मेरे ईश्वर की
सबसे खूबसूरत रचना
मेरा सूरज, मेरा चंदा
कुछ परेशान-सा है...
आज कल देखती हूँ
एक ही सा भाव ...
वही भद्दी सलवटें
थके हुए से माथे पर...
वही उदास चेहरा
शून्य में ताकती
बोझिल सी पुतलियाँ,
जो यदा-कदा
चमक उठती हैं
छोटी-छोटी सफलता पर..
लेकिन फिर...
सोख लेती है "चिंता"
सारा उजाला आँखों से
"बेटी" के होने से
कहीं ज्यादा बड़ी है
बेटी के "समझदार"
होने की समस्या....
वो नहीं जानती ...
बेटी के "वैचारिक" होने पर
खुश हो या....
क्योंकि
उसे समझा नहीं पाती
उन रीतियों का औचित्य
जिन्हें उसने स्वयं भी
नाकारा था कभी...
उसे रिझा नहीं पाती
सुहावने दिखने वाले
सपनों के झुनझुने से
खोखली रूढ़ियों को
खूबसूरत रस्मों का
जामा नहीं पहना पाती
शायद इसीलिए....
बूढ़ा-सा दिखने लगा है
मेरी माँ का चेहरा ...
-स्मिता पाण्डेय
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
खोखली रूढ़ियों को
खूबसूरत रस्मों का
जामा नहीं पहना पाती
शायद इसीलिए....
बूढ़ा-सा दिखने लगा है
मेरी माँ का चेहरा ...
sunder ,ati sunder rachana hai .......wastvik maa ka chehra!!!
वाह भाई क्या खूब लिखा है स्मिता जी आपने..सच है कि बेटियों को वैचारिक बनाओ तो भी लड्कियो के लिये जमाने ने अपनी सोच नही बदली हैं/..अब जमाना वह भी न रहा जब बेटियों को जबर्दस्ती किसी के साथ भी ब्याह दिया जाता था. अब तो बेटियां इस लायक हो गई है कि अपना बुरा भला खुद सोचने लगी हैं..लेकिन समाज अब भी बेटियों के लिये वैचारिक नही हो पाया है/ मां तो मां ही है...बधाई सुंदर रचना के लिये !
मान्यवर ,
विचार तो सबमें होते हैं परन्तु जो उसे काव्य में पिरोये वही कवि बन जाता है |
काव्य रचना सामान्य नहीं होती, उसके नियमों को जानकार प्रयास करने चाहिए, साहित्यिक ज्ञान होना जरुरी हो जता है |
रचना में कथ्य के अतिरिक्त कोई विशेष बात नहीं |
अच्छी आरम्भ की शुबेक्षा
Sundar Rachana....Unnat lekhan ki Shubhkaamane!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
लेकिन फिर...
सोख लेती है "चिंता"
सारा उजाला आँखों से
"बेटी" के होने से
कहीं ज्यादा बड़ी है
बेटी के "समझदार"
होने कि समस्या....
माँ के चेहरे की उदासी और एक बेटी की अभिव्यक्ति...बहुत खूब....
स्मिता बेटा...
अपनी काफी पहले की कविता पर हमारा कमेन्ट देखना अभी...
अभी ...
काव्य रचना इतनी सामान्य भी होती देखी है की महज ...
हां,
महज .....
नियम जानकर ही कवि कहलवाया जा सकता है...
महज नियम..
स्मिता की खास बात यह है कि ये बहुत ही हौले से अपनी बात रख जाती हैं। कथ्य को संप्रेषित करने के लिए जो भूमिका बनाती हैं वो लाजवाब होता है।
smita bahut hi achchi kavita likhi hai man ka chehra such main samay se pahle hi bura ho jata hai bahut bhi sunder
लेकिन फिर...
सोख लेती है "चिंता"
सारा उजाला आँखों से
"बेटी" के होने से
कहीं ज्यादा बड़ी है
बेटी के "समझदार"
होने कि समस्या
bahut khub
amita
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