दोहा गाथा सनातन : ४५
सरस सवैया नित पढो
गण की आवृत्ति सात हों, दो गुरु रहें पदांत.
सरस सवैया नित पढो, 'सलिल' न तनिक रसांत..
विविध गणों में से किसी एक गण की सात बार आवृत्तियाँ तथा अंत में दो दीर्घ अक्षरों का प्रयोग कर सवैये की रचना की जाती है. विविध गणों के प्रयोग के आधार पर इस छन्द के कई प्रकार (भेद) हैं. यह एक वर्णिक छन्द है.
मत्तगयंद (मालती) सवैया
इस वर्णिक छंद के चार चरण होते हैं. हर चरण में सात भगण (S I I) के पश्चात् अंत में दो गुरु (S S) वर्ण होते हैं.
उदाहरण:
१.
धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैंसी बनी सिर सुन्दर चोटी.
खेलत-खात फिरें अँगना, पग पैंजनिया, कटी पीरि कछौटी.
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी.
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ली गयो माखन-रोटी.
२.
यौवन रूप त्रिया तन गोधन, भोग विनश्वर है जग भाई.
ज्यों चपला चमके नभ में, जिमि मंदर देखत जात बिलाई.
देव खगादि नरेन्द्र हरी मरते न बचावत कोई सहाई.
ज्यों मृग को हरि दौड़ दले, वन-रक्षक ताहि न कोई लखाई.
३.
मोर पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गले पहिरौंगी.
ओढ़ी पीताम्बर लै लकुटी, वन गोधन गजधन संग फिरौंगी.
भाव तो याहि कहो रसखान जो, तेरे कहे सब स्वांग करौंगी.
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी.
दुर्मिल (चन्द्रकला) सवैया
इस वर्णिक छंद के चार चरणों में से प्रत्येक में आठ सगण (I I S) और अंत में दो गुरु मिलाकर कुल २५ वर्ण होते हैं.
उदाहरण:
बरसा-बरसा कर प्रेम सुधा, वसुधा न सँवार सकी जिनको.
तरसा-तरसा कर वारि पिता, सु-रसा न सुधार सकी जिनको.
सविता-कर सी कविता छवि ले, जनता न पुकार सकी जिनको.
नव तार सितार बजा करके, नरता न दुलार सकी जिनको.
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut badhiya jnan bhari prstuti.
dhanywaad salil ji..
धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैंसी बनी सिर सुन्दर चोटी.
खेलत-खात फिरें अँगना, पग पैंजनिया, कटी पीरि कछौटी.
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी.
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ली गयो माखन-रोटी.
udaharn bhi bahut badiya badhiya hai badi asani se samjh me aa jata hai hindi sahity ki rachan me proyog karane ka bdhiya jnan prstuti....bahut bahut aabhar..
सरस सवैया - मत्तगयंद (मालती) और दुर्मिल(चन्द्रकला) सम्बन्धी साहित्यिक और ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आचार्य सलिल जी का हार्दिक आभार. दोनों में बारीक़ सा ही अंतर नजर आया, आचार्य जी से और जानकारी लेकर लिखने का प्रयास करूँगा.
----पर वास्तव में तो कवित्त की भंति...सवैया( वार्णिक) भी --वैदिक परम्परा का छंद है जो गण व मात्रा के बन्धन से मुक्त है ..
---मात्रिक सवैया में मात्रायें ही गिनी जाती हैं
----पर वास्तव में तो कवित्त की भंति...सवैया( वार्णिक) भी --वैदिक परम्परा का छंद है जो गण व मात्रा के बन्धन से मुक्त है ..
---मात्रिक सवैया में मात्रायें ही गिनी जाती हैं
मान्यवर , दुर्मिल छंद (चन्द्रकला ) का जो उदहारण आपने प्रस्तुत किया है उसमे २४ वर्ण है,
और दुर्मिल ( चन्द्रकला)छंद में यही होता है , मेरे अल्पज्ञान के अनुसार , कृपया मार्ग दर्शन करें जैसा की आपने २५ वर्ण लिखा है| ८ सगण का अर्थ है २४ वर्ण और आपके अनुसार ८ सगण + 2 गुरु मीन्स २४ + 2 = २६ वर्ण | कुछ स्पष्ट नहीं हुआ | कृपया इस बाबत भी मार्गदर्शन करें |
ज्ञान लोभी
sagar suman
मान्यवर , दुर्मिल छंद (चन्द्रकला ) का जो उदहारण आपने प्रस्तुत किया है उसमे २४ वर्ण है,
और दुर्मिल ( चन्द्रकला)छंद में यही होता है , मेरे अल्पज्ञान के अनुसार , कृपया मार्ग दर्शन करें जैसा की आपने २५ वर्ण लिखा है| ८ सगण का अर्थ है २४ वर्ण और आपके अनुसार ८ सगण + 2 गुरु मीन्स २४ + 2 = २६ वर्ण | कुछ स्पष्ट नहीं हुआ | कृपया इस बाबत भी मार्गदर्शन करें |
ज्ञान लोभी
sagar suman
पाँयिन नूपुर मुंजू बजैं, कटिं किंकीनि कै धनि की मधुराई|
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई|
माथे केरीट बडे दृग चंचल, मंद हँसी मुखचुन्द जुन्हाई|
जै जग- मुन्दिर दीपक सुंदर, श्रीब्रजदुलह ‘देव’ सहाई||
पाँयिन नूपुर मुंजू बजैं, कटिं किंकीनि कै धनि की मधुराई|
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई|
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