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भ्रष्टाचार एक कल्पतरु है


कविता रावत पहली बार यूनिकवि प्रतियोगिता के माध्यम से प्रकाशित हो रही हैं। 8 जून, 1968 को भोपाल में जन्मी और यहीं निवास करने वाली कविता ने एम.कॉम. एवं कम्प्यूटर ट्रेनिंग जैसी प्रोफेशनल डिग्रियाँ अर्जित की हैं। भारत के मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी झीलों की नगरी भोपाल में राज्य शिक्षा केन्द्र में शिक्षक प्रशिक्षण प्रकोष्ठ में कार्यरत। ये अपनी कविताओं में आस-पास की सामाजिक परिवेश की घटनाओं, परिदृश्यों और मानव मन में उठने वाली सहज भावनाओं व विचारों को सरलतम शब्दों में अभिव्यक्त करती हैं। इनका उद्देश्य साधारण जन मानस तक लेखन के माध्यम से सहज रूप से पहुँच कर समाज में व्याप्त बुराइयों से उनकों दूर कर उन्हें कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित करना है। इनकी कविता ने चौदहवाँ स्थान बनाया है।

पुरस्कृत कविता- आज का शिष्टाचार

सुना होगा आपने कभी एक कल्पतरु हुआ करता था
जिसके तले बैठ मानव इच्छित फल को पाता था
इच्छा उसकी पूर्ण होती, वह सुख-चैन से रहता
जो भी इसके तले बैठता, वही ख़ुशी से झूमता
क्या आज भी कहीं ऐसा वृक्ष मिल पायेगा?
जो मनोवांछित फल हमको दे सकेगा!
आप कहोगे कल्पतरु अब नहीं, जो सपने करे साकार
लेकिन वह वृक्ष व्याप्त है, नाम है उसका भ्रष्टाचार
यह ऐसा वृक्ष है जिसकी शीतल है छाया
जो भी तले बैठे इसके, उसी ने पायी माया
इसकी जड़ें होती गहरी, यह उखड़ नहीं पाता
जो भी यत्न करता वही समझो है पछताता
जो भी जड़ें जकड़ता इसकी, इच्छित फल वह पाता
जो विमुख रहता इससे, वह खाली ढोल है बजता
आज का कामधेनु है यह जिसका दूध है काला
जो सर्वप्रिय है आज, उसका नाम है घोटाला
आत्मा तन से निकलती, यह धर्मशास्त्र कहता
भ्रष्टाचार व्याप्त रहेगा यही आधुनिक शास्त्र कहता
विराट कल्पतरु का रूप ले चुका यह भ्रष्टाचार
इसलिये लोग कहते है इसे आज का शिष्टाचार।