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Friday, April 16, 2010

स्वयं को जानने के लिए


स्वयं को जानने के लिए
हम देखते हैं
बुजुर्गों की तस्वीरें।
रौब दार मूँछे,
घूँघट की मासूम हँसी
और झुर्रियों की दरारों में
हम ढूँढ़ते हैं
अपनी समानताएँ।
संदूक में
फिनायल गोली के साथ रखे
उनके शादी के जोड़े ,
काली पड़ी जरदोजी की साड़ियाँ,
पीली पगड़ी,
पुराने जेवरों की गठरी।

ये चीजें
हमारी धरोहर बन जाती हैं
इनमें महकती हैं
उनकी गाथाएँ
रीतियाँ,
जो सजाती हैं रंगोली
रोपती हैं आँगन में
तुलसी का बीरा
इनको
वो सौंपते हैं
आने वाली पीढ़ी को।
तीज, त्यौहार,रिश्तों के मौसम
अतीत बुनता है,
उस की एक नाजुक सी डोर
सौंपता है
वर्तमान को
हमारे चारों ओर
फैल जाते हैं संस्कार
और हम धनी हो जाते हैं।

वो बताते हैं
भूख पीढ़े की
घात अपनों की
सही नहीं जाती
उन्होंने सिखाया
सच के पन्ने भूरे हुए
पर अभी भी धडकते हैं
ये गुनगुनी बातें
सर्द परिस्थियों में
लिहाफ बन जाती हैं।

वो कतरा-कतरा
हममें ढलते हैं
शब्द, संस्कार, आकार
और वसीयत बन के
वो मरते नहीं, जब देह त्यागते हैं
अंत होता है उनका,
जब यादों के दरख्तों पर
खिलते है बहुत से फूल
पर उन के नाम का
एक भी नहीं।

कवयित्री- रचना श्रीवास्तव

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

सामाजिक परम्पराओं एवं जीवन मूल्यों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरण का सुन्दर वर्णन, रचना जी बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

bhawna का कहना है कि -

जब यादों के दरख्तों पर
खिलते है बहुत से फूल
पर उन के नाम का
एक भी नहीं।
very touching

दीपक 'मशाल' का कहना है कि -

सुन्दर भावों के बेहतरीन उदघाटन की परिणति है ये कविता... आभार.

M VERMA का कहना है कि -

जब यादों के दरख्तों पर
खिलते है बहुत से फूल
पर उन के नाम का
एक भी नहीं।
यादो के दरख्त के फूलो से हमारा सरोकार भी तो तभी तक होता है जब तक फल की आशा बरकरार होती है.
सरोकार बदलते ही .....
बहुत भावपूर्ण और अंतर्द्वन्द को जगाती रचना

neera का कहना है कि -

एक सहज-सुंदर रचना!

amita का कहना है कि -

तीज, त्यौहार,रिश्तों के मौसम
अतीत बुनता है,
उस की एक नाजुक सी डोर
सौंपता है
वर्तमान को
हमारे चारों ओर
फैल जाते हैं संस्कार
और हम धनी हो जाते हैं।

bahut sunder kavita hai rachna ji.........

Safarchand का कहना है कि -

कविता का कथ्य सहज, सुन्दर,मानवीय यथार्थ परक तो है ही --- इसके शीर्षक में ही काव्य का तिलस्म छुपा है. कवियत्री की सोच की प्रबुद्धता...बताती है की "स्वयं को जानने के लिए" ही अतीत सुरक्षित रखनेवाला साफ्टवेयर मनुष्य में भगवन ने क्यों बनाया है....बधाई बधाई बधाई.

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

अंत होता है उनका,
जब यादों के दरख्तों पर
खिलते है बहुत से फूल
पर उन के नाम का
एक भी नहीं।
bahut sundar abhivyakti, badhai,
saadar,
vinay

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

उनकी गाथाएँ
रीतियाँ,
जो सजाती हैं रंगोली
रोपती हैं आँगन में
तुलसी का बीरा
इनको
वो सौंपते हैं
आने वाली पीढ़ी को।
तीज, त्यौहार,रिश्तों के मौसम

यही सब तो यादें बन जाती है....सुंदर अभिव्यक्ति..रचना जी बहुत बहुत धन्यवाद

Anonymous का कहना है कि -

जब यादों के दरख्तों पर
खिलते है बहुत से फूल
पर उन के नाम का
एक भी नहीं।
पूरी कविता का निचोड है उक्त लाईने...बहुत ही भावपूर्ण रचना के लिए रचना जी को बधाई!

rachana का कहना है कि -

आप सभी का हृदय से धन्यवाद
आप के विचार मेरे लिए अमूल्य हैं ,
सादर
रचना

Guftugu का कहना है कि -

aaj hi apki kavita padi.bahut sundar upmaao se saji ek sudar abhivyakti.mubarakbaad.smita mishra

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