ज़िन्दगी बस, यूँ ही चलते चले जाने के सिवा क्या है
ये बेवफ़ा हो जाये तो, मौत से निभाने के सिवा क्या है
इस दिल को बहलाने के यूँ तो, सामान और बहुत हैं
ये दिल की लगी हाय, दिल को जलाने के सिवा क्या है
ये उड़ता हुआ बादल, जाने कब से, किसे ढूँढ रहा है
आखिर को तो पानी है, बरसे, बरस जाने के सिवा क्या है
लहरें हैं, मिटा सकती हैं, पल में किसी की भी हस्ती
मगर टकरा के साहिल से, लौट के जाने के सिवा क्या है
कितनी भी हो बरसात, भीगोयेगी सिर्फ जिस्म ही मेरा
जब रूह तल्ख़ हो तो फिर आँसू बहाने के सिवा क्या है
उम्र भर के लिये तन्हाइयों का हो जाये जब इस दिल से रिश्ता
फिर मेरे लिये उठ के भरी महफिल से चले जाने के सिवा क्या है
सपने हैं सजा देते हैं पल भर के लिये किसी की भी पलकेँ
खुलते ही इन आँखों के, हक़ीकत से टकराने के सिवा क्या है
मोहिन्दर कुमार
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
मोहिन्दर जी, आप की गजल बहुत बेहतरीन है।खास कर ये मुझे काफि पंसद आए-
लहरेँ हैँ, मिटा सकती हैँ, पल मेँ किसी की भी हस्ती
मगर टकरा के साहिल से,लौट के जाने के सिवा क्या है
उम्र भर के लिये तन्हाईय़ो का हो जाये जब इस दिल से रिश्ता
फिर मेरे लिये उठ के भरी महफिल से चले जाने के सिवा क्या है
हमेशा की तरह एक बेहतरीन कामयाब गज़ल...:)
वैसे तो मुझे कुछ लिखना आता नही,...मगर आपकी खिदमत में पेश है कुछ अल्फ़ाज़...
दिल में,हसरत है कि गुनगुनाऊँ आपकी ये गज़ल,
जिन्दगी हर हाल में गुनगुनानें के सिवा और क्या है
मोहिन्दर जी मेरी बधाई स्वीकार करें
सुनीता(शानू)
वाह!! बहुत ख़ूब मोहिंदेर जी ...बेहद ख़ूबसूरत लिखा है आपने ..
सपने हैं सजा देते हैं पल भर के लिये किसी की भी पलकेँ
खुलते ही इन आँखों के, हक़ीकत से टकराने के सिवा क्या है...
आप के जैसा सुंदर तो नही लिख सकती .. कुछ दिल में आया तो लिख दिया
ज़िंदगी एक झूठे नक़ाब में लिपटी हुई किताब है कोई
इस में लिखे लफ्ज़ को सच में समझने के सिवा क्या है!!
खासे नाराज लग रहें हैं, जिन्दगी से। खूबसूरत गजल।
ये उड़ता हुआ बादल, जाने कब से, किसे ढूँढ रहा है
आखिर को तो पानी है, बरसे, बरस जाने के सिवा क्या है
कितनी भी हो बरसात, भीगोयेगी सिर्फ जिस्म ही मेरा
जब रूह तल्ख़ हो तो फिर आँसू बहाने के सिवा क्या है
....Zindagi....ke siva kuch hai bhi to Zindagi.....Bas kai zindagiyon ka lagataar silsila....hai insaan.....iske siva aur kya hai
very gud lines.....i luv reading gazals....Thanx again
दूसरॊं कॊ हंसने की सलाह
फिर खुद क्यॊं रॊते हॊ
तुम्हें किस गम ने मारा है
तुम क्यॊं गजल कहते हॊ
दिल की बात सचमुच कमाल है
बस मात्र संजो कर रखना… :) :)
बहुत उम्दा गज़ल लिखी है…भावनाओं की तो कभी कमी नहीं रही है आपमें बस एक खोजी रुप को देखना बाकी था सो साक्षी बन गया…।बधाई स्वीकारे!!
मोहिन्दर जी, धीरे-२ आप उस्ताद होते जा रहे हैं।
बहुत खूबसूरत गज़ल है मोहिन्दर जी
"कितनी भी हो बरसात, भीगोयेगी सिर्फ जिस्म ही मेरा
जब रूह तल्ख़ हो तो फिर आँसू बहाने के सिवा क्या है"
"सपने हैं सजा देते हैं पल भर के लिये किसी की भी पलकेँ
खुलते ही इन आँखों के, हक़ीकत से टकराने के सिवा क्या है"
बहुत अच्छा
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
क्षमा कीजियेगा मोहिन्दर जी देर से टिप्पणी कर रहा हूँ। गज़ल बहुत पसंद आयी, आप इसे रिकार्ड कर युग्म पर डालिये।
"ये उड़ता हुआ बादल, जाने कब से, किसे ढूँढ रहा है
आखिर को तो पानी है, बरसे, बरस जाने के सिवा क्या है"
"लहरें हैं, मिटा सकती हैं, पल में किसी की भी हस्ती
मगर टकरा के साहिल से, लौट के जाने के सिवा क्या है"
बधाई स्वीकार करें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
achhhi gazal hai mohindarji
मोहिन्दर जी,
यह सुखद संयोग ही है कि आपकी और राजीव रंजन जी की ग़ज़ल एक साथ आई और दोनों ही 'क्या है' पर खत्म करके सवाल-जवाब कर रहे हैं।
भाई, मान गये>> आप तो ग़ज़ल के उस्ताद होते जा रहे हैं। किसकी शागिर्दगी में हैं? ज़रा हम भी तो जानें, हमें भी ग़ज़ल लिखने सीखना है।
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