फटाफट (25 नई पोस्ट):

कृपया निम्नलिखित लिंक देखें- Please see the following links

एक चोरी ऐसी भी


पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर कवि पुष्कर चौबे की एक कविता हमने पिछले महीने प्रकाशित की थी। सितम्बर माह की प्रतियोगिता में इन्होंने एक दूसरी कविता भेजी और दूसरा स्थान पा लिया।

पुरस्कृत कविता- चोरी का एक दिन

सुबह की भागमभाग में
शहर के सपाट रास्तों पर
बोझलता लादे
दफ़्तर जाते
मैं अक्सर ही सोचता हूं…
क्यूं न आज मुड़ जाऊं कहीं और
चल पड़ूं किसी सर्पिल कच्चे रास्ते पर
जिसके छोर पर कोई नदी
मेरी ही प्रतीक्षा में बैठी है…
और फ़िर
भीगी हवाओं की कानाफ़ूसी में
खोये रहस्य को समझूं...
या फ़िर लहरों की कल-कल में
छुपे संगीत में खो जाऊं…
तो कभी
बहती ठंडी धार में पाँव डुबा
बैठा रहूं घन्टों
बेसुध बेफ़िक्र…
काग़ज़ी कस्तियां बना
बहाता चला जाऊं
फ़ाइल के एक एक पन्ने की…
या पानी की परतों में
खिसलती मछलियों को
देखता रहूं एकटक..
बेझपक…
पानी पीने आये
किसी मेमने के पीछे
भागूं इधर-उधर
उस मेमना सा…
या फ़िर
पानी के जिद्‍दी फ़लक को
तोड़ता रहूं बार-बार
पत्थर उछाल किनारे से…
या फ़िर
किसी तरकुल के इर्द-गिर्द
ढूंढ़ता फ़िरूं एक बचपन
जो मैं सालों पहले यहीं कहीं छोड़ आया था…



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰७५, ४, ६॰५, ८, ७, ७॰१
औसत अंक- ६॰७२५
स्थान- दूसरा


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ७, ६॰७२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰५७४=५
स्थान- दूसरा


पुरस्कार- कवि शशिकांत सदैव की ओर से उनकी काव्य-पस्तक 'औरत की कुछ अनकही'

पुष्कर चौबे की तलाश


२८ फरवरी १९८२ को वाराणसी में जन्मे कवि पुष्कर चौबे ने देल्ही कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बी॰टेक॰ की डिग्री ली है और फिलहाल पुणे की एक कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। अपनी व्यस्त दिनचर्या के कारण साहित्य नहीं पढ़ पाते, लेकिन पढ़ने में अत्यधिक रुचि होने के कारण यदा-कदा समय मिलने पर हिन्दयुग्म तथा अन्य हिन्दी साहित्य की वेबसाइट्स को पढ़ते रहते हैं। इन्होंने पहली बार यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लिया और १३वाँ स्थान भी बनाया। आइए पढ़ते हैं।

कविता- तेरी ही तलाश

आड़ी तिरछी रेखाओं में तुम्हें ही खीचने की कोशिश,
टूटे बिखरे शब्दों में तुम्हें ही समेटने का प्रयास,
दिल की बेडोल शख़्त चट्‍टानों में तुम्हें ही तराशने की ज़िद,
हर पल, हर क़तरे, हर टुकड़े में करता बस तेरी ही तलाश,

यूं तो बुने हैं कल्पनाओं के कितने ही पुलिन्दे,
पर हर पन्ने-पन्ने पे बिखरा बस तेरा ही तो ख़याल,

हवा की हर हिलोर, जैसे बिखरा हो तेरा ही स्पर्श, या जैसे
बरसाती हवाओं में उड़ती छतरी से जूझती तेरी कमसिन सी क़शिश

बारिश की हर बूँद में तेरे ही संग भीगने की ख़्वाहिश,
हर ख़्वाब में सजते बस तेरी ही स्मृतियों के मंज़र,

पहली बारिश की सौंधियाई मिट्टी में तेरी ही यादों की महक,
चंचल लहरों की कल-कल में खोजता तेरी ही खिलखिलाहट,

ढूंढ़ता हूं, सन्नाटों की साँ-साँ तोड़ तेरे ही चले आने की आहट,
पलकों की हर झपक में बस तेरी ही झलकियों की चाहत,

यूं तो मैं जानता हूं, ये अनंत एकाकीपन ही मेरी नियति है,
फिर भी, हर लम्हा, हर क़तरे, हर टुकड़े में तेरी ही.. बस तेरी ही तलाश ।



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ३, ४, ६॰६, ७॰२५
औसत अंक- ५॰३७
स्थान- ग्यारहवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४॰५, ३, ५॰३७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰२९
स्थान- तेरहवाँ