मैं शर्त लगा सकता हूँ तुम वो तो नहीं हो।
लगता है कुछ अच्छा सा पर जो साथ कहीं हो।।
इतनी नहीं गहरी कि इनमें डूब मैं सकूँ,
पर बात है आँखों में मानों पाक ज़मीं हो।
बेबाक बयानी में है असर तेरी ज़रूर,
कायल करे मुझे मगर वो बात नहीं हो।
तेरी हँसी में है खनक मैं मानता भी हूँ,
दिल खिंचता नहीं इससे जैसे और कहीं हो।
हस्ती तूने बनाई है खुद आप से सच है,
उसका क्या अगर मंज़िलें ही फरक कहीं हों।
तुम एक हो उनमें से जो इस दिल के पास हैं,
पाता हूँ कई बार कि तुम मुझमें नहीं हो।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
पंकज जी..
आपको मैं मीटर में महारत के लिये जानता हूँ इस बार थोडा चूक गये आप। वैसे भाव उत्कृष्ट है और गहरे भी। बहुत बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
Bhaav aache hain.....all together padhkar aacha laga...keep writing
पंकज जी,
बेसब्री से प्रतीक्षा थी आपकी अगली रचना की
बहुत अच्छा लिखा है आपने
"इतनी नहीं गहरी कि इनमें डूब मैं सकूँ,
पर बात है आँखों में मानों पाक ज़मीं हो।"
बढिया
सरल शब्द, गहरी अभिव्यक्ति
बधाई स्वीकारिये
सस्नेह
गौरव शुक्ल
पंकज जी!
सच कहूँ तो इस बार कुछ बात बनी नहीं. आपके स्तर और क्षमताओं को देखते हुये, आपसे इससे बेहतर की उम्मीद रहती है. भाव यद्यपि इसमें भी बहुत सुंदर हैं.
तेरी हँसी में है खनक मैं मानता भी हूँ,
दिल खिंचता नहीं इससे जैसे और कहीं हो।
कुछ शेर बहुत ही सुंदर लगे..
मैं शर्त लगा सकता हूँ तुम वो तो नहीं हो।
पहली पंक्ति कॊ पढकर जॊ भाव उतपन्न हुए अन्त तक पहुचंते पहुचंते वे गायब हॊ गए। एेसा लगा कि जॊ आप कहना चाहते थे उसे कहने में चुक गए।
मेरे मन में आपकी कविता के प्रति मिश्रित भाव हैं। गज़ल न कह पाउँगा इसे। उम्मीद करता हूँ कि आप कारण समझ रहे होंगे। कुछ शिल्प में कमियाँ हैं, लेकिन भावगत दृष्टि से मैं आपकी इस रचना को एक " कम-बैक" मानूँगा। पिछ्ली रचना में आपने भावपक्ष से निराश किया था। इस बार मुझे आपसे इस बारे में कोई शिकायत नहीं है। आप अपनी बात कहने में सफल हुए हैं।
एक अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
इतनी नहीं गहरी कि इनमें डूब मैं सकूँ,
पर बात है आँखों में मानों पाक ज़मीं हो।
atyant sunadr
apne premi se sharat karte se pratiit hoti hai kavita
badhaiyan
मैं इस ग़ज़ल को बिलकुल नहीं समझ सका।
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