11॰ गुण-अवगुण
नारी
रोटी, कपड़े, मकान से
अधिक काम
तो पहले भी करती थी,
अपना ही नहीं
अनेक का पेट भरती थी;
मगर जब से
तनख्वाह घर लाने लगी
आसमान सर पर उठाने लगी है,
पहले लज्जा
उसका भूषण था
कवच था
अब तो अपनी
बेहयाई से
पुरुष को भी लजाने लगी है
पुरुष के सभी अवगुण
धड़ल्ले से अपनाने लगी है।
12॰ औरत के समझने के लिए
औरत को
समझने के लिए
औरत होना
जरूरी नहीं है
जरूरी है
पुरुष न रहना
इन्सान बन जाना,
उससे भी बेहतर है
बच्चा बन जाना ।
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
औरत के समझने के लिए:
बहुत सुंदर, सार गर्भित. श्याम जी धन्यवाद् और आभार.
गुण - अवगुण:
"नारी रोटी, कपड़े, मकान से अधिक काम
तो पहले भी करती थी, अपना ही नहीं
अनेकों का पेट भरती थी; मगर जब से
तनख्वाह घर लाने लगी है; कोई-कोई पुरुष के अवगुण भी अपनाने लगी है।"
अगर कविता इस तरह होती तो मैं समर्थन कर सकता हूँ आपकी कविता के विरोध में हूँ.
खुद पुरूष तो इसे अवगुण नहीं मानते।
तनख्वाह घर लाने लगी
आसमान सर पर उठाने लगी है,
पहले लज्जा
उसका भूषण था
कवच था
अब तो अपनी
बेहयाई से
पुरुष को भी लजाने लगी है
पुरुष के सभी अवगुण
धड़ल्ले से अपनाने लगी है।
******************
औरत को
समझने के लिए
औरत होना
जरूरी नहीं है
जरूरी है
पुरुष न रहना
इन्सान बन जाना
********************
मुझे नहीं लगता दोनों का भाव मेंल खाता है।
sarthak rachana..ek manviy sandesh deti hui rachana..shyam ji dhanywaad swikare is sundar rachana ke liye..
हुजूर अगर मेल खाता तो एक कविता होती -
अब दो हैं तो मेल होने की तम्मना न रखिये
श्याम सखा श्याम
मनोज कुमार said...
********************
मुझे नहीं लगता दोनों का भाव मेंल खाता है।
GOOD ONE.
AURAT AB AADMI HO GAYI H. USKO AB ROKNA MANA H. WAH CHAHE TO BACHE BHI PAIDA NAHI KAREGI AUR KAHEGI KI KARAVA LO AUR HO BHI RAHE H. BHATIYATA KA ANT DIKHAI DE RAHA H.
सभी औरतों को दोष देना न्याय नहीं ! जैसे कई पुरुष [बाप] बलात्कारी हैं तो कई स्त्री स्वतन्त्रता के विरोधी भी है। वहीं ऐसे पुरुष भी हैं जिनके समर्थन की बदौलत ही स्त्री नई_नई उंचाईयां छू रही है। कोई पति के रुप में है तो कोई पिता या भाई के रुप में ! इन सभी को तो उस बलात्कारी की गिनती में नहीं गिना जा सकता? वैसे ही सभी स्त्रीयों को भी एक चश्में से नहीं आंका जा सकता।
पहली रचना के माध्यम से श्याम जी आप यह दर्शाना चाहते हैं कि नौकरी करना और तनख्वाह लाना हीं सारी बीमारियों का जड़ है...और इस बात के मैं सख्त खिलाफ़ हूँ। मैं इस मामले में "राकेश" जी का समर्थन करता हूँ।
वहीं दूसरी रचना मुझे बेहद पसंद आई। इसके लिए बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
दोस्तो[ राकेश.सुनीता व विश्वदीपक जी] जब हम कोई बात कहते हैं जैसे स्त्री कोमल होती है पुरूष कठोर तो हम बहुमत की बात कर अहे होते हैं अपवाद की नहीं..
दोस्तो मेरी ये रचनाएं मेरे कविता संग्रह‘औरत को समझने के लिये ’ से हैं जो एक रात में लिखी गई ६४ कवित च ४ अन्य कवितओं सहित,२००५ में प्रकाशित हुआ था। उस पर मुझे सुश्री चित्रा मुदगल जी,शुश्री डॉ० शरद सिंह सहित कुल ७२ प्रबुद्ध महिलाओं व ्दो पुरूषों के पत्र प्राप्त हुए।डॉ० शरद सिंह ने इसकी समीक्षा भी लिखी जो webdunia.com par post हुई।
चित्रा मुदग्ल जी के पत्र
का एक अंश उद्धृत कर रहा हूं-स्त्री विमर्श के लिये ये बिगुल हैं कविताएं।चक्षु खोलती, मर्म-भेदती.सच का सामना करने को सन्नद करती।कोई सचमुच आम फ़हम भाषा में भी [ऐसी मार्मिक] कविताएं लिख सकता है.अदभुत है यह क्षमता नमन।और कुछ क्या कहूं?साहिर याद हो आए औरत ने जनम...स्त्री क्या है आपकी नजरों से देखे कोई..यह पंक्ति..लड़के सिर्फ़ लड़के पैदा होते है-लड़के ही रह्ते हैं उम्रभर।नहीं मैं कहना चाहती हूं कुछ लड़के आप जैसे भी होते हैं।सही मायने में पुरूष की परिभाषा के प्रयाय क्या कहूं बहुत बधाई इस सृजनात्मक विस्फ़ोट के लिये’सदैव ऐसा ही लिखें और सच कहने कए साहस को जिन्दा रखें-
आदरणीय श्याम जी आपने "गुण-अवगुण" कविता के सन्दर्भ में स्पष्टीकरण दिया इसलिए मैं अपनी टिपण्णी फिर से प्रेषित कर रहा हूँ. कहने और लिखने की स्वच्छंदता के आधार पर हर व्यक्ति अपनी निजी राय दे सकता है और अपनी भावनाओं और विचारों को कविता के माध्यम से कह सकता है. आपने कविता लिखी और मैंने अपनी राय दी. पाण्डेय जी और आचार्य रमेश जी को आपकी कविता बहुत अच्छी लगी, ७२ प्रबुद्ध महिलाओं व दो पुरूषों ने भी आपकी कविता की तारीफ की.
चित्रा मुदग्ल जी ने कहा "सच कहने कए साहस को जिन्दा रखें" इसलिए आप अपनी कविता को सही ठहरा रहे हैं लेकिन मैं आपको सम्मान पूर्वक कहना चाहूँगा कि मुझे "औरत के समझने के लिए" बहुत-बहुत अच्छी लगी लेकिन "गुण-अवगुण" ने मुझे आहत किया है.
श्याम जी आपकी कविताएं सशक्त और अर्थपूर्ण हैं इसमें कोई दो राय नहीं। एक रचना को कई द्रिश्टिकोण से देखा जा सकता है। 'बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी'वही हाल है। बात केवल स्त्री के विभिन्न पहलुओं को लेकर निकली है जो आपकी कविता की सार्थकता को साबित करती है। वह रचना ही क्या जो लोगों को उद्वेलित न कर पाए। 'औरत को समझने के लिए'बेहद सुंदर रचना है। आपको बहुत-बहुत बधाई!
donon hi kavitaayen bahut hi sundar hain ,agar kavi me saahas hai aurat ko samjhne ka ,to sach se bhi rubarooo hote chaliye ,aaj ke pariprekshay kuch bhi kahin bhi galat nahi hai mai aapki kavitaaon ka anumodan karti hoon ,aur rakesh ji ki tippniyon se sahmat nahi hoon .tasweer ka doosra roop bhi hota hai ,koi koi nahi amooman yahi ho raha hai .
नीलम जी यहाँ कविताओं पर अपनी राय देनी है टिपण्णी पर नहीं. आपको कवितायेँ पसंद आयीं, श्याम जी और हिंदी युग्म का प्रयास सार्थक रहा, दोनों को मेरी तरफ से हार्दिक बधाई.
औरत को
समझने के लिए
औरत होना
जरूरी नहीं है
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पुरुष न रहना
इन्सान बन जाना,
उससे भी बेहतर है
बच्चा बन जाना ।
कितने सुंदर तरीके से आप ने औरत को समझने की बात कह दी कितने कोमल भाव बहुत खूब
बधाई आप को
सादर
रचना
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