अच्युतानंद मिश्र
अच्युतानंद मिश्र मूलतः कवि हैं। इनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। कविता के साथ-साथ आलोचना में भी सक्रिय। हाल ही में इनकी एक आलोचना पुस्तिका 'नक्सलबारी आन्दोलन और हिंदी कविता' प्रकाशित हुई है।
पता- फ्लैट नं॰ 227, पॉकेट-1, सेक्टर-14, द्वारका, नई दिल्ली-110075
मो॰- 9213166256
रात को अच्युतानंद मिश्र मूलतः कवि हैं। इनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। कविता के साथ-साथ आलोचना में भी सक्रिय। हाल ही में इनकी एक आलोचना पुस्तिका 'नक्सलबारी आन्दोलन और हिंदी कविता' प्रकाशित हुई है।
पता- फ्लैट नं॰ 227, पॉकेट-1, सेक्टर-14, द्वारका, नई दिल्ली-110075
मो॰- 9213166256
पुरानी कमीज के धागों की तरह
उघड़ता रहता है जिस्म
छोटुआ का
छोटुआ पहाड़ से नीचे गिरा हुआ
पत्थर नहीं
बरसात में मिटटी के ढेर से बना
एक भुरभुरा ढेपा* है
पूरी रात अकड़ती रहती है उसकी देह
और बरसाती मेढक की तरह
छटपटाता रहता है वह
मुँह अंधेरे जब छोटुआ बड़े-बड़े तसलों पर
पत्थर घिस रहा होता है
तो वह इन अजन्मे शब्दों से
एक नयी भाषा गढ़ रहा होता है
और रेत के कणों से शब्द झड़ते हुए
धीरे-धीरे बहने लगते हैं
नींद स्वप्न और जागरण के त्रिकोण को पार कर
एक गहरी बोझिल सुबह में
प्रवेश करता है छोटुआ
बंद दरवाजों की छिटकलियों में
दूध की बोतलें लटकाता छोटुआ
दरवाजे के भीतर की मनुष्यता से बाहर आ जाता है
पसीने में डूबती उसकी बुश्शर्ट
सूरज के इरादों को आंखें तरेरने लगती हैं
और तभी छोटुआ
अनमनस्क सा उन बच्चों को देखता है
जो पीठ पर बस्ता लादे चले जा रहे हैं
क्या दूध की बोतलें,अखबार के बंडल
सब्जी की ठेली ही
उसकी किताबें हैं...
दूध की खाली परातें
जूठे प्लेट, चाय की प्यालियां ही
उसकी कापियां हैं...
साबुन और मिट्टी से
कौन सी वर्णमाला उकेर रहा है वह ...
तुम्हारी जाति क्या है छोटुआ
रंग काला क्यों है तुम्हारा
कमीज फटी क्यों है
तुम्हारा बाप इतना पीता क्यों है
तुमने अपनी कल की कमाई
पतंग और कंचे खरीदने में क्यों गंवा दी
गांव में तुम्हारी माँ,बहन और छोटा भाई
और मां की छाती से चिपटा नन्हका
और जीने से उब चुकी दादी
तुम्हारी बाट क्यों जोहते हैं...
क्या तुम बीमार नहीं पड़ते
क्या तुम स्कूल नहीं जाते
तुम एक बैल की तरह क्यों होते जा रहे हो...
बरतन धोता हुआ छोटुआ बुदबुदाता है
शायद खुद को कोई किस्सा सुनाता होगा
नदी और पहाड़ और जंगल के
जहां न दूध की बोतलें जाती हैं
न अखबार के बंडल
वहां हर पेड़ पर फल है
और हर नदी में साफ जल
और तभी मालिक का लड़का
छोटुआ की पीठ पर एक धौल जमाता है -
साला ई त बिना पिए ही टुन्न है
ई एत गो छोड़ा अपना बापो के पिछुआ देलकै
मरेगा साला हरामखोर
खा-खा कर भैंसा होता जा रहा है
और खटने के नाम पर
माँ और दादी याद आती है स्साले को
रेत की तरह ढहकर
नहीं टूटता है छोटुआ
छोटुआ आकाश में कुछ टूंगता भी नहीं
न माँ को याद करता है न बहन को
बाप तो बस दारू पीकर पीटता था
छोटुआ की पैंट फट गई है
छोटुआ की नाक बहती है
छोटुआ की आंख में अजीब सी नीरसता है
क्या छोटुआ सचमुच आदमी है
आदमी का ही बच्चा है ...
क्या है छोटुआ
पर
पहाड़ से लुढकता पत्थर नहीं है छोटुआ
बरसात के बाद
मिट्टी के ढेर से बना ढेपा है वह
धीरे-धीरे सख्त हो रहा है वह
बरसात के बाद जैसे मिट्टी के ढेपे
सख्त होते जाते हैं
सख्त होता जा रहा वह
इतना सख्त
कि गलती से पाँव लग जाएँ
खून निकल आए अंगूठे से ...
*ढेपा- ढेला
कवि- अच्युतानंद मिश्र
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
ऐसी कविताओं की प्रस्तुति के लिए हिंद युग्म और कवि का शुक्रिया. सीखने समझने और चेतना सामाजिक के लिए बहुत कुछ है अच्युतानंद मिश्र जी की इस कविता में, फिर भी समझ ना आये तो:
"धीरे-धीरे सख्त हो रहा है वह
........ इतना सख्त
कि गलती से पाँव लग जाएँ
खून निकल आए अंगूठे से ...
बहुत संवेदन्शील अभिव्यक्ति...बाल मजदूरी का यथार्थ चित्रण! मिश्र जी बहुत-बहुत बधाई
sachmuch ek shandar abhibyakti hai.sare bache chahe kisi jat ke ho kisi dharm ke ho ek hi bhanae hoti hai. majdoor bache ki sambedanshilata har bhasha me ek jaisi hoti hai. kabi ne chotu ke madhyam se sansar ke sare bachon ka ek shandar bastwik chitra manaspatal par ankit kar diya hai jo marmsparshi hai.badhai.
kishore kumar jain
sachmuch ek shandar abhibyakti hai.sare bache chahe kisi jat ke ho kisi dharm ke ho ek hi bhanae hoti hai. majdoor bache ki sambedanshilata har bhasha me ek jaisi hoti hai. kabi ne chotu ke madhyam se sansar ke sare bachon ka ek shandar bastwik chitra manaspatal par ankit kar diya hai jo marmsparshi hai.badhai.
kishore kumar jain
अच्छी रचना। बधाई।
वक़्त से पहले ही पक जाती है कच्ची उम्रें
मुफ़लिसी नाम है बचपन में बड़ा होने का।
इतनी शक्तिशाली और संवेदनापूर्ण कविताएं ही हिंद-युग्म के साहित्यिक स्तर को और मुखर और प्रभावी बनाती हैं....बेमिसाल!!!
वाह भाई ग़ज़ब...पहले बस समझने के प्रयास में पढ़ रहा था इस कविता को अंत तक जाते जाते भाव विभोर हो गया ..
लाज़वाब प्रस्तुति..दुबारा पढ़ने से रोक नही पाया खुद को .मेरे पास ज़्यादा बड़े शब्द नही है इस कविता की तारीफ़ करने के लिए बस इतना कहूँगा की दिल मे बस गई आपकी यह संवेदना से पूर्ण प्रस्तुति...बधाई हो
अदभुद कविता
कवि को बधायी
सुन्दर, सम्वेदनशील, सार्थक कविता के लिये बधाई ।
आप की कविता ने स्तब्ध कर दिया .बहुत दिनों बाद पढ़ी इस विषय पर इतनी सुंदर कविता.बधाई बधाई
हिंदी युग्म को शुक्रिया के इनती सुंदर कविता प्रकाशित की
सादर
रचना
इतना सख्त
कि गलती से पाँव लग जाएँ
खून निकल आए अंगूठे से ...
Ek 'Potential' 'Apradhi' hota ja rah hai chotuwa.
kyunki jinko wo kitabein samajhta hai darsal wo kitabein nahin hain aur unmein 'Netikta' ka koi 'Lesson' nahin hai.
Ek hi 'Lesson' hai jiska baar baar revision karta hai wo. Living on the edge.
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