यूनिकवि प्रतियोगिता की चौथी कविता के रचयिता आवेश तिवारी हैं। पिछले एक दशक से उत्तर भारत के सोन-बिहार -झारखण्ड क्षेत्र में आदिवासी किसानों की बुनियादी समस्याओं, नक्सलवाद, विस्थापन,प्रदूषण और असंतुलित औद्योगीकरण की रिपोर्टिंग में सक्रिय आवेश का जन्म 29 दिसम्बर 1972 को वाराणसी में हुआ। कला में स्नातक तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय व तकनीकी शिक्षा बोर्ड उत्तर प्रदेश से विद्युत अभियांत्रिकी उपाधि ग्रहण कर चुके आवेश तिवारी क़रीब डेढ़ दशक से हिन्दी पत्रकारिता और लेखन में सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद से आदिवासी बच्चों के बेचे जाने, विश्व के सर्वाधिक प्राचीन जीवाश्मों की तस्करी, प्रदेश की मायावती सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खुलासों के अलावा, देश के बड़े बांधों की जर्जरता पर लिखी गयी रिपोर्ट चर्चित रहीं| कई ख़बरों पर आईबीएन-७,एनडीटीवी द्वारा ख़बरों की प्रस्तुति| विगत 2 वर्षों से लखनऊ और इलाहाबाद से प्रकाशित 'डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट' में ब्यूरो प्रमुख।
पुरस्कृत कविता-जब तुम आती हो
हर रोज जब रात का आँचल सिकुड़ता जाता है
उस वक़्त आती हो तुम
तुम्हारे आने की आहट में
शब्द पायलों से खनकने लगते हैं
खामोशी ग़जल बन जाती है
और नींद अपना रास्ता भटककर
थक हार के बैठ जाती है
जब तुम आती हो
मैं अपनी उम्र से बहुत छोटा हो जाता हूँ
देखता हूँ /तुम्हारी मुट्ठियों में कसी हैं मेरी अंगुलियाँ
और मैं/ तुम्हारे चेहरे पर अपनी नाक रगड़ते हुए
तुम्हारा बेटा बनने की कोशिश कर रहा हूँ
जब तुम आती हो
मैं /अपनी उम्र से बहुत बड़ा भी हो जाता हूँ
सिमेट लेता हूँ तुम्हें/अपनी मजबूत भुजाओं में
छिपा लेता हूँ सीने में
न देख सके कोई तुमको/न देख सको तुम किसी को
कभी-कभी जब तुम आती हो
मैं गुलमोहर का फूल भी बन जाता हूँ
और उस वक़्त वो सब कुछ भी महकने लगता है
जिनके अपने इर्द-गिर्द होने पर
मुझे दर्द होता है
जब तुम आती हो
मैं पत्थर भी बन जाता हूँ
चोट खाने के बाद भी मुस्कुराता हुआ/गुनगुनाता हुआ
सबको सजदे में खुद को झुकाता हुआ
तुम जब आती हो
मुझे फिर से सुबह का नहीं एक अदद रात का इन्तजार होता है
चीजों को बदलने और खुद को इंसान बनाये रखने के लिए
ये रात अब एक शर्त है
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
4 कविताप्रेमियों का कहना है :
शब्द, भाव और कविता अच्छी लगी तिवारी जी को शुभकामनाएं. दुबारा पढ़ा तो पाया कि
"जब तुम आती हो . . . . .
तुम्हारा बेटा बनने की कोशिश कर रहा हूँ
जब तुम आती हो . . . .
न देख सके कोई तुमको/न देख सको तुम किसी को"
पंक्तियाँ कहीं और इशारा करती हैं जबकि कविता कहीं और ये मेरी समझ है या नासमझी अन्य पाठक और तिवारी जी बताएँगे.
कविता बहुत ही खूबसूरत भाव और शब्दों से बँधी हुई है जो कविता के सौंदर्य में चार चाँद लगा देती है...बधाई हो आवेश जी!!
hridayji,
kaviman ke bhaav hain ,wo apni priytma ka saath chaahta hai premi ki tarah aur saranchan dena chahta hai bete ki tarah isme n samjhne jaisi kya baat hai
कविता अच्छी और भावपूर्ण है मैं पहले भी कह चुका हूँ लेकिन नीलम जी कविता के दो पैरा जिनकी मैं बात कर रहा हूँ हो सकता है आपसे कुछ और कह रहे हों, मुझे जो लगा मैंने वो लिखा है.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)