जून 2010 की यूनिप्रतियोगिता में दूसरी स्थान की कविता सत्यप्रसन्न की है। सत्यप्रसन्न जून 2009 के यूनिकवि रह चुके हैं। इनकी कविताएँ बहुत बार हिन्द-युग्म पर प्रकाशित हुई है। 38 यूनिकवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह 'सम्भावना डॉट कॉम' में भी इनकी कविताएँ संकलित हैं।
पुरस्कृत कविताः मंत्र अक्षर हैं
मंत्र अक्षर हैं, लो शब्द को प्राण दो;
इस तमस को उजाले का वरदान दो।
वो लिखो जिससे अग-जग में हलचल मचे;
लेखनी को नया कोई अभियान दो।
व्यर्थ तौलो न ऐसी हवा को जिसे;
बाँध रखना अभी तक तो सीखा नहीं।
प्यास है अँजुरी में उलीचो नदी,
ओस से भी अरे कंठ भीगा कहीं।
आग है किन्तु; क्यों आँच आती नहीं;
एक तिनका भी वो क्यों जलाती नहीं।
शून्य होने लगी सारी संवेदना;
चोट कैसी भी मन को रुलाती नहीं।
आज के हाथ में कल की तलवार है;
जंग खाई हुई कुंद सी धार है।
रात की कोख़ में पल रहा है जो कल;
जन्म लेने से पहले ही बीमार है।
हैं उखड़ती चली जा रहीं सब जड़ें;
डँस रहीं हर दिशा से चपल नागिनें।
है समंदर ज़हर से भरा सामने;
कौन सी डोर को थाम साँसें गिनें।
बाड़ निर्भीक हो खेत को चर रही;
चाँदनी भी स्वयं चाँद से डर रही।
बाग़ के फूल तक तो अराजक हुए;
चूमते ही जिन्हें तितलियाँ मर रहीं।
एक काँटों भरी राह पर पाँव हैं;
क्या गहें; जल रही आज हर छाँव है।
हो गये हैं भयातुर नगर के नगर;
अधमरे हो गये गाँव के गाँव हैं।
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
लेखनी को नया कोई अभियान दो।
सुन्दर आह्वान
और फिर आग है तो आँच आयेगी ही
Ek dum zabardast..aaj ke daur me bahut hi prasangik..
एक काँटों भरी राह पर पाँव हैं;
क्या गहें; जल रही आज हर छाँव है।
हो गये हैं भयातुर नगर के नगर;
अधमरे हो गये गाँव के गाँव हैं।
...IN PANKTIYON MEN JAMANE KA DARD HAI.
बेहद धारदार....लय में काफी दिनों बाद इतनी सधी हुई कविता पढ़ी....ये अव्वल क्यों नहीं रही, आश्चर्य है...
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