फटाफट (25 नई पोस्ट):

Monday, October 04, 2010

आस ले सूरज के घर गये


सितंबर की यूनिप्रतियोगिता के नवीं कविता के रचनाकार संजय कुमार दानगढ़वी हैं। उनकी भी यह हिंद-युग्म पर प्रथम प्रकाशित कविता है।  उत्तमनगर (दिल्ली) के रहने वाले संजय का पूर्ण परिचय और छायाचित्र हमें समय से प्राप्त नही हो पाया है। इसलिये हम उनकी यह कविता ही पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, जो समसामयिक मुद्दों और समाज पर गहरा तंज कसती है।

पुरस्कृत कविता: आस ले सूरज के घर गये

आस ले सूरज के  घर  गये
नादान  परिंदों के  पर गये|

गर्व था जिनको  सूरत  पर
देख कर  आइना डर  गये|

सभा ने  उनकी  बात मानी
जो  जुबान से  मुकर  गये|

काला बाजारी हुई  अनाज  की
पंछी तेरे भाग के दाने बिखर गये|

गारंटी रोज़गार की चली योजना
तब से कई बेरोज़गार मर गये|  
            
हाल-चाल पूछने  आये हैं वो        
रात जो वारदात  कर गये|

लाश के ढेर पर की गयी घोषणा
शहर के हालात  सुधर गये|

आया ज़वाब उनका  इस तरह
कई सवाल ज़हन में उतर गये|
__________________________________________________________
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

11 कविताप्रेमियों का कहना है :

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar का कहना है कि -

अभी संजय बाबू में तनिक कचास है, कुछेक श्रेष्ट समकालीन पत्रिकाओं तक पहुँच बना सकें तो निखार आता जाएगा।

ग़ज़ल को साधने के लिए साधना का सातत्य आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य है। आशा है कि भाई संजय दानगढ़वी जी इस बात को गंभीरता से लेंगे।

यूनीकवि में रचना लगी, यह संजय बाबू के लिए गौरव की बात है!

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

Badhiya khayal hain..baki baten jeetendra jee kah chuke hain..sanjay jee ko badhai

महेन्‍द्र वर्मा का कहना है कि -

सरल शब्दों में गहरे भावों को प्रदर्शित करती अच्छी ग़ज़ल...बधाई।

M VERMA का कहना है कि -

गारंटी रोज़गार की चली योजना
तब से कई बेरोज़गार मर गये|
यथार्थ से रूबरू करवाती सुन्दर रचना

निर्मला कपिला का कहना है कि -

कविता अच्छी लगी संजय जी को बधाई।

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

आस ले सूरज के घर गये
नादान परिंदों के पर गये|भई वाह ! सचमुच मजा आ गया. एक एक पंक्ति नश्तर की तरह सीने में उतर जाती है, गज़ब की रवानी है इस कविता में ! “आप गैरों की बात करते हैं हमने अपने भी आजमाए हैं. लोग काँटों से बचके चलते हैं हमने फूलों से ज़ख्म खाए हैं.” इस नायाब कविता के लिए साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉय

सदा का कहना है कि -

हाल-चाल पूछने आये हैं वो
रात जो वारदात कर गये|

लाश के ढेर पर की गयी घोषणा
शहर के हालात सुधर गये|

बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

सदा का कहना है कि -

हाल-चाल पूछने आये हैं वो
रात जो वारदात कर गये|

लाश के ढेर पर की गयी घोषणा
शहर के हालात सुधर गये|

बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति

dschauhan का कहना है कि -

बहुत सुन्दर कविता है। वर्तमान समय को शब्दों के मोतियों में पिरोया गया है। शुभकामनाएं।

शारदा अरोरा का कहना है कि -

पंछी तेरे भाग के दाने बिखर गए ...यहाँ तो कवि मन की कल्पना बोल रही है टीस के साथ ...बाकी जगह तो आज के हालात से परिचय करा रही है ये रचना ..अच्छा लिखा है .

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)