प्यार की तीखी टीस
ज़मानों बाद टभकती है क्यों?
अश्क़ अम्ल हो जाते हैं
यूँ याद फफकती है क्यों?
पतझड़ के पत्तों के सरीखे
सीने में बिखरे जज़्बात
और इन उपलों पर पड़ती
दूर के सूरज-सी तेरी बात,
कुतर-कुतर स्वाहा कर पूछे,
अरे! आग भभकती है क्यों?
अश्क़ अम्ल हो जाते हैं,
तेरी याद फफकती है क्यों?
ठिठुर-ठिठुर के रात काटते
कंकालों-सा मेरा मन,
एक-आध कतरों से बुनकर
डाल रखा उस पर संयम,
हिचक-हिचक ना टूट पड़े....
तेरी आँख भटकती है क्यों?
अश्क़ अम्ल हो जाते हैं,
तेरी याद फफकती है क्यों?
उन्हीं चार लम्हों से लेकर
माटी, गारे, खप्पर, बाँस,
लुढक-ढुलक जोड़ी है मैंने
कई सदियों में थोड़ी आस,
आज मगर फिर तुझे सोच,
मेरी साँस टपकती है क्यों?
अश्क़ अम्ल हो जाते हैं,
तेरी याद फफकती है क्यों?
-विश्व दीपक