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Friday, August 17, 2007

कुमार विश्वास- हिन्द- युग्म के अतिथि कवि


है नमन उनको

है नमन उनको की जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये


पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा
माँ वही जो दूध से इस देश की रज तोल आई
बहन जिसने सावनों मे भर लिया पतझड स्वँय ही
हाथ ना उलझ जाऐ, कलाई से जो राखी खोल लाई
बेटियाँ जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रही थी
'पिता तुम पर गर्व है ' चुपचाप जाकर बोल आईं
प्रिया जिसकी चूडियों मे सितारे से टूटतें हैं
माँग का सिंदूर देकर जो सितारें मोल लाई
है नमन उस देहरी जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये


हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिडते हैं हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको की जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कऔतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये

लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा , सिन्दूरदानों की व्यथाऒं
देशहित प्रतिबद्ध यऔवन कै सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
है नमन उनको की जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये

कंचनी तन, चन्दनी मन , आह, आँसू , प्यार ,सपने,
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

डॉ. विश्वास जी,

स्वतंत्रता दिवस की भावना के अनुकूल यह नितांत उत्कृष्ट रचना है।

कंचनी तन, चन्दनी मन , आह, आँसू , प्यार ,सपने,
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये

एक एक पंक्ति प्रेरक है, ओजस्वी है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

anuradha srivastav का कहना है कि -

विश्वास जी सम्पूर्ण और ऒजस्वी कविता । आपका लेखन हमेशा से प्रभावी रहा है ।
कंचनी तन, चन्दनी मन , आह, आँसू , प्यार ,सपने,
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है

ये पंक्तियाँ मार्मिक लगी ।

RAVI KANT का कहना है कि -

डॉ. विश्वास जी,
आपकी लेखनी ने एक बार फिर कायल कर दिया। प्राणों को स्पंदित कर देने वाली कविता है यह। आरंभ से अंत तक इसका आकर्षण बना रह्ता है।

जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है

स्तुत्य है ये भाव।

विपिन चौहान "मन" का कहना है कि -

आदर्णीय श्री कुमार विश्वास जी...
सादर प्रणाम....
मै आप की कविता पर क्या टिप्पणी कर सकता हूँ...इतना योग्य मैं अभी नहीं हुआ हूँ..
कविता पढते समय मैं उस में डूब चुका था...रोआँ रोआँ बार बार खडा हो रहा था..
रोमान्चित था कि आप की कविता पढ रहा हूँ...
मेरे जैसे भक्त के लिये आप की कविता प्रसाद से कम नहीं है..
आप की लेखनी इसी प्रकार निरन्तर उत्क्रष्ट रचनायें करती जाये...
ऐसी मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ
आप के आने से हिन्द युग्म की शोभा बहुत बढ गई है ...
आप सदा प्रसन्न रहें..
बहुत बहुत आभार

शोभा का कहना है कि -

कुमार विश्वास जी
रचना स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर आई है अतः बहुत ही प्रासंगिक है ।
हम सभी में ऐसी ही भावनाएँ होनी चाहियें । इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई

SahityaShilpi का कहना है कि -

डॉ. विश्वास जी,
आपकी कविता के विषय में यही कह सकता हूँ कि आपने इस कविता में देश के वीर सपूतों को जो श्रद्धाँजलि दी है, वो सभी भारतीयों की भावनाओं को स्वर देने जैसा ही कार्य है. और इस कार्य को आपने बहुत सुंदर और प्रभावशाली तरीके से किया है. माला में गुँथे मोतियों की तरह हर शब्द कविता की शोभा बढ़ाता जान पड़ता है. नचिकेता और भरत का ज़िक्र एक बार फिर हमें हमारी सस्कृति और इतिहास से जोड़ता है.
इस सुंदर रचना को पढ़ाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद!

Anonymous का कहना है कि -

अगर मै इस पर कोई टिप्पणी करता हूँ तो इससे बड़ा और कोई क्या दुस्साहस होगा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
छोटा मुह बड़ी बात.........
मैंने आपकी कविता पहली बार पड़ी और मै कायल हो गया...............
इतनी श्रेष्ठ रचना................
शिल्प ,बिम्ब.....ऽलन्कर भाव सबकुछ अदभुत है............
हम बच्चे सिर्फ़ आपसे सिर्फ़ सिख ही ले सकते है...........
आप की ऐसी ही प्रेरणादाइ रचनाओ का सदैव इंतज़ार रहेगा...........
और किसी पंक्ति का उल्लेख कर आपका अपमान नही करना चाहता..............
धन्यवाद

रंजू भाटिया का कहना है कि -

डॉ. विश्वास जी,इस सुंदर रचना को पढ़ाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.....

अभिषेक सागर का कहना है कि -

डा किमार विश्वास की यह लीक से हट कर कविता है। बहुत अच्छी लगी यह कविता।

गिरिराज जोशी का कहना है कि -

स्वतंत्रता दिवस की भावना के अनुकूल एक उत्कृष्ट रचना!

एक-एक पंक्ति मोती के समान है, देश के लिये ज़ान नौछावर करने वाले वीरों को समर्पित आपकी यह रचना प्रभावी है।

बहुत-बहुत बधाई!!!

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

वीर रस से भरी पारम्परिक टाइप की कविता है। इस तरह के भावों वाली कविताएँ सभी ने सुनी-पढ़ी होंगी। हमें तो कुछ नये की उम्मीद थी।

Anupama का कहना है कि -

aachi rachna prastut ki hai....desh prem ko bakhoobi darshaati hai.....Best Wishes

Anonymous का कहना है कि -

shailesh jee aapke 'hum' mei sirf aap hee shaamil hain issliye sirf apni umeedon ki baat kijiye, duniya ki umeedo ki samiksha ka contract mat lijiye, unki umeede toh upar kiye 10 comment se pata chal hee rahin hai,
maine jab bhi kumar vishwas jee ki poem post hui hai, aapke comment pade hain, aur abb jo mai keh rahi hoon, wo aapke iss baar ka nahi harr comment ka collective reply hai
hind-yugm ne dr. Vishwas ko anugrah karke ateethi banaya hai,toh aap iss ateethi shabd ka maan kijiye,aap Dr. Kumar vishwas ki kavita ki samiksha karne se pehle zara apni bhasha aur lehje ki samiksha kar lijiye, abhivyakti ki aazaadi ka matlab vinamrta khona nahi hota, pehle apni bhasha k tuk-chand, lay-taal sudhaariye usske baad dr. Vishwas ki kavita mei veer-rass dhoondiyega...

aur mujhe samajh nahi aata harr baar sirf aapko hee shikayat kyun hoti hai? aapki aadat hee shikayat karne ki hai ya aap jaan boojh k aisa karte hain??? aalochna karne ka, pratikriya dene ka tareeka seekhiye sirf kehne k liye mat kahiye...

pichli harr post per aapke likhe comments ne Dr. Vishwas k fans ko kaafi aahat kiya hai, aur kam se kam mai toh apni taraf se yahi recommend karungi ki jis manch ko ateethi aur office-employee k beech ka antar na maaloom ho, aur jo manch khud apne anugrah kaa aadar na kar sakta ho, uss manch se Dr. Vishwas bhavishya mei koi link na rakhen toh behtar hai...

Silky

Unknown का कहना है कि -

भाई शैलेश जी
आपकी प्रतिक्रिया आपके अहंकार की द्योतक है
आप उस रचना पर इतनी हल्की टिप्पणी कर रहे है ,जो कारगिल युद्घ के समय हिन्दी कि सर्वश्रेष्ठ कविता के रुप में स्वीकार की गयी थी ।
"कारगिल की हुंकार" संग्रह में श्री नरेन्द्र कोहली जी ने इस रचना पर पूरा आलेख लिखा था , ओर इसे इस विषय की सर्वश्रेष्ठ रचना बताया था ।
आपका साहित्यिक ज्ञान आपके भाषा संस्कार की तरह काफी कम है , इसलिए प्रयास करें की आकाश की ओर मुहँ करके ना वमन करें।
ओर कोई कष्ट हो तो बतायें
आप का
आभिज्ञान

Anonymous का कहना है कि -

WAH WAH
KYA DHOOYA HAI JI

BHAI ABHIGYAAN JI

ITNEY GHYAAN KA SHAILESH JI KO CHAVAYAN PRASH CHATANEYEY KEY LIYE


SHUKRIYA

YAAR KAM SEY KAM APNA AUR DR SAAB KA KAD HI DEKH LIYA HOTA HAMAREY SMIKSHAK JI NEY

SUMNESH



भाई शैलेश जी
आपकी प्रतिक्रिया आपके अहंकार की द्योतक है
आप उस रचना पर इतनी हल्की टिप्पणी कर रहे है ,जो कारगिल युद्घ के समय हिन्दी कि सर्वश्रेष्ठ कविता के रुप में स्वीकार की गयी थी ।
"कारगिल की हुंकार" संग्रह में श्री नरेन्द्र कोहली जी ने इस रचना पर पूरा आलेख लिखा था , ओर इसे इस विषय की सर्वश्रेष्ठ रचना बताया था ।
आपका साहित्यिक ज्ञान आपके भाषा संस्कार की तरह काफी कम है , इसलिए प्रयास करें की आकाश की ओर मुहँ करके ना वमन करें।
ओर कोई कष्ट हो तो बतायें
आप का
आभिज्ञान

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मेरी टिप्पणी/टिप्पणियों से डॉ॰ कुमार विश्चास जी के प्रसंशक आहत हुए हों तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।

सिल्की जी, अभिज्ञान जी और सुमनेश जी,

मुझे न डॉ॰ साहब की काव्य-प्रतिभा पर संदेह है और न ही उनके गगनचुम्बी कद पर आपत्ति।

जहाँ तक मेरी टिप्पणियों का प्रश्न है तो वो केवल कुमार विश्वास जी की कविताओं के लिए ही इस प्रकार की होती हैं, आप हिन्द-युग्म के स्थाई कवियों की कविताओं पर मेरी टिप्पणियाँ पढ़ सकते हैं, उनकी कविताओं में सम्भव है कि काव्य-रस कम हों, फ़िर भी हम उन्हें प्रोत्साहित करते हैं बल्कि कुमार विश्वास हमारे मंच के मार्गदर्शक कवि हैं। उनसे हमारी अपेक्षाएँ इतनी अधिक हैं कि हम उनकी कविताओं की केवल प्रसंशा नहीं कर सकते।

आपलोगों के दिल को ठेस पहुँची, मुझे खेद है।

Unknown का कहना है कि -

shukr hai ki aapko khed hua , aur umeed hai ki bhavishya mei aap iss prakar k khed ki gunjaaish nahi rakhenge,
aur jo baat aapne kahi hai ki aap sirf prashansa nahi kar sakte toh aapse ye umeed bhi nahi kee jarahi, aap taareef karen ya samalochna bass apni bhasha ka, apne lehje ka dhyan rakhen.
waise hamara prayas hoga ki bhavishya mei aapko khed karne ka avsar hee na mile...
Silky
Silky

Anonymous का कहना है कि -

लेखनी में दम,उत्साह,ओजस्विता सब एक साथ मिल जाए तो या बात हो. ऐसा आपने कर दिखाया है/ प्रशंसनीय

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)