अंत और अनंत क्या,
उर की अभिलाषा क्या ?
मन क्यों स्थिर नहीं,
जीवन की परिभाषा क्या ?
प्रश्न भी अनंत हैं
अनकहे हैं
जवाब कभी हैं ही नहीं,
कहीं अधूरे हैं ।
मौन लगता अचल है ।
बस अपनी
अंतर्रात्मा का
साथ ही चिरंतन है,
बाकी या तो इच्छा है
लालसा है
या न मिटने वाली चाह है ।
मोह क्या है,
माया है क्या ?
सत्य क्या है,
साया है क्या ?
फिर अनगिनत सवाल,
या तो असंख्य जवाब,
या फिर कोई भी नहीं
कहीं सिर्फ़ गति है
कोई ठहराव नहीं
और कहीं बस
ठहराव ही है
कोई गति, कोई हलचल नहीं ।
यह शब्द हैं
या भाव ?
या उलझन ?
अभिव्यक्ति की असमर्थता ?
- सीमा कुमार
३१ मार्च २००७
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
22 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुन्दर भावपूर्ण रचना है आप की....जीवन का विशलेषण कर डाला आप ने
मोह क्या है,
माया है क्या ?
सत्य क्या है,
साया है क्या ?
फिर अनगिनत सवाल,
या तो असंख्य जवाब,
या फिर कोई भी नहीं
कहीं सिर्फ़ गति है
कोई ठहराव नहीं
और कहीं बस
ठहराव ही है
कोई गति, कोई हलचल नहीं ।
जीवन का सार्थक मोड़। बधाई हो।
confusion hai bahut life mein - but before everything clears out, I guess this confusion is LAZMI. shanti ke pehle ka toofaan ya fir toofaan ke pehle ki shanti
सीमाजी,
आपको पहली बार पढ़ रहा हूँ, अलग तरह की कविता है........
एक ही चीज़ कहना चाहूँगा....आपको अपने जवाब स्वयं ढूँढने होंगे.....
इतनी उलझन में कविता की सार्थकता के साथ आप न्याय नहीं कर पाते.......
शायद मेरी प्यास आपकी किसी अगली कविता में बुझे, जब आप शांतचित्त होकर अपने उत्तर भी साथ लायें........
निखिल
Life is full of questions, however, you know that every question does not have an answer. To enjoy and live life, sometimes a question needs to be left as a question.
Your 'kavita' reflects your intelectuality and unique identity.
-Rashmiman Kumar
शून्य ही अनन्त है... E इनफाइनाइट, x/0=0, यह सिद्धान्त हर कहीं लागू है।
यह कविता प्रसिद्ध सन्तकवि "अच्युतानन्द दाश" की भविष्यवाणियों के पद्यों की याद ताजा कर देती है। धन्यवाद!
मोह क्या है,
माया है क्या ?
सत्य क्या है,
साया है क्या ?
फिर अनगिनत सवाल,
या तो असंख्य जवाब,
या फिर कोई भी नहीं
कहीं सिर्फ़ गति है
कोई ठहराव नहीं
और कहीं बस
ठहराव ही है
कोई गति, कोई हलचल नहीं ।
waah bahut sundar
वाह बहुत ही दार्शनीक अंदाज में लिखा गया…
कविता अपने आप में परिपूर्ण है…कई सारे तत्वों को लिया है और सभी को अच्छी तरह से एक कर भाव में समेट डाला…।
यथार्थवादी कविता है…
बहुत सुन्दरता से भाव उकेरे है…
बधाई
(सुनीता)शानू
मोहिन्दर जी, जीवन का विशलेषण का तो पता नहीं, कुछ आत्म-विशलेषण और कुछ सवाल जरूर हैं जीवन से जुड़े ।
आशीष जी, धन्यवाद । सवाल उठे हैं तो उम्मीद है कहीं न कहीं जाकर कोई तो उत्तर मिलेगा ।
बेनाम, आप अपना नाम लिखते तो अच्छा रह्ता । 'शांति से पहले का तूफान या तूफान के पहले की शांति' ... हाँ, हो सकता है, प्राकृतिक है.. है न ?
निखिल जी, सहमत हूँ कि जवाब स्वयं ढूँढने होंगे । और फिर सवाल उठेंगे तभी जवाब ढूँढ़ने की इच्छा या कोशिश भी होगी । उलझन के बाद शायद सुलझने की प्रक्रिया शुरू होती है । कविता की सार्थकता किस बात में होती है, यह भी एक सवाल है मन में.. बता सकें तो बताएँ । शांतचित्त हो, सारे उत्तर हों, स्थिरता हो, तो अभिव्यक्ति की आवश्यकता ही नहीं और न जानने की या पूछने की । न मैं संत हूं, न दार्शनिक, न वेदों-शाश्त्रों की पंडित की मेरे पास सारे जवाब हों ... एक आम नागरिक हूँ, ज़िदगी की कश्मकश के बीच जो भाब उठते हैं, संवेदनाएँ होती हैं, सवाल उठते हैं, बस उन्हीं को शब्दों में ढ़ालने की कोशिश है ।
रश्मिमान जी, हाँ हर सवाल का जवाब नहीं होता और शायद कई बार कई सवालों को सवाल की तरह छोड़ देना बेहतर होता है ... ।
हरिराम जी, शून्य का सिद्धान्त तथा सन्तकवि "अच्युतानन्द दाश" की भविष्यवाणियों के बारे में बताने के लिए धन्यवाद ।
सजीव जी, सुनीता जी, धन्यवाद ।
Divine India, धन्यवाद । पर जैसा कि मैंने ऊपर लिखा मैं दार्शनिक नहीं हूँ । हाँ, अलग अलग प्रश्नों और भावों को समटने की कोशिश जरूर की है ।
सीमा जीं,
कविता की सार्थकता हर एक के लिए अलग मायने रखती है...मेरी टिपण्णी को अन्यथा ना लें..कहने का मतलब ये था कि कवि निरीह नही हो सकता...उसके पास उलझनों के जवाब होने ही चाहिये......हम विवशता के चित्र खींचते हैं, इसका मतलब ये नही कि हम चुके हुये हैं........आपको आगे पढने की लालसा है.........
निखिल आनंद गिरि
पूछता इंसान अपने आप से!
क्या वजूद उसका
इस संसार में?
क्यों वह आया यहाँ,
याँ फिर लाया गया है?
क्या मंजिल है उसकी,
सफर कौन सा तय करना?
जन्म से मरण के बीच,
क्या किसी सत्य को खोजना?
पूछता इंसान अपने आप से!
कवि कुलवंत
यह सारे प्रश्न बाबा लोग अपने प्रवचनों में उठाते रहे हैं और उत्तर बताकर मनोरंजन भी करते रहे हैं। लेकिन आज जब इसे कविता के रूप में पढ़ा तो पाया कि इन सवालों को पढ़ना भी रौंगटे खड़े कर सकता है।
वाह्!!!
गंभीर,दर्शन, गहरे भाव
मैंने आपकी यह पहली कविता पढी है, आनन्द आया
बहुत सुन्दर
सस्नेह
गौरव शुक्ल
सीमा जी!
पूरी कविता में ऐसे प्रश्न उठायें हैं आपने जिनका जवाब ढूँढना बेहद मुश्किल है. मानसिक हलचल को शब्दों मे ढालने में आप सफल हुयीं हैं. मगर शिल्प के स्तर पर कुछ कमी नजर आती है.
यह शब्द हैं
या भाव ?
या उलझन ?
अभिव्यक्ति की असमर्थता ?
सुन्दर कविता होती यदि आप इसमें अपना दर्शन जोडतीं। शून्य में पाठक कुछ न कुछ तो खोज ही लेगा, किंतु जब मंजिल की बातें हों तो दिशा का इशारा भी कविता करे...
*** राजीव रंजन प्रसाद
सीमाजी,
प्रश्न की बहुत तेज बौछार कर दी है आपने... पानी लगातार बढ़ता जा रहा है और मैं डूबता जा रहा हूँ...कोई जवाब नहीं है...
मोह क्या है,
माया है क्या ?
सत्य क्या है,
साया है क्या ?
सुना है कि इनके जवाब जानने के लिये बहुत तप करना पड़ता है...कभी-कभी अनंतकाल तक...मेरे ख्याल से तो यह संभव नहीं।
मन में कभी-कभी ऐसी उठापटक होती है कि हम खुद भी उसके समक्ष निरूत्तर होते हैं।
हिन्द-युग्म पर स्वागत एवं बधाई!
अच्छी लगी आपकी कविता ...बधाई
हिन्द-युग्म पर स्वागत
मोह क्या है,
माया है क्या ?
सत्य क्या है,
साया है क्या ?
फिर अनगिनत सवाल,
या तो असंख्य जवाब,
सुन्दर भावपूर्ण रचना
या फिर कोई भी नहीं
bahut hi acchi hai....
आप सब की टिप्पणियों के लिए, कविता की विशेषताओं के साथ त्रुटियों एवँ कमियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद । कृपया मार्गदर्शन करते रहें ।
- सीमा कुमार
kavita man kee bhaavnaaon kee aisee saras abhibyakti hai jo padh ya sunkar ek aise bhaav pravaah men duba deta hai jise kavi ne gahantaa se anubhav kiya tha aur aisee roop me ho ki sahaj hee zabaan par chadh sake.aur shabdshah usee roop me kanthagra ho jai. yahee use gadya se padya kee vibhajak rekha ka kaam karta hai.kavita swantahsukhay likhi jatee hai lekin yadi kave ka dharatal uncha hai to jan jan ko wahi anaand ka anubhaw karaegi.jaise tulsi das ne swantah sukhay likha kintu kaljayee likha.rahim aaj kyon jinda hai?usi tarah kam likhen magar saarthak likhen,aap men aseem sambhaavnaaen hin.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)