रात के दो बजे हैं
आस-पास छिटकी चांदनी
से आकर्षित होकर
अनायास ही नज़रें
चाँद पर टिक गयी
चाँद को देखा.....
देखती ही रही....
मुझ पर मुस्कुराया
और जैसे और पास
और पास आ गया....
मैं भी भाव विभोर सी
उसके सानिध्य में
खोती ही जा रही थी...
मैंने धीरे से हाथ बढाया
और चाँद को छू लिया
उसकी किरणे अपनी शीतलता
मादकता में भिगोकर
मुझ पर उड़ेल रही थीं...
और जाने क्यों, पर
मैंने खुद को बहुत खूबसूरत
बहुत खूबसूरत महसूस किया
मेरी थकी हारी उदास
निश्चेष्ट अँगुलियों को
हौले से सहलाकर
उनमें चेतना भरता,
मेरे जीवन के प्रत्येक
अंधकारमय क्षण के अस्तित्व को
वो झुठलाता जा रहा था.
इस अलौकिक आलिंगन में
मृत्यु-लोक के हर संभव
सुख-दुःख के परे
आँचल भर प्यार बटोर
आँखें मूंदे मैं उसमें ही
जीती जा रही थी ...
भारी सपनीली पलकें
उसे आँखों में भरे
जाने कब सो गयी ...
अब भोर नें दस्तक दी है,
उसकी सिन्दूरी किरणों से नहाकर,
श्रृष्टि का हर एक कोना
नयी करवट ले रहा है,
हवाओं नें हर ओर
एक नयी हलचल पैदा की है
जीवन ने एक नया
ताज़ा पन्ना खोला है,
जिस पर एक नयी कहानी,
नया अनुभव,
लिखा जाना है,
नया दिन बाहें पसारे खड़ा है,
अब सुबह हो गयी है.
--स्मिता पाण्डेय
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह बहुत सुन्दर।
आशा भरी रचना .. सुन्दर .. खूबसूरत
प्यारी सी कविता का बहुत प्यारा अंत किया है तुमने.....
अब सुबह हो गयी है...
जीयो बेटा...
प्यारी सी कविता का बहुत प्यारा अंत किया है तुमने.....
अब सुबह हो गयी है...
जीयो बेटा...
अब भोर नें दस्तक दी है,
उसकी सिन्दूरी किरणों से नहाकर,
श्रृष्टि का हर एक कोना
नयी करवट ले रहा है,
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां, बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
वाह!
दिल की बात खुलकर सामने आई है...
जब इतने मधुर ख्याल होंगे तो रात को काटकर सुबह सामने क्यों नहीं आएगी? आनी हीं थी.. आ गई..
बहुत-बहुत बधाई..
-विश्व दीपक
bahut masum se dhuli dhuli pyari kavita
aur ye line अब सुबह हो गयी है...kavita ko ummid se bhar gai
badhai
rachana
सुंदर और आशावादी कविता...ज़िदगी के साथ रात को चांद है तो दिन को सूरज है।
bahut khubsurat lagi.. bahut bahut khubsurat!!
Pyaari!
एक प्यारा एहसास,प्यारी कल्पना,एक प्यारी कविता.
निराषाओं और राजनितिक माहौल में एक प्यारा, आषाओं से ओतप्रोत भाव-सुमन.सुन्दरकविता.
“हवाओं नें हर ओर
एक नयी हलचल पैदा की है
जीवन ने एक नया
ताज़ा पन्ना खोला है,
जिस पर एक नयी कहानी,
नया अनुभव,
लिखा जाना है,
नया दिन बाहें पसारे खड़ा है,
अब सुबह हो गयी है.” इस कविता के माध्यम से कवयित्री ने सुबह के सौंदर्य का बखूबी ज़िक्र किया है. सरल भाषा में एक सुन्दर कविता बन गई है जो प्रशंसनीय है. बहुत बहुत साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉय
कविता में अच्छी छुअन का आभास मिलता है
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