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Monday, January 24, 2011

आँखों का मन पानी है जी




 इनमे भी  नादानी है  जी
 आँखों का मन पानी है जी

 माज़ी मुझमे  ठहरा है  तो
 मुझमे  एक रवानी है  जी

 मेरे घर  की  दीवारें  तो
 बच्चों की शैतानी है जी
 
 धूप सुखाने  सूरज आया
 पानी  को  हैरानी  है जी

 बच्चों मे  जा बैठा है  वो
 वो भी  एक कहानी है जी

 साहिल पर ही डूब गया जो
 सहरे का  सैलानी है  जी

 'आतिश' आंच हैं सच्ची दुनिया
 बाकी जो है   फानी है  जी



यूनिकवि: स्वप्निल ’आतिश


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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

आकर्षण गिरि का कहना है कि -

मेरे घर की दीवारें तो
बच्चों की शैतानी है जी

Har insaan mein ek bachcha hota hai. bahut barhiya sher. badhai........

डिम्पल मल्होत्रा का कहना है कि -

छोटी बहर में बेहतरीन ग़ज़ल कहना आपकी खासियत है...:)

निर्मला कपिला का कहना है कि -

स्वपनिल जी को इस सुन्दर रचना के लिये बधाई। आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

उम्दा खूब तुम्हारी शैली|
'आतिश' जी! हमने मानी, जी||

Pritishi का कहना है कि -

bahut achche!

rachana का कहना है कि -

मेरे घर की दीवारें तो
बच्चों की शैतानी है जी
bahutnsunder
badhai
rachana

रवीन्द्र शर्मा का कहना है कि -

Is khoobsurat aur paripakv rachna ke liye saadhuvaad Swapnil.

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

सुंदर रचना के लिए बधाई

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

Hindi Sahitya का कहना है कि -

Nice poem

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