अप्रैल माह की सातवीं और अंतिम रचना एक गीत है जिसके रचनाकार निशीथ द्विवेदी की यह हिंद-युग्म पर पहली दस्तक है। अक्टूबर 1979 मे जन्मे निशीथ शाजापुर (म.प्र) से तअल्लुक रखते हैं। निशीथ ने रासायनिक अभियांत्रिकी मे आइ आइ टी रुड़की से बी टेक और आइ आइ टी दिल्ली से एम टेक की उपाधि हासिल की है। कविताकर्म मे रुचि रखने वाले निशीथ सम्प्रति आयुध निर्माणी भंडारा मे कार्यरत हैं।
हम यहाँ माँ विषयक हृदयस्पर्शी कविताएं पहले भी पढ़ते रहे हैं, वही पिता के जिम्मेदारी और अनुशासन के तले दबे व्यक्तित्व का कोमल पक्ष अक्सर कविताओं मे उतनी प्रमुखता से उजागर नही हो पाता है। प्रस्तुत कविता अपने पारंपरिक कलेवर मे एक पिता की ऐसी ही अनुच्चारित भावनाओं मे छिपे प्रेम और विवशता को स्वर देती है।
पुरस्कृत कविता: गीत
माँ को गले लगाते हो, कुछ पल मेरे भी पास रहो !
’पापा याद बहुत आते हो’ कुछ ऐसा भी मुझे कहो !
मैनेँ भी मन मे जज़्बातोँ के तूफान समेटे हैँ,
ज़ाहिर नही किया, न सोचो पापा के दिल मेँ प्यार न हो!
थी मेरी ये ज़िम्मेदारी घर मे कोई मायूस न हो,
मैँ सारी तकलीफेँ झेलूँ और तुम सब महफूज़ रहो,
सारी खुशियाँ तुम्हेँ दे सकूँ, इस कोशिश मे लगा रहा,
मेरे बचपन मेँ थी जो कमियाँ, वो तुमको महसूस न हो!
हैँ समाज का नियम भी ऐसा पिता सदा गम्भीर रहे,
मन मे भाव छुपे हो लाखोँ, आँखो से न नीर बहे!
करे बात भी रुखी-सूखी, बोले बस बोल हिदायत के,
दिल मे प्यार है माँ जैसा ही, किंतु अलग तस्वीर रहे!
भूली नही मुझे हैँ अब तक, तुतलाती मीठी बोली,
पल-पल बढते हर पल मे, जो यादोँ की मिश्री घोली,
कन्धोँ पे वो बैठ के जलता रावण देख के खुश होना,
होली और दीवाली पर तुम बच्चोँ की अल्हड टोली!
माँ से हाथ-खर्च मांगना, मुझको देख सहम जाना,
और जो डाँटू ज़रा कभी, तो भाव नयन मे थम जाना,
बढते कदम लडकपन को कुछ मेरे मन की आशंका,
पर विश्वास तुम्हारा देख मन का दूर वहम जाना!
कॉलेज के अंतिम उत्सव मेँ मेरा शामिल न हो पाना,
ट्रेन हुई आँखो से ओझल, पर हाथ देर तक फहराना,
दूर गये तुम अब, तो इन यादोँ से दिल बहलाता हूँ,
तारीखेँ ही देखता हूँ बस, कब होगा अब घर आना!
अब के जब तुम घर आओगे, प्यार मेरा दिखलाऊंगा,
माँ की तरह ही ममतामयी हूँ, तुमको ये बतलाऊंगा,
आकर फिर तुम चले गये, बस बात वही दो-चार हुई,
पिता का पद कुछ ऐसा ही हैँ फिर खुद को समझाऊंगा!
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पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तक।
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29 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह ! पापा के मन के भावों को आपने बड़ी ही खूबसूरती से बुना है .....बहुत बहुत बधाई |
कवि ने हम जैसे व्यक्तियों की भावनाओं को अपनी कविता में प्रस्तुत किया हैए इसके लिए उन्हें साधुवादए उन्हें हमारी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं। बहुत अच्छी कविता है।
हर पिता के अंदर एक माँ भी छुपी होती है, जैसे जैसे पिता वृद्ध होता जाता है वह मुखर होती जाती है... बहुत सुंदर शब्दों से पिता की भावनाओं को व्यक्त करती कविता !
bahut shandar
Kavita ... Mein har Pita ki murmsparshi bhawnaon ko jis prakar se ujaagar kiya hai uske liye.. koti koti saadhuwad mere mitra
Kavita ... Mein har Pita ki murmsparshi bhawnaon ko jis prakar se ujaagar kiya hai uske liye.. koti koti saadhuwad mere mitra
शब्द नहीं आँसू निकल रहे हैं,अत्यंत मार्मिक।
पिता के मनोभावों को अकित करने के,,,,,,,धन्यवाद
अब के जब तुम घर आओगे, प्यार मेरा दिखलाऊंगा,
माँ की तरह ही ममतामयी हूँ, तुमको ये बतलाऊंगा,
आकर फिर तुम चले गये, बस बात वही दो-चार हुई,
पिता का पद कुछ ऐसा ही हैँ फिर खुद को समझाऊंगा waah dil gad gad ho gaya ....
Sorry,
मुझे माफ़ करना यारो
मैं कुछ भी नहीं लिख सकता
मुझे रोना आ गया ......
Sorry,
मुझे माफ़ करना यारो
मैं कुछ भी नहीं लिख सकता
मुझे रोना आ गया ......
bahut sunder................pyar karnain se jyada uski abhivayakti karna hae...........ye kisi bhi relation main bhulna nahin chahiyae......jyoti
Kya Appne Kha Kya Hamne Suna, Mera Ye Poochna He Apse aapne ye kavita hi kyu chuna.
Yesi hi kavita jindagi hoti hi, jo padhte gate beet jati hi
Papa Jaise to koi hota nhi, lekin kya kren papa kabhi rota nhi.
Maa to bholi hoti hi he, Sath hi saht woh roti bhi he
Kya karoge jab hame ashu hi pasand, Bina ashu ke hamne kuch samachna seekha hi nhi.
Thnks a lot
Veri nice & dil ko chune wali kavita hi aapse yahi asa hi ap achi kavitaye ham logo ko dete rahe
jai bharti
MA KE PYAR KO SABHI DEKHTE HAIN,,KAMSEKAM PAPA KE MAN KI PIDA KO AAPNE BAHUT HI SUNDAR MARMIK DHANG SE PRASTUT KIYA ISKE LIYE AAP KO BAHUT BAHUT BADHAYI /
MA KE PYAR KO SABHI DEKHTE HAIN,,KAMSEKAM PAPA KE MAN KI PIDA KO AAPNE BAHUT HI SUNDAR MARMIK DHANG SE PRASTUT KIYA ISKE LIYE AAP KO BAHUT BAHUT BADHAYI /
hardik badhaeyan aur shubhkamnayen!
Aapne to pitra prem aur vatsalya ki vo parte khol kar rakh di jinhe har bete ko janna va samajhna bahut jaroori hai.yadi aesa ho saka to aaj ki peeri mein pita putr sambandh madhurtam ho jayege.
Renu Saxena
HOD, HINDI DEPT.
DYPIS,NERUL.MUMBAI
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