१-सफर में
जिन्दगी के सफर में
कब
कोई
किसी के साथ चला है
शलभ
भी तो
शमा पर अकेला जला है
2-हंसते रहो
जब तक
चलती है सांस
कुछ सिरफिरे
कह चले हैं
क्योंकि
जब भी रूका है
हंसी का दौर
काफिले
आंसुओं के बह चले हैं
3-चिन्ता
चिन्ता
गीली लकड़ी है
जलती नहीं
सुलगती है
या फिर
धुआँती है
चिन्ता
ऐसी है
जो जाती नहीं
सिर्फ
आती है
चिन्ता
पानी में भीगी
बाती है
चिन्ता
के चक्कर में भूले से भी
गर कोई आ जाता है
लाख भुलाना
चाहकर भी
चिन्ता को भूल नहीं पाता है
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
जब भी रूका है
हंसी का दौर
काफिले
आंसुओं के बह चले हैं
शाम सखा जी सुंदर रचना और संदेश के लिए बहुत-बहुत बधाई !
jindagi isi ka naam hai sangharsh har pal milenge hame hansate hue jeena chahiye..
badhiya kshanikaayen...dhanywaad shyamji
जीवन सन्देश देती छोटी और सुंदर रचनाएँ. आदरणीय मुझे "चिंता", "सफर" और "हंसते रहो" से कम पसंद आई. क्या इतनी काफी नहीं थी?
चिन्ता गीली लकड़ी है, जलती नहीं, सुलगती है
या फिर धुआँती है"
जीवन पर गहराई से चिंतन करते हुए अभिव्यक्त हुई है क्षणिकाएं। हंसी के बाद रोना,शमां पर अकेले जलना,चिंता चिता के समान है सब जानते है फिर भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है। सुंदर रचना के लिए बधाई।
किशोर कुमार जैन गुवाहाटी असम।
आस्था और आशावादिता से भरपूर स्वर इस कविता में मुखरित हुए हैं। सरस, रोचक रचना के लिए बधाई।
तीनो क्षणिकायें बहुत सुन्दर हैं सखा जी को बधाई
Shyam Ji, achha likha hai aapne ............... baaki kuchh baate karenge jab milenge. Main chahta hoon ki aap gajal par koi aisee book likhen jo aaj ke yuva gajalkaron ko margdarshan pradaan kar sake
जब तक
चलती है सांस
कुछ सिरफिरे
कह चले हैं
क्योंकि
जब भी रूका है
हंसी का दौर
काफिले
आंसुओं के बह चले हैं
kitna sunder likha hai aur bahut gahre bhav.
badhai
saader
rachana
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