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Saturday, May 26, 2007

श्रद्धा जैन की एक ग़ज़ल (प्रतियोगिता से)


शायर फ़ेमिली वाली श्रद्धा जैन हिन्दी-कविता और ग़ज़ल के लिए खूब समर्पित दिखाई देती हैं। हिन्द-युग्म के प्रयास का भी प्रोत्साहन करती रहती हैं। तभी तो वो अपनी व्यस्तता में से थोड़ा सा समय निकालकर 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' के अप्रैल अंक में भाग ली थीं। आज उनकी उसी कविता की बारी है। उन्होंने एक ग़ज़ल भेजी थी जिसको ज़ज़ों ने कम ही पसंद किया लेकिन सबने एक जैसे ही अंक दिये। दूसरे दौर तक इसका स्थान दसवाँ बना हुआ था। खैर जो भी हो, जैसी भी हो, ग़ज़ल अब आपके सामने है।

ग़ज़ल

मिल जाए जो गर आपके ये बाहुपाश मुझे
चाह नहीं हो कोई न कोई तलाश मुझे

सपने सज़ा कर मन ये मंद-मंद मुस्काये हैं
लगने लगे हैं अच्छे अब ये एहसास मुझे

लश्कर तारों का और हो चंदा की चाँदनी
खुशबू में मिलता है अब उनका आभास मुझे

जानी पहचानी राहों पर हो रोशनी का करवाँ
गले मिलती रहे ज़िंदगी ऐसे ही काश मुझे

बवंडर यादों के जब तब डाले हैं घेरे
आते-आते दे जाएँ अनजानी प्यास मुझे

गिरती-उठती साँसें हैं जुड़ती-मिटती उम्मीद
" श्रद्धा" बुझने नहीं देती , बाबरी आस मुझे

कवयित्री- श्रद्धा जैन

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

गिरती-उठती साँसें हैं जुड़ती-मिटती उम्मीद
" श्रद्धा" बुझने नहीं देती , बाबरी आस मुझे

ये पंक्तिया सुंदर है

SahityaShilpi का कहना है कि -

श्रद्धा जी, युग्म पर आपको पढ़कर खुशी हुई। हालाँकि इस बार रचना में कुछ कसर रह गयी। पर आपकी प्रतिभा को देखते हुए, आपसे और बेहतर की उम्मीद करना गलत तो नहीं होगा।

पंकज का कहना है कि -

भावनाओं के हिसाब से गज़ल अच्छी है;
लेकिन शब्दों का रसायन-शास्त्र कुछ कम जँच रहा है।
जैसे कि शुरू में ही बाहुपाश शब्द बहुत अखरा।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सपने सज़ा कर मन ये मंद-मंद मुस्काये हैं
लगने लगे हैं अच्छे अब ये एहसास मुझे

लश्कर तारों का और हो चंदा की चाँदनी
खुशबू में मिलता है अब उनका आभास मुझे

बहुत ही सुंदर लिखा है श्रद्धा

सुनीता शानू का कहना है कि -

बहुत-बहुत बधाई आपको हिन्द-युग्म पर देखकर अच्छा लगा...

सपने सज़ा कर मन ये मंद-मंद मुस्काये हैं
लगने लगे हैं अच्छे अब ये एहसास मुझे

सबसे अच्छी पक्तियाँ लगी है...
सुनीता(शानू)

Anonymous का कहना है कि -

श्रद्धाजी,

युग्म पर आपकी रचना देखकर बहुत अच्छा लग रहा है, मगर फिर भी तृष्णा शांत नहीं हुई, क्योंकि यह आपकी श्रेष्ठ रचानाओं मे से नहीं है, मैने आपको पढ़ा है, आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं।

Tushar Joshi का कहना है कि -

सबकी टिप्पणीयाँ पढ़कर आपकी और कविताओं को पढ़ने का मन हो रहा है। आशा है के आपकी और कविताएँ पढ़ने के लिये मिलेंगी। काव्यप्रवास के लिये शुभकामनाएँ।

Mohinder56 का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर लिखा है श्रद्धा जी,
आपको हिन्द-युग्म पर देखकर अच्छा लगा.


सपने सज़ा कर मन ये मंद-मंद मुस्काये हैं
लगने लगे हैं अच्छे अब ये एहसास मुझे
लश्कर तारों का और हो चंदा की चाँदनी
खुशबू में मिलता है अब उनका आभास मुझे

सुंदर पक्तियाँ

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

सभी का कहना ठीक है कि आप इससे और बेहतर लिख सकती/लिखती हैं। उम्मीद करता हूँ कि आप आगे भी इससे और खूबसूरत रचनाओं के साथ भाग लेकर प्रतियोगिता में चार चांद लगाएँगी।

विश्व दीपक का कहना है कि -

गिरती-उठती साँसें हैं जुड़ती-मिटती उम्मीद
" श्रद्धा" बुझने नहीं देती , बाबरी आस मुझे

बहुत खूब।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

श्रद्धा जी
आप निश्चित ही बहुत स्तरीय कवयित्री हैं। प्रतियोगिता दूसरी बात है किंतु यह रचना भी आपको एक उम्दा रचनाकार ही सिद्ध करती है। नीचे उद्धरित दोनो ही शेर आपमे एक विचारवान और भावुक कवि होने की घोषणा करते हैं..

लश्कर तारों का और हो चंदा की चाँदनी
खुशबू में मिलता है अब उनका आभास मुझे

जानी पहचानी राहों पर हो रोशनी का करवाँ
गले मिलती रहे ज़िंदगी ऐसे ही काश मुझे

बहुत बधाई आपको।

*** राजीव रंजन प्रसाद

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

लश्कर तारों का और हो चंदा की चाँदनी
खुशबू में मिलता है अब उनका आभास मुझे
सुन्‍दर पंक्तियां हैं।

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