14
जग में कुछ भी तेरा है क्या
जोगी-वाला फेरा है क्या
नाहक आँखें बरसाती हैं
बिरहन रैन, सवेरा है क्या
घर अपना, पर हम बेगाने
वक्त का उलटा फेरा है क्या
लगता बीवी-बच्चों के बिन
घर भूतों का डेरा है क्या
घूम रहे विषधर बस्ती में
देखो, कहीं सपेरा है क्या
सबकी ही सुनता है वो 'श्याम’
तूने उसको टेरा है क्या है
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
5 कविताप्रेमियों का कहना है :
बढ़िया है श्याम भाई ....
बहुत खूब श्याम सखा जी को इस के लिये बधाई। धन्यवाद्
बहुत ही सुन्दर रचना , श्याम जी को बहुत बहुत बधाइयाँ , धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
sunder arth purn .......badhai
घर अपना, पर हम बेगाने
वक्त का उलटा फेरा है क्या
बहुत खूब....सुंदर रचना श्याम जी..
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)