(पितृ-दिवस पर विशेष)
पिता, मोटे तने और गहरी जड़ों वाला
एक वृक्ष होता है
एक विशाल वृक्ष
और मां होती है
उस वृक्ष की छाया
जिसके नीचे बच्चे
बनाते बिगाड़ते हैं
अपने घरौंदे।
पिता के पास
दो ऊंचे और मजबूत कंधे भी होते हैं
जिन पर च़ढ़ कर बच्चे
आसमान छूने के सपने देखते हैं ।
पिता के पास एक चौड़ा और गहरा
सीना भी होता है
जिसमें जज्ब रखता है
वह अपने सारे दुख
चेहरे पर जाड़े की धूप की तरह फैली
चिर मुस्कान के साथ।
पिता के दो मजबूत हाथ
छेनी और हथौड़े की तरह
दिन रात तराशते रहते हैं सपने
सिर्फ और सिर्फ बच्चों के लिए,
इसके लिए अक्सर
वह अपनी जरूरतें
और यहां तक की अपने सपने भी
कर देता है मुल्तवी
और कई बार तो स्थगित भी।
पिता, भूत वर्तमान, और भविष्य
तीनों को एक साथ जीता है
भूत की स्मृतियां
वर्तमान का भार और बच्चों में भविष्य .
पिता की उंगली पकड़ कर
चलना सीखते बच्चे
एक दिन इतने बड़े हो जाते हैं
कि भूल जाते हैं रिश्तों की संवेदना
सड़क, पुल और बीहड़ रास्तों में
उंगली पकड़ कर तय किया कठिन सफर।
बाहें डाल कर
बच्चे जब झूलते हैं
और भरते हैं किलकारियां
तब पूरी कायनात सिमट आती है उसकी बाहों में,
इसी सुख पर पिता कुरबान करता है
अपनी पूरी जिन्दगी,
और इसी के लिए पिता
बहाता है पसीना ताजिन्दगी
ढोता है बोझा, खपता है फैक्ट्री में
पिसता है दफ्तर में
और बनता है बुनियाद का पत्थर
जिस पर तामीर होते हैं
बच्चों के सपने
पर फिर भी पिता के पास
बच्चों को बहलाने और सुलाने के लिए
लोरियां नहीं होती।
कवि: बी एस कटियार
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
अति सुंदर।
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टेक्निकल एडवाइस चाहिए...
क्यों लग रही है यह रहस्यम आग...
बिल्कुल सच्ची बात है। पिता को एक वृक्ष के तने की तरह कठोर होना ही पड़ता है, वरना हवा के एक झोंके से सारी डालियाँ टूट कर गिर जाएँगी, फिर न फल रहेगा न फूल, न ही छाया। सुंदर रचना के लिए बधाई।
बाहें डाल कर
बच्चे जब झूलते हैं
और भरते हैं किलकारियां
तब पूरी कायनात सिमट आती है उसकी बाहों में,
इसी सुख पर पिता कुरबान करता है
अपनी पूरी जिन्दगी,
और इसी के लिए पिता
बहाता है पसीना ताजिन्दगी
ढोता है बोझा, खपता है फैक्ट्री में
पिसता है दफ्तर में
और बनता है बुनियाद का पत्थर
जिस पर तामीर होते हैं
बच्चों के सपने
-पिता के मन की भावनाओं और जिंदगी का संघर्ष और सच कविता की पंक्तियों में छलक रहा है। बहुत बढि़या कविता
पितृ दिवस पर पिता को समर्पित एक भावपूर्ण रचना.....
यकीनन पिता ऐसे ही होते है
बहुत सुन्दर
और बनता है बुनियाद का पत्थर
जिस पर तामीर होते हैं
बच्चों के सपने
पर फिर भी पिता के पास
बच्चों को बहलाने और सुलाने के लिए
लोरियां नहीं होती।
sahi kaha bahut sahi pita aese hi hote hain
rachana
behad samvedan-sheel
ओह....अति मर्मस्पर्शी...
मन भींग गया...
बाहें डाल कर
बच्चे जब झूलते हैं
और भरते हैं किलकारियां
तब पूरी कायनात सिमट आती है उसकी बाहों में,
इसी सुख पर पिता कुरबान करता है
अपनी पूरी जिन्दगी,
भावपूर्ण रचना.....
......बधाई
मां पर बहुत कुछ लिखा जाता है पर पिता पर इतनी भावपूर्ण प्रस्तुति पढ़ कर प्रसन्न हूं ..........बधाई स्वीकारें .........रिश्तों के मर्म तक पहुंचने के लिए धन्यवाद
पिता को परिभाषित करना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि पिता के लिए जितना कहा जाए कम है...बहुत ही सुन्दर और सत्य को चरितार्थ करती रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई!
बहुत खूबसूरत और सच्चाई के बहुत करीब एक दर्द एक टीस को दर्शाती कि वो बच्चों से जुडना तो चाहता तो है पर उसमे ओरत जैसी वो शक्ति नहीं वो अंदाज़ नहीं जो अपने दिल कि बात खुल कर बयान कर सके | बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना |
अप्रतिम एवं सुन्दर रचना.. बड़े दिनों के बाद हिंदी की पुनः याद आ गयी.. अपने स्वदेश की याद दिला दी आपने
अति सुंदर .पिता के पास लोरियाँ नहीं होती
पिता के पास होता है साहस /जो जन्म लेता है /उम्र के साथ-साथ /बेटे के सीने में /और बेटियों के कोमल ह्रदय में /और गढता है बुनियाद /और भविष्य |
Maan Gaye sabab Sunil Joshi
ati ati sunder.............jyoti
Pita ki itnee achchee tasveer sar maathe !!
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