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Monday, August 30, 2010

ताकि मेरा बगीचा महकता रहे


जुलाई 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता की 15 वीं कविता सुभाष राय की है। जन्म जनवरी 1957 में उत्तर प्रदेश में स्थित मऊ नाथ भंजन जनपद के गांव बड़ागांव में। शिक्षा काशी, प्रयाग और आगरा में। आगरा विश्वविद्यालय के ख्याति-प्राप्त संस्थान के. एम. आई. से हिंदी साहित्य और भाषा में स्रातकोत्तर की उपाधि। उत्तर भारत के प्रख्यात संत कवि दादू दयाल की कविताओं के मर्म पर शोध के लिए डाक्टरेट की उपाधि। कविता, कहानी, व्यंग्य और आलोचना में निरंतर सक्रियता। देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं, वर्तमान साहित्य, अभिनव कदम, अभिनव प्रसंगवश, लोकगंगा, आजकल, मधुमती, समन्वय, वसुधा, शोध-दिशा में रचनाओं का प्रकाशन। ई-पत्रिका अनुभूति, रचनाकार, कृत्या और सृजनगाथा में कविताएँ। कविताकोश और काव्यालय में भी कविताएं शामिल। अंजोरिया वेब पत्रिका पर भोजपुरी में रचनाएँ। फिलहाल पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय।
आवास-158, एमआईजी, शास्त्रीपुरम, आगरा ( उत्तर प्रदेश)।
फोन-09927500541

पुरस्कृत कविताः मेरा बगीचा

मेरे बगीचे में बहुत सारे पेड़ हैं
माँ के नाम पर मैंने रोपा है
आँगन में ढेरों गुलाब
वे खिलते हैं मुझे देखकर
और जब भी मैं निकलता हूँ
कहीं दूर, किसी सफर पर
मुरझा जाते हैं तत्काल
कभी-कभी जब मैं तोड़ लेता हूँ
उनमें से कोई फूल
कई दिन महकती रहती है मेरी हथेली
कभी-कभी उनकी पंखड़ियों पर
ठहरी बूँदें देखकर
माँ बहुत याद आती है
पिता के नाम लगाया है मैंने
दरवाजे पर अशोक
हरा-भरा, सीधा तना हुआ
आसमान छूने की ललक से
पूरी तरह सराबोर
खुश हूँ मैं कि उसके
घने पत्तों के बीच
एक चिड़िया ने बनाया है
अपना घर, एक घोंसला
वह पहचानती है मुझे
डरती नहीं कभी जब
बिल्कुल पास होता हूँ
जानती है कि मैं उसकी
सुरक्षा के लिए चिंतित रहता हूँ
मैं चाहता हूँ कि वह अंडे दे
मैं उसके बच्चों को बड़े होते
उड़ते देखना चाहता हूँ
ताकि पिता को याद रख सकूँ
आसमान के किसी भी कोने में
अपनी हर उड़ान के दौरान
भाइयों के नाम मैंने
लगाये हैं बाँस-वन
जो बाँसुरी बन बज सकते हैं
और लाठियों में भी
तबदील हो सकते हैं
मेरे सभी भाई हूबहू
मेरे जैसे नहीं हैं
पर हममें कुछ तो है
एक जैसा, मिलता-जुलता
रंग-रूप, स्वाद या
जमीन में उगने की ताकत
जब भी जरूरी होता है
वे लड़ते हैं, हक माँगते हैं
कभी उपेक्षा नहीं सहते
सोचते हैं सबके बारे में
इसीलिए स्वार्थी नहीं
हो सके हैं अभी तक
अन्याय नहीं देख पाते
बाहें चढ़ जाती हैं और
भौंहें तन जाती हैं
जब भी छला जाता है कोई
बांस की जड़ों से जब भी
नयी कोंपल फूटती है
भाइयों की सुधि आ जाती है
पत्नी मुझे जिंदा रखती है
मुझे ढोती है, रचती है बार-बार
ढालना चाहती है अपने आईने में
वह मुझे सिखाती है सुंदर होना
वह जितना चाहती है मुझसे
उसे देना चाहता हूँ, उससे ज्यादा
उसे भामती बना देना चाहता हूँ

मेरे बच्चे बहुत प्यारे हैं,
वे गाते हैं, हँसते हैं
गुस्सा होते हैं, रूठते हैं
पर वे बच्चे हैं अभी
भटक जाते हैं कभी-कभी
भूल जाते हैं याद रखने की बातें
उन्हें खिलौना दे दो या बंदूक
सभी पर हाथ आजमाते हैं
उन्हें खेलने की, पढ़ने की
और बहस करने की पूरी छूट है
पर वे कभी-कभी इससे
आगे जाना चाहते हैं
गोलियाँ चलाना चाहते हैं
आग से खेलना चाहते हैं
बच्चे हैं अभी, बिल्कुल बच्चे
उन्हें नहीं मालूम
क्या करना चाहिए, क्या नहीं
उनकी जरूरतें समझनी हैं मुझे
उनकी बातें सुननी हैं मुझे
ताकि मेरा बगीचा महकता रहे

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Mirchiya Manch का कहना है कि -

अच्छा होता की आप अपनी पूरी कहानी ही लिख देते . इसे कविता का नाम नहीं दें .

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

acchi baaten ki hain aapne

डॉ० चन्द्र प्रकाश राय का कहना है कि -

subhash rai ji bahut achhi rachana hai .badhai

अविनाश वाचस्पति का कहना है कि -

बच्‍चों के जो समझ में आ जाए
उन्‍हें जीवन की अच्‍छाईयों से परिचित कराए
वही कविता है।

सदा का कहना है कि -

बच्चे हैं अभी, बिल्कुल बच्चे
उन्हें नहीं मालूम
क्या करना चाहिए, क्या नहीं
उनकी जरूरतें समझनी हैं मुझे
उनकी बातें सुननी हैं मुझे
ताकि मेरा बगीचा महकता रहे

गहरे भावों के साथ्‍ा सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

सदा का कहना है कि -

बच्चे हैं अभी, बिल्कुल बच्चे
उन्हें नहीं मालूम
क्या करना चाहिए, क्या नहीं
उनकी जरूरतें समझनी हैं मुझे
उनकी बातें सुननी हैं मुझे
ताकि मेरा बगीचा महकता रहे

गहरे भावों के साथ्‍ा सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

Anonymous का कहना है कि -

amrita je agar yah kavita nahi,to kavita kya hai? bahut sahajta se kavita yuyutsa ki vishwayaapi durgandh ke beech jeevan ki sugandh ko sahejati hai.amrita je yah kisi 'aap' ki 'kahani' nahhi hai,balki vishwamanav ki raksha ka mangal stotr hai.badhaai subhash!

manu का कहना है कि -

amrita je agar yah kavita nahi,to kavita kya hai?

क्या कहें...?


ताकि मेरा बगीचा महकता रहे ...!!

सुभाष जी को बधाई.हो ..

DR. SHIV SHANKAR MISHRA का कहना है कि -

amrita je agar yah kavita nahi,to kavita kya hai? bahut sahajta se kavita yuyutsa ki vishwayaapi durgandh ke beech jeevan ki sugandh ko sahejati hai.amrita je yah kisi 'aap' ki 'kahani' nahhi hai,balki vishwamanav ki raksha ka mangal stotr hai.badhaai subhash!

manu का कहना है कि -

:)


duggi pe duggi ho
yaa satte pe sattaa.....



.........
..
............................




koi farak nahin albattaaa.....



:)

M VERMA का कहना है कि -

एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कारों के हस्तांतरण की चिंता है कविता में ... यकीनन यह कविता है ... और बहुत सुन्दर कविता है.

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

“बच्चे हैं अभी, बिल्कुल बच्चे
उन्हें नहीं मालूम
क्या करना चाहिए, क्या नहीं
उनकी जरूरतें समझनी हैं मुझे
उनकी बातें सुननी हैं मुझे
ताकि मेरा बगीचा महकता रहे” ऐसा प्रतीत होता है कि कविता के माध्यम से कोई सत्य कथा लिख दी गई है. आपकी सुन्दर सरल अभिव्यक्ति बधाई की पात्र है. बहुत बहुत साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉय

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