती
अदभुत दर्द बरस रहा है कविता से .................शिल्प की दृष्टी से कविता अच्छी और भावो की दृष्टी से अदभुत है
शब्द च्यान भी अच्छा है पैर एक बात मुझे समझ मे नही आई की.........
पहले शेर मेय पद मे आप आशावादी लगती है तो बाक़ी के पदो मे निराशावादी............
ख़ैर ग़ज़ल ग़ज़ब की है
शुभकामनाएँ
मत डर मेरी जलती हुई आहों से तू अब ए दोस्त
एक बार फिर से कोई झूठी कसम और दिए जा
नहीं हारी हूँ ज़माने में अभी तेरे आज़माने से
तसल्ली से तू एक आज़माइश और किए जा !!
रचना पसंद आई। बधाई स्वीकारें। रंजू जी , बस एक आरजू है कि आप प्रेम से विलग किसी दूसरे विषय पर भी कुछ लिखें। कुछ और सुनना चाहता हूँ आपसे। मैंने यह बात आपसे एक बार और कही थी। बस मेरी अर्जी पर ध्यान दीजिएगा [:)]
ना सूखने पाए मेरी बहती आँखो के जाम
हर पल नये दर्द से इन्हे तू लबरेज़ किए जा
उपर्युक्त पंक्ति में नायिका के नैनों में जाम छलकने के पीछे दर्द हैं यह सच्चाई जानना सुखद रहा।
सभी शे'र प्रभावी नहीं हैं।
waah waah.....mazaa aa gaya gazal padh kar
रंजना जी,
गज़ल वास्तव में बहुत सुन्दर बन पडी है
अच्छे भाव डाले हैं आपने जो स्पर्श करते हैं
"ना सूखने पाए मेरी बहती आँखो के जाम
हर पल नये दर्द से इन्हे तू लबरेज़ किए जा"
वाह!!
बहुत खूब
सस्नेह
गौरव शुक्ल
app ki her rachna sunder hoti hai esmain sak nahi ager aap ko u r written poem i read it in when i m alone and those give me some special type of feelings i cant explan those type of feeling i want leasing ur kaita path if anywhere it is organized please give me date and time for that and
ranjana can u give me ur all rachana in my email id because i have not much time for net if yes please send me
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