कुछ ऐसे सवाल और विषय होते हैं, जिन्हें केवल एक स्त्री-मन ही उठा सकता है। किस तरह से दुनिया का आधा सच दूसरे हिस्से से भिन्न होता है, लीना मल्होत्रा की प्रस्तुत दो कविताओं से गुजरते हुए हम महसूस करते हैं। लीना की कविताओं में स्त्री-जीवन का भोगा हुआ यथार्थ है। नये बिम्ब हैं और एक संतोष देने वाला प्रवाह जो हमें आशान्वित करता है।
तुम्हारे प्रेम में गणित था
वह जो प्रेम था
शतरंज की बिसात की तरह बिछा था हमारे बीच
तुमने चले दाँव-पेच
और मैंने बस ये
कि इस खेल में उलझे रहो तुम मेरे साथ
तुम्हारे प्रेम में गणित था
कितनी देर और...?
मेरे गणित में प्रेम था
बस एक और.. दो और...
वह जो पहाड़ था
हमारे बीच
मैंने सोचा
वह एक मौका था
तय कर सकते थे हम उसकी ऊँचाइयाँ
साथ-साथ हाथ थाम कर
एक निर्णय था हमें साथ बाँधने का
तुम्हें लगा वह अवरोध है मात्र
और उसको उखाड़ फेंकना ही एकमात्र विकल्प था
और
एक नपुंसक युग ख़त्म हो गया उसे हटाने में
हाथ बिना हरकत बर्फ बन गए चुपचाप
वह जो दर्द था हमारे बीच
रेल की पटरियों की तरह जुदा रहने का
मैंने माना उसे
मोक्ष का द्वार जहाँ अलिप्त होने की पूरी सम्भावनाये मौजूद थीं
और तुमने
एक समानान्तर जीवन
बस एक दूरी भोगने और जानने के बीच
जिसके पटे बिना संभव न था प्रेम
वह जो देह का व्यापार था हमारे बीच
मैंने माना
वह एक उड़नखटोला था
जादू था
जो तुम्हें मुझ तक और मुझे तुम तक पहुँचा सकता था
तुमने माना लेन-देन
देह एक औज़ार
उस औजार से तराशी हुई एक व्यभिचारी भयंकर मादा
जो
शराबी की तरह धुत हो जाए और
अगली सुबह उसे कुछ याद न रहे
या फिर एक दोमट मिट्टी जो मात्र उपकरण हो एक नई फसल उगाने का
शायद तुम्हारा प्रेम दैहिक प्रेम था
जो देह के साथ इस जन्म में ख़त्म हो जाएगा
और मेरा एक कल्पना
जो अपने डैने फैलाकर अँधेरी गुफा में मापता रहेगा अज्ञात आकाश
और नींद में बढ़ेगा अन्तरिक्ष तक
मस्तिष्क की स्मृति में अक्षुण रहेगा मृत्यु के बाद भी
और सूक्ष्म शरीर ढोकर ले जाएगा उसे कई जन्मों तक
मैंने शायद तुमसे सपने में प्रेम किया था
अगले जन्म में
मैं तुमसे फिर मिलूँगी
किसी खेल में
या व्यापार में
तब होगा प्रेम का हिसाब
मैं गणित सीख लूँगी तब तक।
विगत
वह एक वीरान सड़क थी
उसमे विगत की हँसी के कुछ पदचिन्ह थे
वह निकली थी घर से
गुम हो जाने के लिए
उसके पास एक झोला था
जिसमें एक ख़ुदकुशी किया हुआ समंदर था
वह उसे बहुत आत्मीय था
वह दर्द को सम्हाल कर रख सकती थी
और रोयेंदार घास की तरह बिछा कर अपनी जिंदगी को मुलायम कर लेती थी
उसने चुनी थी कसक
हालांकि प्रेम उसे उपलब्ध था क्योंकि वह सुन्दर थी
लेकिन उसने चुनी थी कसक और प्रतीक्षा
ताकि वह खुद से प्रेम कर सके
और चुना एक अजनबी शहर
जहाँ सब लोग निर्वासित कर दिए गए थे
और पेड़ों का मेला लगा था
और यहाँ वह कुछ दिन सुकून से जी सकती थी
यहाँ उसे कोई नहीं जानता
कोई यह भी नहीं जानता कि सिजोफ्रेनिक है वह
और उसके साथ क्या हुआ था
जब उसका बच्चा रोता है तो पता है उसे
कि उसे दूध पिलाना है।
कवयित्री- लीना मल्होत्रा
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुन्दर कविता विशेष रूप से गणित . जैसे भावनाओं का संसार ही रच दिया है. मै पढ़ती चली गई. भावनाए चित्र बन के तैरने लगती है और कई चित्रों में हम खुद को पाते है. सुन्दर रचनाओं के लिए बधाई.
स्त्री मन के बहाव उद्वेलित कर गए और मैंने स्वयं को नदी के दूसरे किनारे पर खड़े पाया. अद्भुत - रवि
brilliant !
बहुत सुन्दर कविता| धन्यवाद|
लीना की कविताओं में साझी पीड़ा और सर्वत्र एक करुणा की अंतर्यात्रा है. बेहद उद्दाम और अनुभूति को उकेरने वाले बिम्ब हैं जो बोध का एक निजी संसार रचते हैं. यह लीना का एक विशेष कवि-समय है, लेकिन इसकी शक्तियां लीना के भावबोध के विराट संसार में खंड-खंड बिखरी हुई हैं. यदि रचना का सामंजस्य, संबोधन की दिशाएं और सरोकार की प्रतिबद्धताएं लीना के रचानाकर्म में जुड जाएँ तो उनमें एक युगीन पहचान के रूप में स्थापित होने की तमाम शक्तियां हैं ...
सुनील श्रीवास्तव,
४ जून २०११ ८:०० प्रातः
धन्यवाद सुनील जी. आपकी समीक्षा मेरे लिए महत्वपूर्ण है मै आभारी हूँ आपके सुधार के जो संकेत दिए हैं मैं उन पर ध्यान दूँगी.
अंजू ,लावा ,रविजी, पाताली आपका धन्यवाद मेरी कविताओं को पसंद करने के लिए.
सुंदर रचनाएँ .....तब तक में सीख लुंगी गणित और उसने चुना नहीं प्यार ताकि वो खुद से प्यार कर सके .......अति सुंदर भाव |
bahut sunder kavita bhavon ka to kya kahna .sahi mano me uttam kavita
rachana
दोनों कवितायें कहीं गहरे तक प्रभावित कर जाती हैं, आभार !
दोनों कविताएं बहुत ही अच्छी हैं.... मन को छू जाती हैं... बधाई....
aaj achanak mili ye kavitaye
shirshak bhaut shandar aur akrshak laga khinchi chali ayi mein.
padhkar bahut acha laga
sakhi
यहाँ उसे कोई नहीं जानता
कोई यह भी नहीं जानता कि सिजोफ्रेनिक है वह
और उसके साथ क्या हुआ था
जब उसका बच्चा रोता है तो पता है उसे
कि उसे दूध पिलाना है
वह क्या बात । संवेदनाओं की टूटन का परिणम है सिजोफ्रेनिया और लीना तुम्हारी कल्पनाओं का सौन्दर्य ही इस मां की गहरी संवेदनाएं को समझ सकी और एक मां ही सिजोफ्रेनिया को भी मात दे बच्चे को दूध पिला सकती हैं। बहुत सुन्दर ।
बधाई।
bahut badhia kavita...padhkar maza aa gaya......
badhai sweekaar kareinnn.........
bahut badhia...badhayi sweekar karien,....
स्त्री मन की अदभुत अभिव्यक्ति है स्त्री मन की कोमल भावनाओं का एवं उसके स्वप्नों का ह्रदय स्पर्शी वर्णन है
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