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Monday, August 06, 2007

कवयित्री अनुराधा का ज़ालिम पाठक (जुलाई माह की प्रतियोगिता के परिणाम)


इस माह का पहला सोमवार बहुत देर से आया है। जब हम इंतज़ार नहीं कर पा रहे थे, तो प्रतिभागियों को क्या हाल रहा होगा, अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

शुरूआत अपनी प्रगति रिपोर्ट से की जाय। हिन्द-युग्म को जुलाई माह में कुल २०,५७४ पेज़ लोड मिले, मतलब प्रतिदिन ६६३॰६८ बार की औसत से पढ़ा गया, अर्थात आरम्भिक पाठक संख्या में ७००% से अधिक की वृद्धि दर्ज़ की गई।

इस परिणाम का प्रमुख आकर्षण यह है कि इस बार का विजेता कोई कवि नहीं बल्कि एक कवयित्री हैं। हमने हमेशा की तरह इस बार भी चार चरणों में निर्णय कराया था। पहले चरण में ३ ज़ज़, दूसरे चरण में ५ ज़ज़, तीसरे और अंतिम चरण में १-१ ज़ज़ ने कविताओं की समीक्षा की। अंकीय प्रणाली के द्वारा ज़ज़ों ने अपना-अपना मापदंड लगाकर कविता को १० में से अंक दिये। श्रेष्ठ कविता चुनने का कोई लिखित विधान नहीं है, परंतु कविता के अलग-अलग जौहरियों से परख करवाने पर यह उम्मीद कर सकते हैं कि जो कविता प्रथम है, वो हीरा है। यह स्पष्ट कर देना ठीक होगा कि हमारे ज़ज़ों को न यह पता होगा है कि फलाँ कविता किसकी है और न यह कि उनके अतिरिक्त और कौन-कौन ज़ज़ हैं।

इस बार की यूनिकवयित्री अनुराधा श्रीवास्तव (जगधारी) की कविता 'मौन' को २७ कविताओं में सर्वश्रेष्ठ चुना गया। यूनिकवयित्री ने जून माह की प्रतियोगिता में भी भाग लिया था , जहाँ इनकी कविता 'नवसंदेश' अंतिम पाँच में थी। प्रथम चरण से २७ कविताओं में से १७ कविताओं को चुनकर दूसरे चरण के ज़ज़ों के समक्ष रखा गया, जिन्होंने टॉप १० कविताएँ चुनकर तृतीय चरण के ज़ज़ को अग्रेसित किया। अंतिम चरण के ज़ज़ को कुल ६ कविताओं के साथ माथापच्ची करनी पड़ी और अंतोगत्वा उन्होंने 'मौन' पर अपनी मुहर लगाई।

आइए मिलते हैं जुलाई माह की यूनिकवयित्री और उनकी यूनिकविता से-

यूनिकवयित्री- अनुराधा श्रीवास्तव (जगधारी)

परिचय-

अनुराधा श्रीवास्तव (जगधारी)

जन्मस्थान-लखनऊ (उतरप्रदेश)

जन्मतिथि-१९-९-१९६१

शिक्षा -एम०ए,बी०एड

प्रारम्भिक शिक्षा-भीलवाड़ा (राज॰)

मिडिल से पोस्ट ग्रेज्युशन तक झालावाड़ (राज॰)

कालेज में कालेज की पत्रिका की एडीटर थीं। १९८४ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबन्ध "कविता क्या है?" पर लिखा गया लघुशोध प्रबन्ध पुस्तक रुप में प्रकाशित। विवाह के बाद सिर्फ परिवार तक सीमित। साहित्य के प्रति रुझान बचपन से ही है। माता-पिता दोनों शिक्षण क्षेत्र से, साहित्य के व्याख्याता रहे हैं। अतः पढने का माहैल शुरू से मिला। बचपन में भाई की कवितायें छुप कर पढती थीं, खुद ने कब लिखना शुरू किया पता ही नहीं चला। लेखन इनके लिए स्वानतः सुखाय ही रहा है।

चिट्ठा- अंतर्मन

पुरस्कृत कविता- मौन

मौन, तुम इतने मुखर क्यों हो?
जब-तब आ धमकते हो अतिथि की तरह
साथ चलते हो प्रारब्ध की तरह
छुये-अनछुये पहलुओं को तान देते हो संगीनों की तरह
मौन, तुम इतने मासूम क्यों हो
चुपके से डाल देते हो गलबैंया
अबोध शिशु की तरह
सराबोर कर जाते हो मन निश्छल दुलार से
मौन, तुम इतने निर्दयी क्यों हो
कभी तन खड़े होते हो बैरी बन
नाना यत्न कर
तार-तार कर जाते हो मन
मौन, तुम इतने नटखट क्यों हो
विरही पिया की तरह कान में बुदबुदा जाते हो
सिहरा जाते हो तन
मौन, तुम इतने ढोंगी क्यों हो
कभी आ जाते हो बहाने से पड़ोसन की तरह
करने इधर-उधर की
कर जाते हो कटाक्ष
फिर बन जाते हो आदर्शवादी
मौन, तुम इतने कुटिल क्यों हो
पा अकेली घेर लेते हो झंझावत की तरह
दागते हो पश्न दर पश्न
और चक्रव्यूह में उलझा जाते हो
मौन, तुम इतने प्रखर क्यों हो
मौन, तुम इतने वाचाल क्यों हो



प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ८॰५, ६
औसत अंक- ७॰५
स्थान- चौथा


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
९, ९, ८॰९, ९, ५॰३३, ७॰५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ८॰१२१६६७
स्थान- प्रथम


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
अप्रस्तुत-योजना और बिम्बविधान प्रभावशाली है। प्रस्तुतीकरण में नवीनता है।
अंक- ८॰५
स्थान- प्रथम


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
“मौन” प्रभावित करने वाली रचना है। कवि की भावों और शब्दों पर गहरी पकड़ है। बिम्ब इतने सुन्दर और सटीक हैं कि कविता जहाँ जहाँ प्रश्नवाचक हुई है, चमत्कार उत्पन्न हो गया है। मौन तुम मुखर क्यों हो? मासूम क्यों हो? निर्दयी क्यों हो? नटखट क्यों हो? ढोंगी क्यों हो? कुटिल क्यों हो? प्रखर क्यों हो? वाचाल क्यों हो? मौन से किये गये हर प्रश्न कविता को गहरे से गहरा करते गये हैं। एक आदर्श नयी कविता।

कला पक्ष: ७॰५/१०
भाव पक्ष: ८॰५/10
कुल योग: १६/२०


पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने जुलाई माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम और।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिकवयित्री अनुराधा श्रीवास्तव (जगधारी) तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।


पिछले दो महिनों से सुधी पाठकों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। अब कविता में छोटी-छोटी टिप्पणियों का ज़माना गया। अब तो बकायदा समीक्षा होती है। कविताएँ चर्चाओं का माध्यम बनी हैं। फ़िर चाहे कुमार आशीष की कविता 'तुमसे दूर होना कि जैसे' की मौलिकता को लेकर उठा सवाल हो या राजीव रंजन प्रसाद की कविता 'आशावादिता' पर उठे व्याकरण का उल्लंघन का मुद्दा। गौरव सोलंकी की क्षणिकाएँ भगवान/ईश्वर के अस्तित्व/कल्पना पर चर्चा का हेतु बनी हैं। सारी टिप्पणियों को पढ़ने और समझने में भी घण्टों लग सकते हैं।

सुनील डोगरा 'ज़ालिम' टिप्पणियों की संख्या में जून माह की भाँति इस माह भी अव्वल हैं और चूँकि उनकी टिप्पणियों की संख्या के आस-पास कोई नहीं है, इसलिए वो हमारे निर्विवाद यूनिपाठक हैं। हिन्द-युग्म की कविताओं को पढ़ने और समझने में वो काफ़ी वक़्त देते हैं। एक तरह से पाठक ही हिन्द-युग्म की रीढ़ हैं।

यूनिपाठक- सुनील डोगरा 'ज़ालिम'

परिचय-
इनका जन्म २२ अगस्त १९८७ को हुआ। जिस समय इनका जन्म हुआ, उस समय इनके बापू मृत्युशय्या पर पड़े थे, पर ईश्वर ने दयालुता दिखाई और बापू मौत को ठेंगा दिखाकर लौट आए और इनके घरवालों ने इनका नाम रखा 'लक्की' ।

इनके कुटुम्ब में कन्याओं को बड़ा स्नेह दिया जाता रहा है। उदाहरण के लिए इनकी पिताजी की सात बहनें हैं। परन्तु ये संयुक्त परिवार के लगातार पांचवें पुत्र थे और घरवालों को लड़की की चाहत थी। अतः घर में कन्या न होने के कारण आरम्भ के वर्षों में इनका पालन-पोषण कन्या की तरह किया गया। जैसे वे इनके बालों की बड़ी-बड़ी दो चोटियाँ बनाते थे, फ्रॉक पहनाते थे, और भी न जाने क्या क्या।

इसी बीच सरस्वती विघा मन्दिर नाम के विघालय में इनका दाखिल करवाया गया। एक बदले नाम के साथ। इस बार नाम था सुनील डोगरा। यहीं पर ये रामेश्वर नाम के मित्र के प्रभाव में आकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य बने। परन्तु जल्द ही आभास हुआ कि यह स्थान इनकी विचारधारा के अनुसार नहीं है अतः उसे शीघ्र ही त्याग दिया। परन्तु इससे राजनीति में रुचि प्रगाढ़ हुई। दिबांग जी को देखते हुए पत्रकार बनने का निश्चय किया तथा उन्हें गुरू रूप में स्वीकार किया। इसी बीच राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक 'पंजाब केसरी' के लिए साप्ताहिक राजनैतिक लेख लिखने लगे। इनके लेख प्रति सोमवार को 'डोगरा इन एक्शन' शीर्षक से प्रकाशित होते थे।

विज्ञान विषय से उच्च माध्यमिक कक्षा उर्तीण करने के बाद दिल्ली के एनआरएआई स्कूल आफ मॉस कम्युनिकेशन में पत्रकारिता में स्नातक करने हेतु प्रवेश लिया। अब दिल्ली में किराये के घर में रह कर पढाई कर रहे हैं। दिल्ली आने से पहले सोचे थे कि वहां ऐश करेंगे। परन्तु यहां आकर सुधर गये हैं। गाधींवादी हो गये हैं।

ब्लॉग- दरबार-ए-ज़ालिम



पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिपाठक सुनील डोगरा 'ज़ालिम' तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।


जैसाकि हमने बताया कि पाठकों के बीच काफ़ी घमासान रहा। पीयूष पण्डया, शोभा महेन्द्रू, तपन शर्मा ने कविताओं को पढ़ा ही नहीं बल्कि उनकी समीक्षा भी की।

इन तीनों के बीच पीयूष पण्डया ने टिप्पणियों की संख्या में बाजी मात ली और जिस प्रकार से इन्होंने अगस्त माह की कविताओं पर कड़ी निगाह रखनी शुरू की है, अगस्त माह के यूनिपाठक यही लगते हैं। जुलाई माह के दूसरे नं॰ के पाठक यहीं हैं।



पुरस्कार- डॉ॰ कुमार विश्वास की ओर से 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति और कवि कुलवंत सिंह की ओर से 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।


तपन शर्मा जी हिन्द-युग्म की मदद करने में हमेशा आगे रहते हैं। पढ़ते तो हैं ही, समय-समय पर हमें सलाह भी देते रहते हैं। तपन जी हैं तीसरे स्थान के पाठक। इन्हें कवि कुलवंत की ओर से उन्हीं की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेजी जाती है।

शोभा महेन्द्रू जी के मन में जो आता है, टिप्पणी कर देती हैं, ऐसा उनका कहना है। उन्होंने पढ़ा खूब है लेकिन कमेंट कम किया है। प्रमाण के आधार पर इन्हें हमने पाठक संख्या ४ चुना है। इन्हें भी कवि कुलवंत की ओर से उन्हीं की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेजी जाती है।

इसके अतिरिक्त परमजीत बाली, अनुराधा श्रीवास्तव, अनिल आर्या, बसंत आर्या आदि ने हमें बहुत पढ़ा। कभी-कभार कवि कुलवंत सिंह भी कमेंट करते दिखाई देते हैं। अगस्त माग से कुछ पाठक जैसे गीता पंडित, रविकांत पाण्डेय सक्रिय हो गये हैं यह हमारे लिए खुशी की बात है। आशा है कि पीयूष जी, शोभा जी, तपन जी, परमजीत जी, अनिल आर्या जी, बसंत आर्या जी, कवि कुलवंत सिंह, गीता पंडित जी, रविकांत पाण्डेय जी आदि में से ही कोई यूनिपाठक होगा।

फ़िर से कविताओं की ओर बढ़ते हैं।

पिछली बार छठवें/सातवें स्थान की कविता 'अब भी अक्सर' के रचयिता विपिन चौहान 'मन' की कविता 'गुजरी सारी रात प्यार में' इस बार दूसरे स्थान पर है।

कविता- गुजरी सारी रात प्यार में

कवयिता- विपिन चौहान 'मन'


गुजरी सारी रात प्यार में..
मदमाती निश्चल काया ने
जब अपना सिर रखा हृदय पर
अधिक गर्व हो आया मुझको
उस व्याकुलता पूर्ण समय पर
कौन जीव जीवित रख पाता
खुद को ऐसे प्रेम प्रणय में
लौकिक सुख था, छलक उठा
तभी अचानक अश्रुधार में
गुजरी सारी रात प्यार में....

पल-पल मेरी सजग चेतना
हृदय खींचता ही जाता था
अब न तनिक भी देर रुको
यूँ मौन चीखता ही जाता था
पल-पल बढ़ती व्याकुलता और
समय बीतता ही जाता था
कदम बढ़ा कर जाने कैसे
रुक-रुक जाता बार-बार मैं..
गुजरी सारी रात प्यार में..

मेरा मुझसे निबल नियंत्रण
आज हटा ही जाता था
रक्त दौड़ता द्रुतगति से और
हृदय फटा ही जाता था
विस्मय था कि उग्र चेतना
लुप सी होने वाली थी
दो भागों में स्वयं कदाचित
आज बँटा ही जाता था
"मन" को पागल हो जाना था
उर मे फैले हाहाकार में
गुजरी सारी रात प्यार में...

तभी फैलने लगी सूर्य की
किरणें मेरे आँगन में
और चन्द्रमा अभी तलक
था सोया मेरे आलिंगन में
ऐसे क्षण तो कभी-कभी
ही आते हैं इस जीवन में
प्रेम साथ हो और कटे
रैना सारी खुले नयन में
हार-जीत की बातें करने से अब कोई लाभ नहीं
कभी-कभी छुप ही जाती है
जीवन भर की जीत हार में
गुजरी सारी रात प्यार में....
गुजरी सारी रात प्यार में....



प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ८, ४
औसत अंक- ६॰६६७
स्थान- तेरहवाँ


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
७॰५, ८॰५, ७॰७५, ८॰२५, ६॰६७, ६॰६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰५५६१११
स्थान- छठवाँ


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
संयोग श्रृंगार का परंपरागत वर्णन है। विवरणात्मकता है।
अंक- ५
स्थान- चौथा


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
“गुजरी सारी रात प्यार में” नितांत उत्कृष्ट रचना है। शिल्प कसा हुआ है। गीत में कुछ छुट-पुट स्थानों पर अवरोध अवश्य हैं किंतु संपूर्णता में प्रवाह है। भाव सामान्य हैं किंतु जिन शब्दों में बाँध कर कवि ने प्रस्तुत किये हैं वह सराहनीय हैं। कविता का यदि यह अंत न होता तो यह एक सामान्य रचना होती-

“कभी कभी छुप ही जाती है
जीवन भर की जीत हार में”

कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ७/१०
कुल योग: १४/२०


पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें। कुमार विश्वास की ओर से 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।


तीसरे स्थान की कविता 'बोलो बंधु अब किस ठाँव' के रचनाकार ऐसे प्रतिभागी हैं जो हमारी प्रतियोगिता में लगातार भाग लेते रहे हैं। ऐसे लोग कम ही होते हैं , बहुत से कवियों ने १ बार, २ बार भाग लेकर छोड़ दिया, मगर श्रीकांत मिश्र 'कांत' लगातार हमारा प्रोत्साहन कर रहे हैं।

कविता- बोलो बंधु अब किस ठाँव

कवयिता- श्रीकांत मिश्र 'कांत', चंडीगढ़


सच बोलना भी है यहां अपराध
बोलो बन्धु अब किस ठांव
सत्य का सम्मान बदला
बदले हैं सभी अब माप
है तिरोहित स्वयं ही नैतिक कहानी
और सब कुछ खो गया है तिमिर में
हैं थक चुके अब पांव
बोलो बन्धु अब किस ठांव
अन्याय शोषण कूट के
हैं महानद घनघोर
मानव बने दानव यहां
फैले हुये चहुंओर
सौम्यता की ओट में
छलना चले हर दांव
बोलो बन्धु अब किस ठांव
एक छोटी सी हरी सी दूब में
वो मेरी पगडण्डी कब की खो चुकी
जिस जगह की प्रकृति मानव मीत थी
खो गये वह गांव
बोलो बन्धु अब किस ठांव
ग्रहण भय से सूर्य छिपता
हाय यह कैसी बिडम्बन
बन्द होठों में छिपा है
शोषितों का करूण क्रन्दन
अन्याय शोषण कूट का ये गरल रस है
कवि लगा जीवन दाँव
बोलो बन्धु अब किस ठांव



प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰५, ८, ७
औसत अंक- ७॰५
स्थान- चौथा


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
७, ८॰७५, ७॰७, ७॰०५, ३॰६७, ७॰५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९४५
स्थान- दसवाँ


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
सामाजिक यथार्थ की प्रस्तुति अच्छी बन पड़ी है। निराला की प्रसिद्ध कविता "बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु .." का प्रभाव शीर्षपंक्ति पर है। शब्दचयन विषयानुकूल है।
अंक- ६॰५
स्थान- तीसरा


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
रचना सराहनीय है। “बोलो बंधु अब किस ठांव” एक गंभीर प्रश्न है और रचना अपनी संपूर्णता में निराशा का दर्शन समेटे है। व्यवस्था के खिलाफ कवि का आक्रोश नहीं दिखता। राहत की बात है कि अंतत: कवि समाधान देता है:-

“कवि लगा जीवन दाँव
बोलो बंधु अब किस ठाँव..”

कला पक्ष: ६॰५/१०
भाव पक्ष: ७/१०
कुल योग: १३॰५/२०


पुरस्कार- एक बार सृजनगाथा की तरफ़ से विजेताओं को भेजने के लिए हमें मिलीं पुस्तकें उन्हें भेजी जा चुकी हैं। वहीं पुस्तकें फ़िर न जायें इसलिए हिन्द-युग्म रु ३०० की पुस्तकें उन्हें प्रेषित कर रहा है।


चतुर्थ स्थान की कविता 'परछाइयों की भीड़ से' के रचयिता डॉ॰ शैलेन्द्र कुमार सक्सेना 'शैल' बिलकुल नये प्रतिभागी हैं। इनकी कविता को सभी ज़ज़ों ने खूब पसंद किया है।

कविता- परछाइयों की भीड़ से

कवयिता-
डॉ॰ शैलेन्द्र कुमार सक्सेना, नई दिल्ली

परछाइयों के चेहरे पर भाव नहीं होते
हँसते-रोते
कहकहा लगाते, चिल्लाते
चेहरे एक से लगते.
परछाइयों को गिरने का भय नहीं होता
और कोई कर्म
उनकी दृष्टि में महान नहीं होता
जो उन्हें उच्चतम पर शोभित करे
उनका स्थान धरा है
नियति धरा है,
परिणति धरा है
कुछ तो ऐसा नहीं है
जो उन्हें अपनी ओर मोहित करे
उनकी ऊँचाइयां मिथ्याभास हैं
अस्तित्व उनका है तब तक
जब तक नभ में सूर्य का प्रकाश है
अंततः उन्हें तम में
विलीन हो जाना है
निरुद्देश्य लगता जीवन उन्हें
इस जगत से उन्हें कुछ नहीं पाना है
पर वे ऊपर नहीं देखते
अन्यथा विस्तीर्ण जगत में फैले तारे
उनका आदर्श बन सकते थे
सूर्य पर निर्भर नहीं पर
उसका पूरक सहर्ष बन सकते थे
मैं परछाइयों की भीड़ से घिरा
आदर्श के प्रतिमानों की
व्याख्या करता हूँ
इस आस में
जग आलोकित हो उठेगा
तारा बन चुकी किसी
परछाई के प्रकाश में।



प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰५, ८, ८॰५
औसत अंक- ८
स्थान- तीसरा


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-
८, ७॰७५, ८॰९, ७॰७५, ६॰३३, ८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰७८८३३
स्थान- दूसरा


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता प्रतीकात्मक है। प्रतीक का निर्वाह आरंभ से अन्त तक हुआ है। वैचारिक दृष्टि से सुलझी है। शब्दावली अच्छी है। प्रतीक संशलिष्ट है। बधाई।
अंक- ७॰७
स्थान- दूसरा


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता स्तरीय है किंतु शिल्प को अभी कसे जाने की आवश्यकता है। रचना में बिम्ब कई स्थानों पर चित्र खींच पाने में सफल नहीं हुए हैं। कविता के अंत में कथ्य जितना गंभीर है उतना ही जटिल उसका प्रस्तुतिकरण बना दिया गया है।

कला पक्ष: ६॰५/१०
भाव पक्ष: ६॰५/१०
कुल योग: १३/२०


पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।



अब बात करते हैं टॉप १० में आईं अन्य छः कविताओं के रचनाकारों की जिनको सुनील डोगरा ज़ालिम अपनी पसंद की पुस्तकें प्रेषित करेंगे। निम्न ६ कविओं की कविताएँ हिन्द-युग्म पर अगस्त महीने के किसी भी वार को (सोमवार छोड़कर) एक-एक करके प्रकाशित होंगी-

सजीव सारथी
संतोष कुमार
पीयूष पण्डया
रविकांत पाण्डेय
डॉं॰ नरेन्द्र कुमार
तपन शर्मा


इनके अतिरिक्त निम्न लोगों ने प्रतियोगिता में भाग लेकर हमारा प्रोत्साहन किया

दिव्या श्रीवास्तव
योगेश कुमार
हरिहर झा
विजय दवे
रामजी गिरि
संजीव तिवारी
पूनम अग्रवाल
गिरिश बिल्लोर 'मुकुल'
अभिव्यंजना अग्रवाल
शोभा महेन्द्रू
मुकेश जैन
कुमार आशीष
आर्य मनु
पूनम दूबे
नीरा राजपाल
अभिजीत शुक्ला
विवेक कुमार मिश्र


नोट- कृपया उपर्युक्त प्रतिभागियों से अनुरोध है कि ३१ अगस्त तक अपनी कविताएँ कहीं न प्रकाशित करें क्योंकि हम आने वाले दिनों में टॉप १० के अलावा भी कुछ कविताएँ प्रकाशित कर सकते हैं।

हम आशा करते हैं कि सभी प्रतिभागी परिणाम को सकारात्मक लेंगे। हम निवेदन करते हैं कि आप इस प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें और हमारे प्रयास को सफल बनायें। हमारा उद्देश्य देवनागरी प्रयोग को प्रोत्साहित करना है और इसी बहाने हम उत्कृष्ट कविताओं की भी खोज कर लेते हैं।

अगस्त माह की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्‌घोषणा यहाँ हो चुकी है। कृपया देखें और भाग लें।

सभी विजेताओं को बधाइयाँ व सभी प्रतिभागियों को अगली प्रतियोगिता में सफलता की शुभकामनाएँ।

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32 कविताप्रेमियों का कहना है :

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

मौन, तुम इतने मुखर क्यों हो?
छुये-अनछुये पहलुओं को तान देते हो संगीनों की तरह.. अनुराधा जी की पंक्तियों में जो भोलापन है वह मन को छू गया। बधाई स्‍वीकारें।
विपिन चौहान 'मन' जी के ये पंक्तियां..
तभी फैलने लगी सूर्य की
किरणें मेरे आँगन में
और चन्द्रमा अभी तलक
था सोया मेरे आलिंगन में
ऐसे क्षण तो कभी-कभी
ही आते हैं इस जीवन में
प्रेम साथ हो और कटे
रैना सारी खुले नयन में...मन मुदित कर रही हैं।
श्रीकांत मिश्र 'कांत', चंडीगढ़ की की पंक्तियां..
कवि लगा जीवन दाँव.. जैसे बोल रही हों।
डॉ॰ शैलेन्द्र कुमार सक्सेना, नई दिल्ली की इन पंक्तियों...
मैं परछाइयों की भीड़ से घिरा
आदर्श के प्रतिमानों की
व्याख्या करता हूँ
इस आस में
जग आलोकित हो उठेगा
तारा बन चुकी किसी
परछाई के प्रकाश में।
में सौजन्‍य है.. किन्‍तु, यह शिकायत कैसी..
पर वे ऊपर नहीं देखते
अन्यथा विस्तीर्ण जगत में फैले तारे
उनका आदर्श बन सकते थे
सूर्य पर निर्भर नहीं पर
उसका पूरक सहर्ष बन सकते थे
सुनील डोगरा 'ज़ालिम' जी आपको यूनिपाठक बनने पर समस्‍त विजेता कवियों सहित बधाई।

Kavi Kulwant का कहना है कि -

सभी प्रतिभागियों एवं इस माह के विजेताओं अनुराधा जगधारी एवं सुनील डोगरा को मेरी हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं...कवि कुलवंत सिंह..

Anonymous का कहना है कि -

"मौन" की बहुत सुंदर व्याख्या कर डाली है अनुराधा जी आपने.. अलग-अलग परिस्थितियों में मौन के अलग रूप हैं.. हर परिस्थिति से परिचित कराती है आपकी कविता।
शैलेंद्र कुमार जी की परछाइयों पर लिखी हुई ये पंक्तियाँ काफ़ी पसंद आई..
"परछाइयों को गिरने का भय नहीं होता
और कोई कर्म
उनकी दृष्टि में महान नहीं होता"
सुनील जी को मुबारकबाद के साथ ही धन्यवाद भी देना चाहूँगा, जो आगे बढ़कर पुस्तक वितरण में सहयोग दिया है।
बाकि सभी प्रतियोगियों को भी ढेरों शुभकामनायें...
पिछले दो बार यूनिकवि, निखिल जी और विपुल जी, दोनों के ही नाम इस बार की प्रतियोगिता में नहीं थे। मुझे उम्मीद है कि इस बार उनकी कविता पढ़ने को ज़रूर मिलेगी।
आशा है श्रीकांत मिश्र जी की तरह ही सभी यूनिकवि और पुरस्कृत कवि लगातार अपनी अच्छी कवितायें हिंद युग्म पर भेजते रहेंगे। पाठक आप लोगों से यही उम्मीद रखते हैं।

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

विजेताओं एवं प्रतिभागियों को हार्दिक बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

इस माह के विजेताओं अनुराधा जगधारी एवं सुनील डोगरा को मेरी हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं.

मौन, तुम इतने मुखर क्यों हो?....बहुत ही सुंदर लगी यह रचना ...

सभी प्रतिभागियों को बधाई।

गरिमा का कहना है कि -

विजेताओं एवं प्रतिभागियों को मेरी तरफ से हार्दिक बधाई :)

Anita kumar का कहना है कि -

इस माह के सभी विजेताओं को मेरी तरफ से बधाई.
मौन सीधे दिल को छूती है और मौन रह मतमस्तक रहने को बाध्य करती है. कवियत्री अनुराधा जी को मेरा सलाम

अनिता कुमार

विपिन चौहान "मन" का कहना है कि -

अनुराधा जी को मेरी ओर से बहुत बहुत बधाई..
रचना बहुत ही सुन्दर है...
और सुनील जी को यूनिपाठक बनने पर भी बहुत बहुत बधाई...
बहुत खुसी की बात है की हिन्द युग्म निरन्तर सफलता के मार्ग पर अग्रसर है..
हिन्द युग्म के इस सराहनीय प्रयास को मेरा नमन है..
विपिन चौहान "मन"

शोभा का कहना है कि -

हिन्द युग्म प्रतियोगिता के सभी विजेताओं को मेरी हार्दिक बधाई ।
अनुराधा जी की मौन कविता बहुत कुछ कहती है । इसमें अनेक
प्रश्न उठाए गए हैं पर उत्तर कैसे मिलेंगें ? मौन रहने वाला इन प्रश्नों
का उत्तर दे देगा तो मौन कैसे कहलाएगा ? खैर अच्छा प्रयोग है ।
विपिन चौहान जी की कविता गुज़री सारी रात प्यार में मुझे सबसे
अधिक पसन्द आई । प्रणय की इतनी सुन्दर तसवीर उतारने के लिए
कवि को बहुत- बहुत बधाई ।
मि़‌श्र जी की कविता बोलो बन्धु यथार्थ के बहुत करीब है । आपने बहुत
ही प्रासंगिक विषयों को उठाया है । क्या बोलें बन्धु ? आज की स्थिति सचमुच
चिन्ता जनक है । कोई नहीं बोलता । कवि ने मानस को झकझोरा है ।
शैलेन्द्र जी की कविता- परछाइयों की भीड़ से में कवि ने अच्छा लिखा है ।
परछाइयों के चेहरे पर भाव नहीं होते । हँसते- रोते कहकहा लगाते वे एक सी
लगती हैं । पंक्तियाँ अच्छी लगी। किन्तु बन्धु मुझे समझ नहीं आया कि आप
परछाइयों से इतने प्रभावित क्यों हैं ?

Alok Shankar का कहना है कि -

sabhi vijetaon aur pratibhagiyon ko badhaai

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

अनुराधा जी और ज़ालिम जी को मेरी तरफ से बहुत बधाई।
अनुराधा जी, आप सचमुच प्रथम पुरस्कार की हक़दार हैं। बहुत अनूठी और सम्पूर्ण कविता है आपकी। आपके आने से हिन्द-युग्म का काव्य बहुत समृद्ध होने की आशा है।
शेष प्रतिभागियों को भी बधाई तथा मैं आशा करता हूँ कि सब इस माह की प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रतियोगिता को और स्तरीय तथा मुश्किल बनाएँगे।

अनुनाद सिंह का कहना है कि -

वाह! सचमुच हिन्दी कविताओं का स्तर उच्च से उच्चतर होता जा रहा है। इसके लिये हिन्द-युग्म के संकल्पनाकार और उसके कर्ता-धर्ता बधाई के पात्र हैं।

सभी विजाताओं को बधाई तथा प्रतिभागियों को सफलता के लिये शुभकामनायें!

Nikhil का कहना है कि -

अनुराधा जी को पहली महिला युनिकवि बनने पर हार्दिक बधाई....क्या बात है हिंद युग्म भी देश की राह पर चल रहा है.... मौन पहले भी लिखा गया है.....मुझे भी ऐसे विषय पसंद हैं...मगर फिर भी आप कि कविता में नयापन तो है ही.....बहरहाल, विपिन की कविता भी कहीँ से कमतर नही थी...अनुराधाजी ने मौन के आयाम दर्शाए तो विपिन ने प्रेम के सबसे एकांत क्षणों का खूबसूरत खींचा...............ये देखिए..........
मदमाती निश्चल काया ने
जब अपना सिर रखा हृदय पर
अधिक गर्व हो आया मुझको
उस व्याकुलता पूर्ण समय पर
कौन जीव जीवित रख पाता
खुद को ऐसे प्रेम प्रणय में
लौकिक सुख था, छलक उठा
तभी अचानक अश्रुधार में
गुजरी सारी रात प्यार में....

वाह...........

सबसे ज़्यादा बधाई सुनील डोगरा जीं को.....लगातार हिंद युग्म को अपनी सेवाएँ देना बड़ा काम है.....हम सब उनके शुक्रगुजार हैं....आप तो कब से हमारे युनी पाठक हैं, ये पुरस्कार तो महज एक बहाना है.....

डाक्टर शैलेंद्र जीं कि कविता भी बेहद अच्छी है...परछाई जैसे विषय पर इतना सूक्ष्म लिख पाना आसान नही होता...कवि पहले कुछ स्थितियाँ खुद जीता है, फिर कविता जाती हैं.............शैलेंद्र कि कविता जीं हुई लगती है...आपका स्थान चौथे से कहीँ आगे भी है.....प्रयत्न जारी रखें..........

निखिल

शोभा का कहना है कि -

शैलेश जी ,
मेरे मन में जो आता है टिप्पणी कर देती हूँ का आपने क्या अर्थ
लिया मुझे समझ में नहीं आया । और यदि आप जो कह रहे हैं वही अर्थ आप
समझे हैं तो आपको पुरूस्कार देने के बारे में पुनः विचार करना चाहिए ।
जो मन में आता है से मेरा तात्पर्य था जो मुझे सही लगता है तथा जो उस समय
मेरी प्रतिक्रिया होती है ।

विश्व दीपक का कहना है कि -

सर्वप्रथम सारे प्रतिभागियों को शुभकामनाएँ । अनुराधा जी और सुनील जी तो बधाई के पात्र हैं हीं लेकिन हम बाकी लोगों को भी नहीं भूल सकते हैं। उन सारे लोगों के सहयोग के कारण हीं हिन्द-युग्म अपने लक्ष्य की ओर बढने में सफल हो रहा है।
हिन्द-युग्म के लिए सबसे सुखद बात यह है कि इस बार यूनिकवयित्री ने शीर्षपद प्राप्त किया है। इसके लिए मैं अनुराधा जी के हौसले को धन्यवाद देता हूँ। सुनील जी आप भी हिन्द-युग्म पर इसी तरह अपना स्नेह बनाए रखें।
एक बार फिर से सारे लोगों को बधाई।

विपुल का कहना है कि -

अनुराधा जी को बहुत बहुत बधाई ! आपकी कविता सचमुच दिल को छू गयी ....
मौन, तुम इतने ढोंगी क्यों हो
कभी आ जाते हो बहाने से पड़ोसन की तरह
करने इधर-उधर की
कर जाते हो कटाक्ष
फिर बन जाते हो आदर्शवादी
मौन, तुम इतने कुटिल क्यों हो
पा अकेली घेर लेते हो झंझावत की तरह
दागते हो पश्न दर पश्न
और चक्रव्यूह में उलझा जाते हो
मौन, तुम इतने प्रखर क्यों हो
मौन, तुम इतने वाचाल क्यों हो

इतनी मर्म स्पर्शी कविता कॅया आस्वादन करने के लिए शुक्रिया,.........
वैसे विपिन जी की कविता भी कुछ कम नही थी विशेषकर यह पंक्तियाँ पसंद आई....
और चन्द्रमा अभी तलक
था सोया मेरे आलिंगन में
ऐसे क्षण तो कभी-कभी
ही आते हैं इस जीवन में
प्रेम साथ हो और कटे
रैना सारी खुले नयन में
हार-जीत की बातें करने से अब कोई लाभ नहीं
कभी-कभी छुप ही जाती है
जीवन भर की जीत हार में
गुजरी सारी रात प्यार में....
गुजरी सारी रात प्यार में....

श्रीकांत जी और शैलेंद्र जी की रचना भी प्रभावित करतीं है |
सभी विजेताओं को बहुत बहुत बधाई........
ज़ालिम जी के बारे मैं क्या कहूँ ...उनकी टिप्पणियाँ ही उनकी साहित्यिक समझ को पारिलक्षित करती हैं|
पाठक कवि के लिए उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जीतने भक्त के लिए भगवान...और इस मामले मैं पीयूष जी ने भी हमारा बहुत साथ दिया है
सुनील जी ,पीयूष जी, शोभा जी तपन जी को भी बहुत बहुत धन्यवाद..

Tushar Joshi का कहना है कि -

विजेता मेरी बधाईयाँ स्वीकारें। मौन बहोत पसंद आई।

RAVI KANT का कहना है कि -

सर्वप्रथम अनुराधाजी एवं सुनीलजी को हार्दिक शुभकामनाएँ।स्तरीय रचनाओं को पढ़्कर मन आह्लादित हो गया।अनुराधाजी ने मन के विभिन्न पहलुओं को जिस बारीकि से छुआ है वह प्रसन्श्नीय है।

मौन, तुम इतने ढोंगी क्यों हो
कभी आ जाते हो बहाने से पड़ोसन की तरह
करने इधर-उधर की
कर जाते हो कटाक्ष
फिर बन जाते हो आदर्शवादी

ये पंक्तियाँ काफ़ी अच्छी लगीं।
कविता के प्रारंभ में "मौन, तुम इतने मुखर क्यों हो?" और अंत में "मौन, तुम इतने वाचाल क्यों हो"पुनरूक्ति जैसा लगता है।
विपिनजी ने शृंगार के संयोग पक्ष का सुंदर वर्णन किया है। कितना सही कहा है कवि ने-

हार-जीत की बातें करने से अब कोई लाभ नहीं
कभी-कभी छुप ही जाती है
जीवन भर की जीत हार में
गुजरी सारी रात प्यार में
गुजरी सारी रात प्यार में

श्रीकांत मिश्र जी की कविता ‘बोलो बंधु अब किस ठाँव‘समाज को आईना दिखाती हुई प्रतीत होती है। शैलेन्द्रजी की पंक्तियाँ-मैं परछाइयों की भीड़ से घिरा
आदर्श के प्रतिमानों की
व्याख्या करता हूँ
इस आस में
जग आलोकित हो उठेगा
तारा बन चुकी किसी
परछाई के प्रकाश में विचारोत्तेजक हैं।

SahityaShilpi का कहना है कि -

विजेताओं को हार्दिक बधाई एवं अन्य प्रतिभागियों को अगली बार के लिये शुभकामनायें!

गीता पंडित का कहना है कि -

सभी .....
बहुत सुंदर लगी ...


सभी विजेताओं
एवं प्रतिभागियों को
हार्दिक
बधाई

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अनुराधा जी,

हिन्द-युग्म की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है। हम बहुत खुशनसीब है कि हमें आपकी तरह का शब्द-शिल्पकार मिला। निश्चित रूप से आने वाले दिनों में हिन्द-युग्म की सक्रियता और स्तर दोनों बढ़ने वाले हैं। मौन का मानवीकरण वो भी इतनी विविधता के साथ करके आपने हमें अगली कविता का इंतज़ार दे दिया है।

हमेशा ही हमारे ज़ज़ों को सर्वश्रेष्ठ कविता चुनने में दुविधा होती है। बाकी की तीनों कविताएँ कमतर नहीं है। विपिन जी कविताओं का स्तर हम पिछली प्रतियोगिता और इस बार के काव्य-पल्लवन में देख चुके हैं। श्रीकांत मिश्र 'कांत' के लिए जितना कहा जाय, उतना कम होगा। शैलेन्द्र जी की प्यास शीर्षक से कविता भी मैंने काव्य-पल्लवन में पढ़ी थी, लाजवाब थी।

पाठकों में बढ़ रहा घमासान हमारे लिए गौरव की बात है। ज़ालिम ने जिस तरह हमें सराहा, पुस्तक-वितरण में हमारा सहयोग दिया, हम उनके हृदय से आभारी हैं।

शोभा जी,

यहाँ जो आपके मन में आता है वो लिख देती हैं उसका मतलब साकारात्मक ही है। प्रेषक कहना चाह रहा है कि आप कुछ बनावटी नहीं लिखतीं, बल्कि जैसा आपको लगता है, वैसा लिख देती हैं। आपकी उपस्थिति हिन्द-युग्म का हर्षोल्लास है।

तपन जी और पीयूष जी की बधाइयाँ।

सभी प्रतिभागियों से चाहे वो कवि हों या पाठक, हम यही कहेंगे कि कृपया फ़िर से भाग लें, और इंटरनेट की दुनिया में हिन्दी का वर्चस्व बनावें।

धन्यवाद।

anuradha srivastav का कहना है कि -

विपिन जी कविता बहुत ही सुन्दर है । कोमल भावों की अभिव्यक्ति दी है ।
किसी एक पंक्ति को उदधृत करने की धृष्टता नहीं कर सकती ।

ग्रहण भय से सूर्य छिपता
हाय यह कैसी बिडम्बन
बन्द होठों में छिपा है
शोषितों का करूण क्रन्दन
अन्याय शोषण कूट का ये गरल रस है
कवि लगा जीवन दाँव
बोलो बन्धु अब किस ठांव
श्रीकांत जी कटु सत्य लिखा है । पंक्तियाँ सटीक है ।

नियति धरा है,
परिणति धरा है
कुछ तो ऐसा नहीं है
जो उन्हें अपनी ओर मोहित करे
उनकी ऊँचाइयां मिथ्याभास हैं
अस्तित्व उनका है तब तक
जब तक नभ में सूर्य का प्रकाश है
अंततः उन्हें तम में
विलीन हो जाना है
निरुद्देश्य लगता जीवन उन्हें
इस जगत से उन्हें कुछ नहीं पाना है
शैलेन्द्र जी आपकी कविता ने प्रभावित किया ।

Anonymous का कहना है कि -

सभी रचनायें मन को प्रसन्न कर देने वाली हैं।
बहुत बहुत आभार

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

सभी प्रतिभागियों एवं इस माह के विजेताओं को हार्दिक शुभकामनायें।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Gaurav Shukla का कहना है कि -

अनुराधा जी,
आपको इस माह की प्रतियोगिता की विजेता बनने पर हार्दिक बधाई
"मौन" वास्तव में सम्पूर्ण रचना है और विजेता कविता के सर्वथा योग्य
पुनः बधाई

हमारे इस माह के यूनिपाठक जालिम जी को भी हार्दिक बधाई
पाठक किसी कवि के लिये सबसे महत्वपूर्ण होता है, और आप तो अच्चे समीक्षक भी हैं

विपिन जी,
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी, आपमें बहुत संभावनायें हैं
आपको भी बधाई, प्रयास जारी रखें

"बोलो बंधु किस ठाँव" स्तरीय रचना है, श्रीकान्त जी को बधाई
"परछाइयों की भीड में" बहुत ही सुन्दर है

पुनः सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई

सस्नेह
गौरव शुक्ल

Mohinder56 का कहना है कि -

सभी प्रतिभागियों एवं इस माह के विजेताओं को मेरी और से हार्दिक शुभकामनायें।

Vikash का कहना है कि -

मौन, तुम इतने मुखर क्यों हो? : http://hindyugm.mypodcast.com/2007/08/post-33469.html

अभिषेक सागर का कहना है कि -

सभी विजेताओं को बधाई।

-रचना सागर

Anonymous का कहना है कि -

all poetry is really incredible .some poets used there imagination and deep sentiments . really i enjoyed the great efforts

हरिराम का कहना है कि -
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हरिराम का कहना है कि -

काव्य की महत्ता प्रतिपादन में संलग्न हिन्दी-युग्म के संचालकों को नमन् है। लगता है वैदिक पौराणिक युग लौटनेवाला है, जब गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, प्रौद्योगिकी आदि के गूढ़ सूत्र भी पद्यों/श्लोकों में ही होते थे। आशा है कि विज्ञान एवं तकनीकी विषय भी अब छन्दबद्ध, तालबद्ध, लयबद्ध कविताओं में लिखे जाएँगे, ताकि बच्चे भी आसानी से याद कर सकें और जीवन में कभी भूल न पाएँ।

आलोक साहिल का कहना है कि -

अनुराधा जी उनिकवित्री बनने पर बधाई देने के लिए बहुत विलम्ब हो चुका है,फ़िर भी इसके लिए बधाई.
वैसे तो आपने मौन के इतने छुए अनछुए पहलुओं को टटोला है की ऐसा प्रतीत होता है मनो अपने मौन पर बाकायदा शोध करी है जिसके लिए की आप बधाई की पत्र हैं
अच्छी रचना के लिए बधाई.
अलोक सिंह "साहिल"

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