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Saturday, May 26, 2007

श्रेय



my kingdom!!, originally uploaded by Gauri V.

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दवबिंदू
कमलदल पर तुम्हारा
स्वतंत्र अस्तित्व
मुझे भाता था

कितना सौंदर्य पूर्ण
स्वतंत्र जीना है
यही विचार
मन में आता था

हे कमलदल
फिर समझ आया
दवबिंदू की स्वतंत्रता में
अधिक श्रेय तुम्हारा है

तुम्हारी वजह से
उसने अपना
आकर्षक अस्तित्व
निखारा है

पिताजी
आज मै स्वतंत्र हूँ
दवबिंदू की तरह
सुंदर और सफल

पिताजी
आज समझा मै
मेरे अस्तित्व ले लिये
आप हैं कमलदल

तुषार जोशी, नागपुर


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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

बहोत खूब तुषारजी, मनभावन कविता है |

स्वप्ना शर्मा

Unknown का कहना है कि -

तुषारजी, कविता बहोत खूब लगी |

परमजीत सिहँ बाली का कहना है कि -

तुषार जी,अच्छी रचना है।आप की इन पंक्तियो को पढ कर मुझे लगा कि आप पिता के प्रति पूर्ण समर्पित है कविता के भाव बहुत सुन्दर हैं-
पिताजी
आज मै स्वतंत्र हूँ
दवबिंदू की तरह
सुंदर और सफल
पिताजी
आज समझा मै
मेरे अस्तित्व ले लिये
आप हैं कमलदल

SahityaShilpi का कहना है कि -

बहुत सुंदर भाव। बधाई, तुषार जी।

पंकज का कहना है कि -

बेहतरीन।
आप ने एक बार फिर से सरल शब्दों में एक विरल रचना पेश की है।
भाव तो बिल्कुल दिल को छू गये।

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

बहुत अच्छा लिखा है तुषार जी,
पिता के प्रति आभार बखूबी व्यक्त किया है आपने

रंजू भाटिया का कहना है कि -

तुषार जी,बहुत अच्छा लिखा है

पिताजी
आज समझा मै
मेरे अस्तित्व ले लिये
आप हैं कमलदल

सुनीता शानू का कहना है कि -

तुषार भाई एक बार फ़िर आपने बहुत ही भावुक रचना लिखी है...अति सुन्दर! बहुत बारिकी से भावो को उकेरा है आपने...

सुनीता(शानू)

Anonymous का कहना है कि -

पिता के प्रति समर्पण भाव अच्छा लगा।

Mohinder56 का कहना है कि -

तुषार जी

पिता के प्रति समर्पित कविता के भाव बहुत सुन्दर हैं

पिताजी आज मै स्वतंत्र हूँ
दवबिंदू की तरह
सुंदर और सफल
पिताजी, आज समझा मै
मेरे अस्तित्व ले लिये
आप हैं कमलदल
बधाई

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आपकी किसी भी कविता को पढ़कर यह कहा जा सकता है कि आपने किसी कविता को ऐसे ही नहीं लिख दिया है, लिखने से पहले बहुत कुछ सोचा है, महसूस किया है। दिन-प्रतिदिन आप बेहतर लिख रहे हैं, यह देखकर मुझे खुशी हो रही है।

विश्व दीपक का कहना है कि -

तुषार जी, आप अपनी कविता को हमेशा एक नए अंदाज में प्रस्तुत करते हैं । पितृप्रेम को आपने कमलदल एवं दव-बिंदु के माध्यम से अच्छा रंग दिया है।
बधाई स्वीकारें।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

तुषार जी
क्षमा प्रार्थी हूँ देर से टिप्पणी करने के लिये। आपके सरल-सहज-गूढ खजाने का एक और मोती है यह रचना। कविता कैसे लिखी जाये कोई आपसे सीखे...

*** राजीव रंजन प्रसाद

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