रिश्तों की
सिलवटों को खोल
धूप दिखाती है
आँगन में सूखते हैं वो
भीगती है माँ
पेड़ की फुनगी से
उतार कर
घर में बोती है भोर
पर मन के
अँधेरे कोने में
स्वयं बंद होती है माँ
उजाले की
एक- एक किरण
सबके नाम करती है
और साँझ को
आँचल के कोने में
गठिया लेती है माँ
चौखट से अहाते तक
बिखरी होती है
सभी की इच्छाएँ
रात अकेले में
अभिलाषाओं की गठरी
चुपके से खोलती है माँ
रिमोट छीनने की जद्दोजहद
टी वी पर
समाचार का शोर
तेज संगीत की चकाचौंध
इन सबसे अलग
रसोई में
लोकगीत गुनगुनाती है माँ
गैरों के ताने
बरसते हैं
वो भीगती नहीं
अपनों की उपेक्षा
उसे बहा ले जाती हैं
सभी से छुपा के
पोंछती है आँसू
और उठके
काम करने लगती है माँ
होता है समय सभी के पास
पर उसके लिए नहीं
झुर्रियों में
अपना यौवन तलाशने को
खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ
कवयित्री- रचना श्रीवास्तव
माँ विषय पर संकलित ढेरों कविताएँ, कहानियाँ, बाल-रचनाएँ पढ़ने और ऑडियो-वीडियो सुनने-देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
सिलवटों को खोल
धूप दिखाती है
आँगन में सूखते हैं वो
भीगती है माँ
पेड़ की फुनगी से
उतार कर
घर में बोती है भोर
पर मन के
अँधेरे कोने में
स्वयं बंद होती है माँ
उजाले की
एक- एक किरण
सबके नाम करती है
और साँझ को
आँचल के कोने में
गठिया लेती है माँ
चौखट से अहाते तक
बिखरी होती है
सभी की इच्छाएँ
रात अकेले में
अभिलाषाओं की गठरी
चुपके से खोलती है माँ
रिमोट छीनने की जद्दोजहद
टी वी पर
समाचार का शोर
तेज संगीत की चकाचौंध
इन सबसे अलग
रसोई में
लोकगीत गुनगुनाती है माँ
गैरों के ताने
बरसते हैं
वो भीगती नहीं
अपनों की उपेक्षा
उसे बहा ले जाती हैं
सभी से छुपा के
पोंछती है आँसू
और उठके
काम करने लगती है माँ
होता है समय सभी के पास
पर उसके लिए नहीं
झुर्रियों में
अपना यौवन तलाशने को
खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ
कवयित्री- रचना श्रीवास्तव
माँ विषय पर संकलित ढेरों कविताएँ, कहानियाँ, बाल-रचनाएँ पढ़ने और ऑडियो-वीडियो सुनने-देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
11 कविताप्रेमियों का कहना है :
रचना जी बहुत सुंदर कविता है एक एक शब्द दिल को छू गया माँ की व्याख्या बहुत ही सुंदर की है आपने माँ किसी की भी हो उसकी प्रतिस्तीथि एक सी ही होती है यह पंक्तियाँ अति उतम हैं बधाई
गैरों के ताने
बरसते हैं
वो भीगती नहीं
अपनों की उपेक्षा
उसे बहा ले जाती हैं
सभी से छुपा के
पोंछती है आँसू
और उठके
काम करने लगती है माँ
सादर
अमिता
Maa ki di cheezon se batiyaati hai maa. Vah!!kyaa baat hai! Ati sundar abhivyaktti.
रचना श्रीवास्तव भाव और कल्पना की ज़ादूगर है । इनका एक एक शब्द दिल की अतल गहराई से निकलकर पाठक को भीतर तक भिगो देता है । इनकी यह कविता लू-लपट में शीतल बयार की तरह है । बहुत-बहुत साधुवाद ! इसे ही कहते हैं उत्तम कविता
उजाले की
एक- एक किरण
सबके नाम करती है
और साँझ को
आँचल के कोने में
गठिया लेती है माँ
क्या भाव है
बधाई
सुनीता सिंह
amita ji ,shashi ji ,himanshu ji ,sunita ji
aap sabhi ke sneh shbdon ka bahut bahut dhnyavad
Nishabd!!! is the expression for such a beautiful poetry.
dil bhar aya, sab sach, sab khoobsoorat, maa ka chehra aisa hi to dikhta hai, hoth muskurate hue aur aankhein nam.
मात्र दिवस पर ढेरों आदर्शवाद से भरी रचनाये पढ़ीं .
पर ये सबसे अलग है.
बहुत सुन्दर.
बहुत सुन्दर कविता है...। मन को छू गई यह कविता...कहीं गहरे तक उतर जाते हैं भाव...।
मेरी बधाई...।
प्रियंका
झुर्रियों में
अपना यौवन तलाशने को
खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ
बहुत सुंदर कविता....दिल को छूने वाले भाव.
रचना जी ! बधाई.
अति सुंदर कविता माँ को साक्षात खड़ा कर दिया आपने ...बहुत बधाई |
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)