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Thursday, March 25, 2010

बाढ़ एक ख़बर है, और ख़बर के बाहर कुछ नहीं


बहुत लम्बे समय से हमने अपनी ओर से पाठकों को कुछ नहीं पढ़ाया। इसलिए हमने सोचा कि इसकी दुबारा शुरूआत बहुत असरकारी कविताओं से होनी चाहिए। बहुत पहले युवा कवि अच्युतानंद मिश्र की एक कविता 'ढेपा' हमने प्रकाशित की थी, जिसे पाठकों ने काफी सराहा। इस बार हम अच्युतानंद की 5 छोटी कविताएँ लेकर उपस्थित हैं, जिन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि जैसे कवि ने एक ही खेत में 5 तरह ही फसलें उगा दी है।


1 बाढ़

हर तरफ़ अथाह जल
जैसे डूब जाएगा आसमान
यही दिखाता है टी०वी०
एक डूबे हुए गाँव का चित्र
दिखाने से पहले
बजाता है एक भड़कीली धुन
और धीरे-धीरे डूबता है गाँव
और तेज़ बजती है धुन...

एक दस बरस का अधनंगा बच्‍चा
कुपोषित कई दिनों से रोता हुआ
दिखता है टी०वी० पर
बच्‍चा डकरते हुए कहता है--
भूखा हूँ पाँच दिन से
कैमरामैन शूट करने का मौक़ा नहीं गँवाता
बच्‍चा, भूखा बच्‍चा
पाँच दिन का भूखा बच्‍चा
क़ैद है कैमरे में ...

टी०वी० पर फैलती तेज़ रोशनी
बदल जाता है दृश्‍य
डूबता हुआ गाँव डूबता जाता है
बच्‍चा, भूखा बच्‍चा
रह जाता है भूखा
हर तरफ़ है अथाह जल
हर तरफ़ है अथाह रौशनी ...

2 ख़बर

डूबता हुआ गाँव एक ख़बर है
डूबता हुआ बच्‍चा एक ख़बर है
ख़बर के बाहर का गाँव
कब का डूब चुका है
बच्‍चे की लाश फूल चुकी है
फूली हुई लाश एक ख़बर है ...

3 प्रतिनिधि

जब डूब रहा था सब-कुछ
तुम अपने मज़बूत क़िले में बंद थे
जब डूब चुका है सब-कुछ
तुम्‍हारे चेहरे पर अफ़सोस है
तुम डूबे हुए आदमी के प्रतिनिधि हो...

4 भूलना

एक डूबते हुए आदमी को
एक आदमी देख रहा है
एक आदमी यह दृश्‍य देख कर
रो पड़ता है
एक आदमी आँखें फेर लेता है
एक आदमी हड़बड़ी में देखना
भूल जाता है
याद रखो
वे तुम्‍हें भूलना सिखाते हैं ...

5 उम्‍मीद

एक गेंद डूब चुकी है
एक पेड़ पर बैठे हैं लोग
एक पेड़ डूब जाएगा
डूब जाएंगी अन्‍न की स्‍मृतियाँ
इस भयंकर प्रलयकारी जलविस्‍तार में
एक-एक कर डूब जाएगा सब-कुछ ...
एक डूबता हुआ आदमी
बार-बार ऊपर कर रहा है अपना सिर
उसका मस्तिष्‍क अभी निष्क्रिय नहीं हुआ है
वह सोच रहा है लगातार
बचने की उम्‍मीद बाक़ी है अब भी ...

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कविताप्रेमी का कहना है :

अपूर्व का कहना है कि -

अद्भुत कविताएं..ऐसी झिंझोड़ देने वाली कविताओं की कमी अक्सर खटकती रहती है..
बाढ़ की व्यथा तो मानव के सभ्यता के इतिहास जितनी पुरानी है..मगर उसे देखने और उससे निपटने के तरीकों मे बदलाव होता रहता है..विकास के तमाम ढोल-नगाड़ों और तमाशों के बावजूद पिछले कुछ हजार सालों मे हम कितना आगे आये हैं यह ऐसी कविताओं से समझ आता है..
हर तरफ़ है अथाह जल
हर तरफ़ है अथाह रौशनी ...
विेशेषकर मीडिया के कुरूप और संवेदनहीन होते जा रहे होते जा रहे टोटकों का यथार्थ भी विचलित करता है

ख़बर के बाहर का गाँव
कब का डूब चुका है
बच्‍चे की लाश फूल चुकी है
फूली हुई लाश एक ख़बर है .

कविताएं सिर्फ़ अवसाद को ही स्वर नही देतीं वरन्‌ सतत संघर्ष के साथ पुनरोदय के मानवीय विश्वास का दीपक भी जलाती हैं

उसका मस्तिष्‍क अभी निष्क्रिय नहीं हुआ है
वह सोच रहा है लगातार
बचने की उम्‍मीद बाक़ी है अब भी ...

अपने समय के विद्रूप होते जा रहे चेहरे को टटोलने के लिये अच्युतानंद जी की कविताओं को और गहरे से पकड़ना पड़ेगा..

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