प्रतियोगिता में आई कविताओं को हम एक-एक करके प्रकाशित कर रहे हैं। इसी क्रम में, आज हम डॉ॰ नरेन्द्र कुमार की ग़ज़ल लेकर आये हैं 'आँखों में हया रखना'। यह नौवें पायदान पर थी।
रचना - आँखों में हया रखना
रचनाकार- डॉ॰ नरेन्द्र कुमार, फ़रीदाबाद
आँखों में हया रखना, तौकीरे-वफ़ा* रखना
टकरायें अगर नज़रें, नज़रों को झुका रखना
हर राज़-ए-मुहब्बत को, सीने में दबा रखना
तौहीन-ए-मुहब्बत है, आपस में गिला रखना
जिस बात से मिटती हो, आपस की गलतफ़हमी
कह देना ही अच्छा है, उसे दिल में क्या रखना
जो रूठ के जाता है, मुमकिन है कि लौट आये
दिल की महफ़िल को, फूलों से सजा रखना
पत्थर भी पिघलते हैं, ज़ज़्बात की गर्मी से
इज़हार-ए-तमन्ना में, बस सब्र जरा रखना
यह मतलब परस्ती तो, हम सबको मिटा देगी
इन आग के शोलों से, दामन को बचा रखना
तूफान से बचना तो, ऐ दिलबर नहीं मुश्किल
बेरहम साहिल से, खुद को बचा रखना
* तौकीरे-वफ़ा- वफ़ा का सम्मान, वफ़ा का आदर
रिज़ल्ट कार्ड-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ८, ६
औसत अंक- ७॰३३३३
स्थान- सातवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
८॰५, ८, ८॰५, ८, ५॰३३, ७॰३३३३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰६१०५५
स्थान- पाँचवा
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
पुराने विषय पर व परम्परागत। शब्दावली में भी कोई नयापन नहीं ।
अंक- ३॰४
स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- सुनील डोगरा ज़ालिम की ओर से उन्हीं की पसंद की पुस्तकें।
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रिय नरेन्द्र जी..
हिन्द युग्म पर आप का स्वागत है..
गज़ल बहुत अच्छी है..
शब्द चयन आप की परिपक्वता का परिचय दे रहा है..
किन्तु फिर भी गज़ल प्रभावशाली नहीं रही..
भाव भी सन्तुष्टि पूर्ण हैं किन्तु...कुछ नयापन नहीं दिखाई दिया..
ऐसा लगा कि पूर्व में गज़ल सुनी हुई है..
पाठक हर रचना में कुछ नयापन चाहता है..
प्रयास कीजिये..
एक ऐसी ही गज़ल किसी शायर ने बहुत पहले लिखी थी...
होटों पे दुआ रखना..राहों पे नज़र रखना..
आ जाये कोई शायद..दरवाजा खुला रखना..
एक बूंद भी अश्कों की..दामन ना भिगो पाये..
गम मेरी अमानत है..पल्कों पे सदा सखना..
लोगों को निगाहों को पढ लेने की आदत है..
हालात की तहरीरें चेहरे से बचा रखना..
अहसास की शम्मा को इस तरह जला रखना..
अपनी भी खबर रखना..मेरा भी पता रखना..
आप को अभी बहुत दूर तक जाना है
मेरी शुभकामनायें आप के साथ हैं..
बहुत बहुत आभार..
विपिन चौहान "मन"
गज़ल मुझे कुछ खास नहीं लगी । इसे पढ़कर मुझे एक भजन याद आ रहा है।
प्रभु हमपे दया करना प्रभु हमपे कृपा करना ।
वैकुंठ तो यहीं है --------
उर्दू बहुत कुछ समझ नही आती .......पर तब भी जितनी समझ आई सुंदर है.......
शिल्प की दृष्टी से अच्छी और भाव की दृष्टी से थोड़ी कमज़ोर है..........
पर चूँकि लेखक मुझसे इतने बड़े है सो यह कहना छ्होटा मुह बड़ी बात होगी............
यह ग़ज़ल इतनी भी बुरी नही कि भजन की याद आ जाए |
कोई भी कविता भावुकता मे लिखी जाती है और अगर वो प्रेम-विषयक हो तब तो यह निश्चित ही होता है कि उसे लिखते समत कवि का ह्रदय
बहुत ही उद्वेलित रहा होगा |
मेरे साथ ऐसा कई बार होता है बल्कि कई बार नही हमेशा ही होता है कि जब मैं कुछ लिखता हूँ तब बड़ा अच्छा लगता है |पर जब कुछ दिनों बाद उसी रचना को पढ़ता हूँ तो लगता है कि क्या बकवास लिख दिया !
जब हम कविता करते हैं तो अपना सर्वश्रेष्ट देने का प्रयास करते हैं|पूरी कोशिश करते हैं कि हमारे भावो को शब्दों का उचित साथ मिले |
विपिन जी ने कहा "ऐसा लगा कि पूर्व में गज़ल सुनी हुई है.."|अब यह प्रेम विषय ही ऐसा है कि जो ना सुना हो सब कम |
पर हाँ यह बात सही है कि पाठक नयापन चाहता है और नयेपन की ख़्वाहिश इस ग़ज़ल को कमज़ोर बना देती है|
वैसे शिल्प बड़ा ही अच्छा है | हालाँकि मुझे शिल्प के बारे में ज़्यादा कुछ तो पता नही पर प्रवाह बड़ा अच्छा बन पड़ा है |
सुंदर रचना के लिए बधाई |
नरेन्द्र जी,
प्रयास सराहनीय पर भविष्य में और श्रेष्ठ रचनाओं की अपेक्षा।
bahut achhi gazal hai mitra, ise dhunon mein dhaala jaa saktaa hai...
kaha the aap ab tak........hind yugm par swaagat........
nikhil
नरेन्द्रजी,
ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत है...प्रत्येक शे'र लाज़वाब है, बधाई!!!
आपका एक शे'र बहुत पसंद आया-
तूफान से बचना तो, ऐ दिलबर नहीं मुश्किल
बेरहम साहिल से, खुद को बचा रखना।
आपमें बहुत पोटेंशियल है। आप अगली बार प्रतियोगिता में ज़रूर हिस्सा लें।
यह मतलब परस्ती तो, हम सबको मिटा देगी
इन आग के शोलों से, दामन को बचा रखना
पत्थर भी पिघलते हैं, ज़ज़्बात की गर्मी से
इज़हार-ए-तमन्ना में, बस सब्र जरा रखना
Gazal bahut hi achchi lagi magar ye dono sher kafi khoobsurat lage..
गज़ल मुझे बहुत पसन्द आई नरेन्द्र जी।
हर शेर उम्दा है।
जिस बात से मिटती हो, आपस की गलतफ़हमी
कह देना ही अच्छा है, उसे दिल में क्या रखना
पत्थर भी पिघलते हैं, ज़ज़्बात की गर्मी से
इज़हार-ए-तमन्ना में, बस सब्र जरा रखना
बहुत बड़ी बातें हैं आपके खजाने में..आगे भी पढ़ना चाहूँगा
नरेंद्र जी
गज़ल मुझे बहुत अच्छी लगी। हर शेर लाजवाब तो हैं ही, साथ ही उनकी रवानगी का कोई सानी नहीं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
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