ठहरा हुआ पानी
एक छोटा सा कंकड़
या एक हल्का सा स्पर्श
और उठी असंख्य, अनगिनत लहरें;
पानी की सतह पर
खिली असंख्य तरंगें.. ।
लहरें मेरी ओर आती रहीं
और वापस जा कहीं दूर
विलीन होती रहीं ।
तट पर खड़ी मैं
उन अनगिनत लहरों को
एक एक कर
गिनने की कोशिश करती रही ।
मेरे स्याह केश को
उड़ाता हुआ निकल चला
आकाररहित पवन
और जागी एक तीव्र इच्छा
उस शक्लरहित पवन को
आलिंगन में लेने की ।
वक्त रेत की तरह
फिसलता रहा
मेरी भिंची हुई मुठ्ठियों से
और मैं रेत के एक-एक कण को
बिना आहट
फर्श पर तरलता से
बिखरते देखती रही ।
बगिया के
खिले हुए फूलों के बीच
हुआ एहसास
यह कोमल पंखुड़ियाँ
हैं बस कुछ पल के मेहमान ।
उनकी मोहक खुशबू ने कहा
उठा लो आनंद
इससे पहले कि मैं
हो जाऊँ लुप्त ।
यह सभी याद दिलाते रहे
दोहराते रहे मुझसे -
जीयो, प्रेम करो,
हो उत्क्रांत और
करो आत्म-उत्थान,
हो आनंदित
और संजो कर रखो
हर नन्हें पल को
वक्त के हर कतरे को
क्योंकि हर लम्हा
अपने आप में
है एक चमत्कार,
एक विस्मय ।
- सीमा कुमार
२० जुलाई, २००७
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
हर पल को जीना ही हो तो जीवन है... अति सुंदर...
और संजो कर रखो
हर नन्हें पल को
वक्त के हर कतरे को
क्योंकि हर लम्हा
अपने आप में
है एक चमत्कार,
एक विस्मय ।
.... सचमुच अद्भुत।
कविता में सुन्दरता है और सुन्दर दर्शन भी, लेकिन वह विस्मय मुझे नहीं मिल पाया, जिसकी मैं हर कविता में आकांक्षा करता हूं। कहीं पर दिल से एकदम से वाह उफनकर नहीं निकल पाई।लेकिन आपने एक छोटी सी बात को बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है।
इस सुन्दर कृति के लिए बहुत बधाई।
और मैं रेत के एक-एक कण को
बिना आहट
फर्श पर तरलता से
बिखरते देखती रही ।
उनकी मोहक खुशबू ने कहा
उठा लो आनंद
इससे पहले कि मैं
हो जाऊँ लुप्त ।
क्योंकि हर लम्हा
अपने आप में
है एक चमत्कार,
एक विस्मय
सुन्दर रचना सीमा जी, बहुत सादगी से लिखा है आपनें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
ठहरा हुआ पानी
एक छोटा सा कंकड़
या एक हल्का सा स्पर्श
और उठी असंख्य, अनगिनत लहरें;
पानी की सतह पर
खिली असंख्य तरंगें.. ।
लहरें मेरी ओर आती रहीं
और वापस जा कहीं दूर
विलीन होती रहीं ।
तट पर खड़ी मैं
उन अनगिनत लहरों को
एक एक कर
गिनने की कोशिश करती रही ।
pyare komal bhaav......likhti rahiye
sasneh
Anupama
कविता पढ़ते हुए समंदर के किनारे खड़े होने का अहसास आखिर तक बना रहा.. साधारण शब्दों में काफ़ी कुछ कहा आपकी कविता ने।
सीमा जी!
बेहद सरल शब्दों में एक गंभीर दर्शन दे दिया आपने.
और संजो कर रखो
हर नन्हें पल को
वक्त के हर कतरे को
क्योंकि हर लम्हा
अपने आप में
है एक चमत्कार,
एक विस्मय।
इन पंक्तियों को पढ़कर अनायास बहुत पहले पढ़ी एक अंग्रेज़ी कविता की याद आ गयी:
Life is hard
By the yard;
But by an inch
Its a cinch.
बधाई स्वीकारें.
SUNDER RACHNA...
TERI YAAD KE IS DIL MEIN BHANWAR PADANE LAGE
BAHUT MUSHKIL MERA DOOB KE NIKALNA IS SAE
यह कविता मेरी आवाज मे यहां सुनें
ठहरा हुआ पानी
एक छोटा सा कंकड़
या एक हल्का सा स्पर्श
और उठी असंख्य, अनगिनत लहरें;
पानी की सतह पर
खिली असंख्य तरंगें.. ।
पंक्तियॊं में एक आकर्षण है। दिल की गहराई में उतर जाने की ताकत भी
जीयो, प्रेम करो,
हो उत्क्रांत और
करो आत्म-उत्थान,
हो आनंदित
और संजो कर रखो
हर नन्हें पल को
वक्त के हर कतरे को
हँसते , गाते जीने की कला सीखाती यह रचना हृदय को छुकर हौले से निकल गई। सबसे पहले तो शीर्षक हीं आकर्षित करता है। लगता है कि विस्मय शब्द से आपका गहरा नाता है। आपकी पिछली रचना में भी इस शब्द ने धमाल मचाया था। [:)]
आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी। बस कुछ नया पढाते रहिये।
आप सभी की टिप्पणियों के लिए धन्यवाद ।
धन्यवाद विकास, मेरी कविता को अपनी आवाज़ के साथ एक नया और सुंदर रूप देने के लिए :)
यहाँ मैंने और भी कुछ लिखा है इस कविता के बारे में : http://lalpili.blogspot.com/2007/07/blog-post_26.html
खासक अजय जी एवँ गौरव जी अवश्य पढ़ें । हर लम्हा एक विस्मय दरसल मेरी अंग्रेज़ी कविता 'Each Moment is a Wonder' का हिन्दी रूपांतर है ।
- सीमा कुमार
अदभुत.....
अंत बहुत सटीक है....
समय को गुजरता देख ख़ुशी महसूस करना मुश्किल है पर आपकी कविता इसका बोध कराती है........
बधाइयाँ
अगर हर लम्हा चमत्कार और विस्मय है तो यह उपसंहार कविता के विस्तार में नहीं है। हाँ यह ज़रूर है कि हर लम्हा सत्य है, हर लम्हा सम्पूर्ण है, उसे ही जीना सीखो, यह ज्यादा सटीक होता। रचना संपादित करते वक़्त शब्दों की सटीकता जाँचनी चाहिए।
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