यूनिप्रतियोगिता आयोजित करने के पीछे हिंद-युग्म का उद्देश्य जहाँ पाठकों को अच्छी कविताओं का रसास्वादन कराना होता है, वहीं नयी काव्यप्रतिभाओं का पल्लवन और उन्हे हिंद-युग्म के मंच से जोड़ना भी होता है।
नये कवियों से पाठकों का परिचय कराने की इसी शृंखला में नया नाम जुड़ा है प्रशांत प्रेम का, जिनकी कविता को दिसंबर माह की यूनिप्रतियोगिता में तीसरा स्थान मिला।
२३ जून १९७७ को जन्मे प्रशांत दृश्य-श्रव्य संचार माध्यम मे डिप्लोमा प्राप्त करके फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र से जुड़ गये। प्रशांत अलग-अलग विधाओं के द्वारा अपने विचार व्यक्त करने का प्रयास करते हैं। किंतु कविता इनके दिल की सबसे करीबी विधा है जो मूलतः स्वांतः सुखाय होती है। फ़िलहाल दिल्ली में एक कम्पनी से बतौर सहायक निर्देशक जुड़े प्रशांत अपनी फ़िल्म बनाने के लिये प्रयासरत हैं।
प्रस्तुत पुरस्कृत कविता इन्होंने बिहार की बाढ़ देख कर लौटने के बाद लिखी थी।
पुरस्कृत कविता: उनकी मेहरारुएँ
नहीं
अब नदी में कोई उबाल नहीं,
पटरी से उतर गया है पानी,
ऊँचे हाई-वे पर पनाह लिए लोग
लौटने लगे हैं घरों की तरफ
अपने-अपने बाल-बच्चे, ढोर-डंगर और मेहरारुओं के साथ।
मेहरारुओं को अभी करना है बहुत काम
सबसे पहले तो साफ़ करनी है घरों से कीचड़
परिवार बस सके ठीक से
फिर
साफ़ करना है बथान
ढोर-डंगर बँध सके ठीक-से
फिर
साफ़ करनी है दुआर
मेहमान आये तो बैठ सके ठीक-से
फिर
ठीक करना है चूल्हा-चौका
बर्तन-भांडा
कपड़े-लत्ते
खटिया-बिस्तर
मेंड़-पगडण्डी
खेत-खलिहान
.....
.....
साफ़ करनी है गली, गाँव और चौपाल
और कुआँ।
पानी के उतर जाने के बाद
कहाँ से आयेगा पीने का पानी?
सवाल,
अपने पीछे जो छोड़ गया है
पिछले तीन हज़ार सालों का बाढ़ का पानी
इसका जवाब पता है सिर्फ उनकी मेहरारुओं को।
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
"पिछले तीन हज़ार सालों का बाढ़ का पानी
इसका जवाब पता है सिर्फ उनकी मेहरारुओं को"
बाढ़ के माध्यम से महिलाओं के कार्य-क्षेत्र और जिम्मेदारिओं का बहुत सटीक चित्रण साथ ही एक सवाल छोडती हुई की इतने पर भी हमारे समाज में महिलाओं का दर्जा क्या है(विशेषकर ग्रामीण इलाकों में)?. सुंदर कविता के लिए प्रशांत जी को बहुत बहुत बधाई?
कविता में जिस ताजगी, सादगी और मर्म स्पर्शता का आस्वादन करना चाहता हूँ वह आज पूरी हुई |
एक अत्यंत ही मनोहारी द्रश्य्पूर्ण एवं सर्वोपरि सोद्देश्य रचना को आपने सार्वजनिक किया इसके लिए पाठक मन का बहुत आभार स्वीकार करे |
आपके कर्म क्षेत्र के बारे में जान कर उत्सुकता है किभाविश्य में कोई सार्थक संवाद अवश्य होगा |
बहुत हर्ष के साथ बधाई !
Hindyugm ka dhanywaad!! Saath hee jury members ka bhi jinhone "Uunki Mehraruon" ke maayane ko sarthak aur samwet drishti se dekha. Priy Tarun aur Hriday Pushp tatha any paathako ka bhi hardik shukragujaar hu... iss kawita se panpe rishte ke ankur ko any kawitaon ke madhyam se aage badhataa rahunga, wayada.
मेरा दिल ही कहीं मरकज़ न हो इन आबशारों का.
कभी अरमानों पर पानी, कभी अरमान पानी में....
एक बहुत प्रभावी और सफ़ल कविता जो आपदा और औरतों के दायित्वों के अंतर्संबंध को ही नही बल्कि इसी बहाने सहज मगर अदम्य मानवीय जिजीविषा, आशावाद और सर्वाइवल के लिये आवश्यक अथक मेहनत की बात को बड़े सरल शब्दों मे और कुछ ही पंक्तियों मे रख देती है..दृष्टव्य है कि जिंदगी की रेल के पटरी से उतरने के बाद हर बार इन औरतों के कंधे ही उसे वापस पटरी पर लाने मे लग जाते हैं..मगर फिर भी कहीं उनका कोई नाम नही आता..
बेहतरीन कविता के लिये आभार
बहुत बढ़िया भाई थोड़ा हट कर एक अलग अंदाज में एक सुंदर कविता पढ़ने को मिली...धन्यवाद और बधाई!!
मेरे प्रयास को सराहने का हार्दिक शुक्रिया !!! खुशी हो की तीन हज़ार सालों से दबी आवाज को कोई पहचान मिले|
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