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Wednesday, October 15, 2008

एक चोरी ऐसी भी


पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर कवि पुष्कर चौबे की एक कविता हमने पिछले महीने प्रकाशित की थी। सितम्बर माह की प्रतियोगिता में इन्होंने एक दूसरी कविता भेजी और दूसरा स्थान पा लिया।

पुरस्कृत कविता- चोरी का एक दिन

सुबह की भागमभाग में
शहर के सपाट रास्तों पर
बोझलता लादे
दफ़्तर जाते
मैं अक्सर ही सोचता हूं…
क्यूं न आज मुड़ जाऊं कहीं और
चल पड़ूं किसी सर्पिल कच्चे रास्ते पर
जिसके छोर पर कोई नदी
मेरी ही प्रतीक्षा में बैठी है…
और फ़िर
भीगी हवाओं की कानाफ़ूसी में
खोये रहस्य को समझूं...
या फ़िर लहरों की कल-कल में
छुपे संगीत में खो जाऊं…
तो कभी
बहती ठंडी धार में पाँव डुबा
बैठा रहूं घन्टों
बेसुध बेफ़िक्र…
काग़ज़ी कस्तियां बना
बहाता चला जाऊं
फ़ाइल के एक एक पन्ने की…
या पानी की परतों में
खिसलती मछलियों को
देखता रहूं एकटक..
बेझपक…
पानी पीने आये
किसी मेमने के पीछे
भागूं इधर-उधर
उस मेमना सा…
या फ़िर
पानी के जिद्‍दी फ़लक को
तोड़ता रहूं बार-बार
पत्थर उछाल किनारे से…
या फ़िर
किसी तरकुल के इर्द-गिर्द
ढूंढ़ता फ़िरूं एक बचपन
जो मैं सालों पहले यहीं कहीं छोड़ आया था…



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰७५, ४, ६॰५, ८, ७, ७॰१
औसत अंक- ६॰७२५
स्थान- दूसरा


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ७, ६॰७२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰५७४=५
स्थान- दूसरा


पुरस्कार- कवि शशिकांत सदैव की ओर से उनकी काव्य-पस्तक 'औरत की कुछ अनकही'

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Nikhil का कहना है कि -

या फ़िर
किसी तरकुल के इर्द-गिर्द
ढूंढ़ता फ़िरूं एक बचपन
जो मैं सालों पहले यहीं कहीं छोड़ आया था

वाह.....तरकुल जैसे शब्द कविता का हिस्सा कम ही बन पाते हैं और जब बनते हैं तो कविता द्वितीय हो जाती है...आप यूं ही लिखते रहें....हिंदयुग्म पर लौटेगा आपका बचपन...

निखिल

Unknown का कहना है कि -

पुष्कर जी, द्वितीय स्थान प्राप्त करने पर हार्दिक बधाई. आपकी कविता बहुत ही सुलझी हुई, स्पष्ट एवं भावपूर्ण है. प्रत्येक पंक्ति आंखों के आगे एक सुहाना दृश्य अंकित कर देती है. आशा है आगे भी आप अपनी अनुभूतियों से हमें परिचित करायेगे.

Anonymous का कहना है कि -

आप को बधाई हो बहुत ही सुंदर लिखा है
सादर
रचना

Anonymous का कहना है कि -

badhai ji,ab jab nikhil bhai ne tarif kar hi di hai to mere liye kya bacha hai..
bahut achhe
alok singh "sahil"

दीपाली का कहना है कि -

ममता जी का कहना सही है.कविता बहुत ही स्पष्ट और सुलझी हुई है.

Divya Prakash का कहना है कि -

बहुत अच्छा ........

Smart Indian का कहना है कि -

पुष्कर जी, पहले तो स्वीकारें बधाई. कविता सुंदर, सहज और स्पष्ट है.
"भागूं इधर-उधर
उस मेमना सा…"
को
"भागूं इधर-उधर
उस मेमने सा…"
कर लें तो ज्यादा व्याकरण-सम्मत रहेगा.

Anonymous का कहना है कि -

आप सभी की बहुमूल्य टिप्पणियों के लिए धन्यवाद!
स्मार्ट इंडियन जी, आप का सुझाव बिलकुल सही है; 'मेमना' के स्थान पर 'मेमने' होना चाहिए|

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