फटाफट (25 नई पोस्ट):

Tuesday, July 10, 2007

प्रीत की रीत


तुम ही ने तो कहा था
अधर तुम्हारे अमृत कलश हैं
वर्षों पान किया इस रस का
कब कहा तुम ने तृप्त हुआ मैं
और भला कब तुम अमर हो पाये
घटा की संज्ञा दी तुमने मेरे केशों को
जो रहे तुम पर कई सावन छितराये
न प्यास बुझी तुम्हारे अन्तर्मन की
न तुम्हें यह अपनी कैद में रख पाये
इस मन की तृष्णा एक अन्धा कुँआ है
जो न प्यालों से सदियों में भर पाये
स्पर्श स्नेह का, एक पाँति प्यार की
पीडा हृदय की सारी हर लेती है
शब्द बाण चाहे बाहरी घाव न दें पर
यदा कदा प्राण भी हर लेते हैं
प्रीत की रीत भले न निभाओ तुम
पर प्रीत पर लाँछन न धरना
जिस से भी बाँधों बँधन प्यार का
उसी संग जीना उसी संग मरना

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

18 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

कब कहा तुम ने तृप्त हुआ मैं
और भला कब तुम अमर हो पाये

न प्यास बुझी तुम्हारे अन्तर्मन की
न तुम्हें यह अपनी कैद में रख पाये

शब्द बाण चाहे बाहरी घाव न दें पर
यदा कदा प्राण भी हर लेते है

बहुत गहरा दर्शन डाला है छोटी सी रचना में। आपकी कलम से एक अउर सुन्दर कृति..

*** राजीव रंजन प्रसाद

मनीष वंदेमातरम् का कहना है कि -

मोहिन्दर जी कविता तो अच्छी है
पर मुझे लगता है कि
बात अगर सहज ढंग से कही जाय
तो वो लोगों तक जल्दी पहुँचती है।

Purva का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर लगी मुझे आपकी यह रचना मोहिंदर जी ....

प्रीत की रीत भले न निभाओ तुम
पर प्रीत पर लाँछन न धरना
जिस से भी बाँधों बँधन प्यार का
उसी संग जीना उसी संग मरना

यह पंक्तियाँ सुंदर लगी ..

बोधिसत्व का कहना है कि -

अच्छी कोशिश है, लगे रहें
प्रीत प्यार पर बात होनी चाहिए।

शोभा का कहना है कि -

कविता बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण है ।
कविता के अन्त में जो बन्धन लगाया गया
है वो कुछ अखरता है ।मुझे लगता है प्यार
बन्धन नही प्यार मुक्ती का नाम है । इतनी सुन्दर
रचना के लिए बधाई ।

शोभा का कहना है कि -

आपकी कविता बहुत अच्छी लगी । इसे अपना स्वर दिया है ।http://ritbansal.mypodcast.com/index.html plz listen it. thanks

Divine India का कहना है कि -

प्रीत की यह रीत बहुत शानदार लगी…
भावनाएँ आपकी सागर से भी विशाल और जल से भी स्पष्ट है…

परमजीत सिहँ बाली का कहना है कि -

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई\

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर रचना है मोहिंदेर जी ...शोभा जी के स्वर से और भी ख़ूबसूरत लगी यह ...

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

गहरे भाव और अच्छी कविता, पर साथ ही मैं मनीष जी से भी सहमत हूं कि इस बात को थोड़ा आसान तरीके से कहा जाता तो अधिक लोगों तक पहुंचती।

SahityaShilpi का कहना है कि -

शब्द बाण चाहे बाहरी घाव न दें पर
यदा कदा प्राण भी हर लेते हैं

देरी से टिप्पणी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ, मोहिन्दर भाई. कविता बहुत अच्छी लगी. बधाई.

Gaurav Shukla का कहना है कि -

"शब्द बाण चाहे बाहरी घाव न दें पर
यदा कदा प्राण भी हर लेते है"

बहुत गंभीर भाव हैं मोहिन्दर जी, बहुत अच्छा लिखा आपने
बधाई

सस्नेह
गौरव शुक्ल

Alok Shankar का कहना है कि -

मोहिन्दर जी
कविता अच्छी है , पर ध्यान से देखने से पता चलता है कि जो भाव हैं कविता में उनके अनुसार इसकी प्रस्तुति गीत के रूप में होती तो ज्यादा अच्छा होता ।
कविता न तो गीत ही है न ही पूरी तरह अतुकान्त ।
भावों में परिपक्वता साफ़ झलकती है।
आलोक

सुनीता शानू का कहना है कि -

क्या बात है मोहिन्दर जी लगता है…प्रेम का बहुत गहरा संदेश देती आपकी ये पक्तियाँ एक स्वस्थ मन और पवित्र तन की परिचायक है,…मुझे बेहद पसंद आया आपका ये अंदाज्…
प्रीत की रीत भले न निभाओ तुम
पर प्रीत पर लाँछन न धरना
जिस से भी बाँधों बँधन प्यार का
उसी संग जीना उसी संग मरना
बहुत-बहुत बधाई…

सुनीता(शानू)

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कविता न तुकान्त है न अतुकांत। जिस तरीके से पढ़ने की शुरूआत करते हैं, वो आगे तक कायम नहीं रहता। लिखने के बाद यह देख लेना ज़रूरी है कि आप खुद संतुष्ट हैं या नहीं।

Mohinder56 का कहना है कि -

राजीव जी, पूर्वा जी, बोधिस्तवा, शोभाजी, बाली जी, दिव्यभव जी, यादव जी, शुक्ला जी तथा शानू जी मै आप सभी का आभारी हूं कि आपने मेरी रचना को पढा और उसे पसन्द किया..
मनीष जी व सौलंकी जी को लगा कि बात को सहज ढंग से मै नहीं कह पाया और शायद लोगो तक पहुचाने में असमर्थ रहा.. उनकी टिप्पणी के बाद मैने पूरी रचना को दोवारा पढा और मुझे लगा कि उसमे एक भी शब्द ऐसा नही है जो कलिष्ट हो और आम आदमी न समझ पाये.. क्या आप किसी शब्द पर उंगली रख कर मुझे बतायेंगे कि कौन सा शब्द कठिन है या जगह पर उचित नही बैठ रहा.

शैलेश जी और आलोक शंकर जी को लगा कि कविता ना तुकांत है ना अतुकांत..
मन के भावो के प्रवाह का अन्त नहीं है ऐसा मेरा मानना है कविता का चाहे अन्त हो जाये... ये कविता मन के भाव हैं
जिसमें एक स्त्री यह कहना चाह रही है कि उसका रूप, उसका यौवन भी उसके मनमीत को नहीं बांध सका.. उसकी प्यास शान्त नही हुयी.. साथ ही वो कहना चाह रही है कि ये क्षुधा कभी शान्त होने वाली नहीं है...प्यार के एक शब्द और स्नेह के एक स्पर्श में बरसों के यौन सम्बन्धों से ज्यादा आकर्षण हो सकता है..अधिक की इच्छा में मेरा त्याग न करना और शब्दों रूपी बाणे से मेरे प्राण न हर लेना... हो सके तो अन्त तक साथ निभाना.....
और क्या अन्त हो सकता है एक प्रेयसी के भावों का.. मुझे नहीं मालूम... आप को हो तो बताने का कष्ट करें

Anonymous का कहना है कि -

बहुत सुन्दर मोहिन्दरजी!

भाव जब बहते हैं तो आकार अपने आप ले लेते हैं :-)

बधाई!

adidas nmd का कहना है कि -

ugg boots
golden state warriors jerseys
louboutin shoes
cheap ugg boots
oakley sunglasses
ugg boots
ralph lauren outlet
coach outlet store online
nike tn
ray ban sunglasses outlet

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)