मित्रो,
प्रतियोगी कविताओं के प्रकाशन की कड़ी में आज बारी है हिन्दी-सेविका स्वर्ण ज्योति की कविता 'कविता' की। उनकी यह कविता दूसरे चरण के निर्णयापरांत ९वें स्थान पर थी। प्रथम दौर के दो कवियों ने इसे ७.५ अंक दिए थे। मगर यह कविता भी तीसरे चरण तक नहीं पहुँच पाई थी। अब आप इसका मज़ा लीजिए।
कविता
कविता क्या है,,,,?
शब्दों की हेरा-फ़ेरी है
कविता
तथ्य और सत्य
के बीच झूलती
कही-अनकही
बात है
कविता
भावों और अनुभावों
के मध्य
क्रिया-प्रतिक्रिया
का रूप है
कविता
गूढ अर्थों से भरी
चदं शब्दों का
जाल है
कविता
नख-शिख अलंकारों
से सजी
एक सुन्दर नार है
कविता
कविता क्या है....??
जीवन की सच्चाई को
उजागर करती हुई
साहित्य समाज की
जान है कविता।
कवयित्री- स्वर्ण ज्योति
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविता श्रेष्ठ है। परन्तु अपूर्ण है, पढ़कर तृप्ित नहीं हुई।
स्वर्ण ज्योति जी,
सार-सार में कविता के गूढ रहस्यों से आपने सुन्दरता से परदा उठाया है। विरोधाभासी तथ्यों को एक कथ्य के नीचे सजाना इस रचना की खासियत है जैसे
"शब्दों की हेरा-फ़ेरी है
कविता"
और
"भावों और अनुभावों
के मध्य
क्रिया-प्रतिक्रिया
का रूप है
कविता"
दो विभिन्न सत्य कथ्य है सहजता से कहे गये हैं। अंत भी अच्छा किया है आपनें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
स्वर्ण ज्योति जी,
आपने कविता की रचना कैसे की जाये इस का अच्छा विशलेषण किया है.. सही माने तो पहले बाल की खाल निकालें और फ़िर खाल में से बाल निकाले तभी कविता बनती है...
बहुत दिनों के बाद आप को पढने का मौका मिला..
स्वर्ण ज्योति जी अच्छे मनोभाव है कविता क्या है कि परिभाषा अच्छी लगी...
तथ्य और सत्य
के बीच झूलती
कही-अनकही
बात है
कविता
जीवन की सच्चाई को
उजागर करती हुई
साहित्य समाज की
जान है कविता।
बहुत अच्छे विचार है...
सुनीता चोटिया(शानू)
भावों और अनुभावों
के मध्य
क्रिया-प्रतिक्रिया
का रूप है
कविता
गूढ अर्थों से भरी
चदं शब्दों का
जाल है
कविता
बिल्कुल सही लिखा है जी आपने ....
hhmmmmm....
kavitaa ko subhaashit karnaa
aur
kavitaa ko paribhaashit karnaa
itne se shabdoon mein kathinn saa hai priy.
apane vichaaroon kaa daayraa aur baadaaiye. thodaa man manthan aur keejiye.
mangal kaamnaayein
स्वर्ण ज्योति जी, कविता के विषय में अपने विचार व्यक्त करने का ये तरीका अच्छा लगा। पर कहीं कुछ कमी सी रही, शायद जल्दबाजी में लिखी गयी है ये रचना।
क्या कहूं कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
ये कविता उत्तम है...अतिउत्तम है..कविता कि जांच पड़्ताल करती कवितायें ...एक छलावा सा होती हैं..कवि की अपनी पड़्ताल, कविता क धोखा दे कर..यहां भी स्वर्ण ज्योति जी ने ऐसा ही कुछ किया है...आशा है, आगामी प्रतियोगिता मे आप विजेता हों...शुभकामनायें
कविता कि परिभाषा अच्छी लगी.
तथ्य और सत्य
के बीच झूलती
कही-अनकही
बात है कविता
अच्छा विरोधाभासी विशलेषण है.
आपको शुभकामनाये.
ं
शैलेशजी,
कविता अच्छी लगी।
आप बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं। हमारी अनेक शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
जब किसी के बीच कहा जाता है ऐसे रात और दिन के बीच, सुबह और शाम के बीच तब वें दोनो शब्द अलग अर्थ बताते होते हैं। यहाँ तत्थ और सत्य दोनो लगभग समान अर्थी शब्द लग रहे हैं इसलिये "के बीच" यह प्रयोग हज़म नहीं हुआ।
भाओ और अनुभाओं वाला पद शब्दों का खेल लगता है मैं ज्यादा अर्थ नहीं निकाल पा रहा हुँ।
गूढ अर्थ वाला पद अच्छा बन पडा है। जीवन वाला पद भी पसंद आया।
"जीवन की सच्चाई को
उजागर करती हुई
साहित्य समाज की
जान है कविता।"
ये सहजता मन को भा गई ।
स्वर्ण ज्योति जी,
कविता की परिभाषा कई मनीषियों ने दी है लेकिन मैं समझता हूँ आपके द्वारा दी गई यह परिभाषा भी उनसे कमतर नहीं है। कुछ-कुछ पहलू तो ज़रूर दृष्टिगोचर हो रहे हैं। लेकिन बहुत सी बातें छूट गई हैं।
अच्छी कविता!
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