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Thursday, February 11, 2010

मेरी मौत के दिन


मेरी मौत के दिन
तुम्हें हिचकियाँ नहीं आयेंगीं ,
और
तुम्हारी आँखों से लावे की नदियाँ सूख गयी होंग़ीं -
उस दिन मैं मुर्गियों की तरह
दूकानों में बिक रहा होऊँगा ,
मांस के टुकड़ों में , तोल तोल कर ,
ग्लानि से भरा हुआ , धूप में कपड़ों के साथ
सूखता मिलूँगा -
और मेरी घोर नास्तिक आस्थायें
ईश्वर के सामने नंगी खड़े होने से कतरा रही होंगीं

उस दिन मैं
खाई के मुहाने पर
अपने कंधे पर आसमान लिये खड़ा रहूँगा
और तुम
नीचे झील में खड़ी मुझे पुकारती होगी
हमारे बीच सिर्फ़ एक कदम की दूरी होगी,
और उस एक कदम पर टिका होगा
सारी दुनिया का भविष्य -

तुम जान जाओगी-
मेरे अंत की पहचान के कई तरीके हैं
जब नदी में बहती हुई
मेरी टोपी मिले , और तुम
न देख पाओ मुझे चलते हुए
पानी के भीतर -
जब तितलियों के पंखों पर
बिछा रंग मेरी राख लगे
और हवा में बहते हुए मुझे
फेफड़ों में भरने पर घुटने लगे दम -
यकीन मानो ,
उस समय जलाए जा रहे
सारे पुतले -
और पेड़ों की तरह गिर रहे सारे धड -
मेरे ही होंगें
पर तुम चिंता मत करना
मेरी मौत की भनक भी नहीं लगेगी किसी को
आज से कई सालों तक
नदी , तितलियाँ और फुटपाथ
खामोश रहेंगे -

तुम मु्झे जलाना या दफ़नाना मत,
मुझे गला देना-
और बहा देना उसी नदी में -
मैं चला जाऊँगा पाताल में
सशरीर-
जिस दिन गर्मी
हो जायेगी बर्दाश्त से बाहर,
फ़िर जन्म लूँगा मैं -
उस दिन मैं भाप बनकर
चीर डालूँगा धरती का सीना-

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

जिस दिन गर्मी
हो जायेगी बर्दाश्त से बाहर,
फ़िर जन्म लूँगा मैं -
उस दिन मैं भाप बनकर
चीर डालूँगा धरती का सीना...सुंदर रचना के लिये बधाई !

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj का कहना है कि -

जिस दिन गर्मी हो जायेगी बर्दाश्त से बाहर, फ़िर जन्म लूँगा मैं - उस दिन मैं भाप बनकर चीर डालूँगा धरती का सीना.....वाह! क्या लिखा है...धन्यबाद इस सुन्दर रचना के लिए

शोभा का कहना है कि -

bahut dino baad apko padha per dil kuch dukhi sa ho gaya. kisi achhe din per kavita likhiye.

anubhooti का कहना है कि -

ACHHI RACHANA .........
मेरी घोर नास्तिक आस्थायें
ईश्वर के सामने नंगी खड़े होने से कतरा रही होंगीं
'NAASTIK ASTHAVADI HO KAR BHEE EESHWAR KE ASTITVA KO SWEEKARTI BHAVANON SE POORIT PRATEET HOTI RACHNA'

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

आलोक जी जितने खूबसूरत भाव है उससे कहीं बढ़ कर आपने शब्द चुने है जो इस रचना में जान डाल देते है...मृत्यु और उसके बाद पुनर्जन्म की कहानी बहुत बेहतरीन तरीके से भावनाओं के साथ दिल के दरवाजे से हम तक पहुँची हैं..इस सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई....

Unknown का कहना है कि -

अत्यधिक प्रभावशाली और दमदार शब्दों के प्रयोग से इस कविता में एक शक्ति सी आ गयी है .... जो पढने वाले के मन मस्तिषक को जकझोर देती है ....
मेरी तरफ से मन में इस व्यापक प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए आपका धन्यवाद और बधाई .... :)

- स्वाति

Harihar का कहना है कि -

पर तुम चिंता मत करना
मेरी मौत की भनक भी नहीं लगेगी किसी को
आज से कई सालों तक
नदी , तितलियाँ और फुटपाथ
खामोश रहेंगे -

जबरदस्त रचना आलोक जी! बधाई

विश्व दीपक का कहना है कि -

उस दिन मैं
खाई के मुहाने पर
अपने कंधे पर आसमान लिये खड़ा रहूँगा
और तुम
नीचे झील में खड़ी मुझे पुकारती होगी
हमारे बीच सिर्फ़ एक कदम की दूरी होगी,
और उस एक कदम पर टिका होगा
सारी दुनिया का भविष्य -

एक कदम में पूरी खाई पाटी जा सकती है, ऐसा पहले कभी सोचा नहीं था। आलोक जी, आप हर बार कुछ नई और कुछ विचारोत्तोजक पंक्तियाँ लेकर आते हैं। रचना की हरेक पंक्ति पसंद आई..... बस मुझे "टोपी" का इस्तेमाल सही नहीं लगा... ऐसा लगा कि दूसरी दुनिया में चलते-चलते किसी ने मुझे इस दुनिया में ढकेल दिया हो। वैसे यह मेरा मन्तव्य है..

आखिरी पंक्तियों के बारे में क्या कहूँ। दिल चीर के निकल गई, ये आपकी धरती चीरने वाली बात।

बधाई स्वीकारें!
-विश्व दीपक

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

अभी बाबा के दरबार से आ रहा हूँ..मुझे ऐसी कविता की तलाश है जिसे भांग छानकर पढूं और समझ जाऊं!..आपकी कविता को समझने के लिए होश में रहना जरूरी है.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आलोक शंकर पिछले 2 सालों से निष्क्रियता से कविता लिख रहे हैं। लेकिन मुझे इस बात का संतोष है कि इनका लेखन वयस्कता की ओर बढ़ रहा है। खाई पे खड़े होने और केवल एक कदम की दूरी पर भविष्य के टिके होने का बिम्ब अपने बहुत सी बातें समेटे है। आप रचनाकर्म में दुबारा क्रियाशील हों, आपकी कलम कविताओं के नये क्षितिज को रोशनी दिखाने वाली है।

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