सामान्य समय की आभारी हूँ
जो ऐसे ही नयन कोर में आँसू दे जाता
दिखाकर इन्द्र धनुष के सामने
मरी हुई तितली के उड़ने का चित्र !
सांध्य बेला
दूर पनघट पर सुना जाता बेसुरा गीत
सुना जाता पंछी के गान में अपनापन
एहसास करा जाता पंखुरियों में
कुछ टूटने की असहज गोपनीयता
जो...........
मुझे वर्षा तक पहुंचा देने की धीरज दिलाती
और ले जाती स्वाधीनता संग्राम तक ...
बंद आँखों में
समालोचनाओं के बंद कमरे में
कोई न कोई मेरे अनुभवों को
पढ़ते होंगे, समझते होंगे,ग्रहण करते होंगे ....
सुनीता यादव
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत बढ़िया सुंदर शब्द एवं सुंदर भाव...धन्यवाद सुनीता जी!!
कवियित्री सुनीता यादव. यह नाम हमारे लिए नया नहीं. हमेशा से मैं सुनीता को एक बेबाक कवियित्री मानता रहा हूँ. बहुत सघन अनुभूतियों भरी रचनाएं लिख देना बल्कि कह देना, किसी के लिए भी एक असाधरण क्षमता का परिचायक है. संभवत: मैंने पहली कविता से लेकर अब तक कई कविताएं सुनीं और पढ़ी होंगी. हमेशा यही लगा कि रचना बोलती है. बिम्ब और प्रतीक भेद जाते हैं.
'आभार' इस रचना में भी ये बात साफ है.....
मुझे लगता है इस आभार में बड़े सवाल छिपे हैं जो संभवत: किसी अन्य कविता के माध्यम से सामने आएंगे.
मुझे वर्षा तक पहुंचा देने की धीरज दिलाती
और ले जाती स्वाधीनता संग्राम तक ...
बंद आँखों में
समालोचनाओं के बंद कमरे में
कोई न कोई मेरे अनुभवों को
पढ़ते होंगे, समझते होंगे,ग्रहण करते होंगे ....
वर्षा, संग्राम और बंद आखों में समालोचनाओं के बंद कमरे... एक सघन अनुभूति का क्रम है जो विवश करता है रचना और रचनाकार को समझने और जुड़ने से.
होमनिधि शर्मा
समय, संध्या बेला और वर्षा
........
कोई न कोई मेरे अनुभवों को
पढ़ते होंगे, समझते होंगे,ग्रहण करते होंगे ....
जिसे समझना है समझ ले
अच्छी रचना..
बधाई..
औत सभी पाठकों को..आपको युग्म को गणतंत्र दिवस कि बधाई..
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