इनमे भी नादानी है जी
आँखों का मन पानी है जी
माज़ी मुझमे ठहरा है तो
मुझमे एक रवानी है जी
मेरे घर की दीवारें तो
बच्चों की शैतानी है जी
धूप सुखाने सूरज आया
पानी को हैरानी है जी
बच्चों मे जा बैठा है वो
वो भी एक कहानी है जी
साहिल पर ही डूब गया जो
सहरे का सैलानी है जी
'आतिश' आंच हैं सच्ची दुनिया
बाकी जो है फानी है जी
यूनिकवि: स्वप्निल ’आतिश’
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
मेरे घर की दीवारें तो
बच्चों की शैतानी है जी
Har insaan mein ek bachcha hota hai. bahut barhiya sher. badhai........
छोटी बहर में बेहतरीन ग़ज़ल कहना आपकी खासियत है...:)
स्वपनिल जी को इस सुन्दर रचना के लिये बधाई। आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
उम्दा खूब तुम्हारी शैली|
'आतिश' जी! हमने मानी, जी||
bahut achche!
मेरे घर की दीवारें तो
बच्चों की शैतानी है जी
bahutnsunder
badhai
rachana
Is khoobsurat aur paripakv rachna ke liye saadhuvaad Swapnil.
सुंदर रचना के लिए बधाई
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
Nice poem
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