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Tuesday, January 19, 2010

अगर दरारें बोल सकती


दिसंबर की यूनिप्रतियोगिता मे पंद्रहवें स्थान की कविता धर्मेंद्र सिंह की है। मेरठ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलॉजी मे सूचना तकनीकी के छात्र धर्मेंद्र की हिंद-युग्म मे यह प्रथम कविता है।


कविता: अगर दरारें बोल सकती

अगर दरारें बोल सकती
तो बताती मेरे दिल का हाल
कि किस तरह खून रिसता है इनसे
हर वक़्त, हर लम्हा, साल दर साल

कि जब दिल में दरारें पड़ती हैं
तो कैसे दरकते है रिश्ते
कैसे जज्बात अपना
गला घोट लेते हैं
कैसे संसार खाली लगता है
खुद अपना चेहरा सवाली लगता है

गर दरारें बोल सकती
तो बताती के कैसे तुमने
अपना वादा नही निभाया
तुम जो कभी बनते थे
हमारे साए
एक पल में जाने
कैसे हुए पराये

किन पत्थरों से
सवाल करते हो धर्मेन्द्र
कोई जवाब नही देगा
इन्हें तो ज़माने हो गए पथराए

गर दरारें बोल सकती
तो दर्द कुछ कम हो जाता
गर दिल की दरारें रो सकतीं
तो फ़ना हर ग़म हो जाता

गर दरारें लिख सकती
तो खोल देती
घाती के दिल का हर राज़
क्योंकि लेखनी झूठ नही बोलती
सच बोलने से नही आती बाज़

गर दरारें लिख सकती
तो मुझे कलम उठाना ना पड़ता
यु मजबूर होकर
आपके पास आना ना पड़ता

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

Anonymous का कहना है कि -

"कि जब दिल में दरारें पड़ती हैं
तो कैसे दरकते है रिश्ते
कैसे जज्बात अपना
गला घोट लेते हैं
कैसे संसार खाली लगता है
खुद अपना चेहरा सवाली लगता है"

गर दरारें लिख सकती
तो खोल देती
घाती के दिल का हर राज़
क्योंकि लेखनी झूठ नही बोलती
सच बोलने से नही आती बाज़"
धर्मेन्द्र जी बहुत सुंदर और भावनात्मक कविता के बधाई और शुभकामनाएं.

निर्मला कपिला का कहना है कि -

गर दरारें लिख सकती
तो मुझे कलम उठाना ना पड़ता
यु मजबूर होकर
आपके पास आना ना पड़ता
बहुत अच्छी रचना है धर्मेन्द्र जी को बधाई

प्रिया का कहना है कि -

Darare nahi boli to kya? Lekhini ne rach diya itihaas...good one

Vivek Kumar Pathak का कहना है कि -

जब काेइॅ अपना दिल के करीब हेाता है अाैर करीब रहकर दिल पर चेाट करता है ताे दिल में दरारें पड़ती हैं । कविता दिल से लिखी गइी है लेिकन कहीं कुछ कम है वेा क्या है जैसे ही दिल काे मालूम हाेगा, अवश्य िलखंुगा । अापकी लेखनी में दम है अाैर दिल में भ्ी, िलखते रहें हिंदी की सेवा करते रहें । दिल काे सुकून िमलता है ।

विवेक कुमार पाठक

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

वाह भाई बहुत खूब सारे कितनी बढ़िया बात कह गये आप अगर दरारें बोल पाती तो..आज दिल को तो हर कदम पर ठेस पहुँचती है .दरारें भी पड़ती है पर कोई जान नही पाता क्योंकि दरारें बोल नही पात..

सुंदर भाव..और एक खूबसूरत रचना..बधाई धर्मेन्द्र जी
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yogini dhumal का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
yogini dhumal का कहना है कि -

gar darare bol skti to hume or aapko kuch bolne ki jarurat hi nhi padti........
congratulations......
u wrote very true nad touching...
very nice keep it upppp...

Dharmendra Singh का कहना है कि -

mere sare pathkon ko main dhanyawaad dena chahunga ke mera prayash unhe pasand aaya
bahut bahut dhanyawaad
agar apka protshahan mujhe aise hi milta raha to mujhe yakeen hai ki man aur sundar aur acchi kavitayen likh paunga.
phir se bahut bahut dhanyawad

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