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Tuesday, February 23, 2010

मैं और मेरी संवेदना का अंतर


प्रतियोगिता की पाँचवीं कविता प्रतियोगिता में दूसरी बार भाग ले रहे और हिन्द-युग्म पर पहली बार प्रकाशित हो रहे उमेश्वर दत्त "निशीथ" की है। 9 सितम्बर 1962 को बाराबंकी, उत्तर प्रदेश में जन्मे उमेश्वर दत्त मिश्र "निशीथ" बड़ोदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक में प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। एम.कॉम.,सी.ए.आई.आई.बी.,बैंकिंग उन्मुख हिन्दी प्रमाण पत्र, सी.आई.सी, सी.डब्लू.डी.एल. जैसी शिक्षा प्राप्त कर चुके निशीथ की कविताएँ राष्ट्रीय स्तर के कई काव्य-संग्रहों में स्थान पा चुकी हैं। प्रमुख रूप से हास्य-व्यंग्य एवं गीत, छंद, लिखने वाले उमेश्वर ने कई काव्य-संग्रहों के संपादन में सहयोग भी दिया है। उमेश्वर कई साहित्यिक और गैरसाहित्यिक संस्थाओं से भी सम्बद्ध हैं।

पुरस्कृत कविता: मेरी संवेदना

जब सूरज
छुप गया कुहरे के डर से,
नहर पुल पर
काँप रही थी इस्त्री करती लड़की
झीने वस्त्रों में
चस्पा हो जाती हर एक नजर।
रेल की छुक-छुक के साथ
मूंगफली, रेवड़ी,
या गुटखा की आवाज लगाता बचपन।
काँपती हथेली फैला देता
लाठी के सहारे खड़ा बुढ़ापा।
ढाबे के कोने में
बर्तन मलता छोटू,
चुपके से गटक लेता जूठे पनीर का टुकड़ा।
रात के धुंधलके में
चौराहे के छोर पर,
इशारे से रोक कर कार,
बैठ जाती किसी घर की इज्जत।
तब मेरी संवेदना
पढ़ लेती है
विवशता की भाषा,
पर क्यों नहीं समझता मैं
संवेदना की भाषा
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पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।

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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

इशारे से रोक कर कार,
बैठ जाती किसी घर की इज्जत।
तब मेरी संवेदना
बहुत ही संवेदनशील रचना के लिये बह्त-बहुत बधाई!

रंजना का कहना है कि -

निःशब्द करती अद्वितीय रचना मन को छूकर झकझोर गयी.......

amita का कहना है कि -

तब मेरी संवेदना
पढ़ लेती है
विवशता की भाषा,
पर क्यों नहीं समझता मैं
संवेदना की भाषा
bahut sunder rachna badhai

Unknown का कहना है कि -

तब मेरी संवेदना
पढ़ लेती है
विवशता की भाषा,
पर क्यों नहीं समझता मैं
संवेदना की भाषा
bahut sunder ...ye samvedna ki bhasha ka anuwad achha hai

रचना प्रवेश का कहना है कि -

बहुत हि मार्मिक ओर सवेन्दन शील कविता है ,्भाव दिल की गहराइ तक छू गये

तब मेरी संवेदना
पढ़ लेती है
विवशता की भाषा,
पर क्यों नहीं समझता मैं
संवेदना की भाषा........man ko jhakjhor diya

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