प्रतियोगिता की अंतिम यानी 18वीं कविता के रचनाकार आशीष 'अक्स' का परिचय और चित्र अभी तक नहीं प्राप्त हुआ, लेकिन चूँकि आज महीने का आखिरी दिन है, इसलिए बिना विवरण के कविता प्रकाशित कर रहे हैं।
कविता- तनहा चलते जाना है
जो साथ चले थे रूठ चुके हैं, लश्कर पीछे छूट चुके हैं|
झूठे स्वप्न दिखने वाले, सब आईने टूट चुके हैं||
नाकामी से हिम्मत लेकर शूल कुचलते जाना है|
कोई हाथ न थामे तो भी तनहा चलते जाना है||
तेरे पथ में अमावास है, नहीं साथ आएगा कोई,
तेरे कदमों का पीछा करके मंजिल पायेगा कोई|
अभी इस वेदना में संग तेरे न गायेगा कोई,
मगर जब ईद आयेगी इन्हें दोहराएगा कोई||
तपी दोपहर नीम के नीचे मिट्टी को समझाती है,
छुपा हुआ है ढालने वाला हमको ढलते जाना है||
कोई हाथ न...
चिरागाँ मुफलिसी का घर जलाते हैं न देरी कर,
अँधेरे छत के ऊपर मुस्कुराते हैं न देरी कर |
ये कागज़ गैरतों को आजमाते हैं न देरी कर ,
किसी की आँख के आंसू बुलाते हैं न देरी कर ||
यहीं कहीं कल शाम क्षितिज पर सूरज ने पैगाम लिखा,
राह दिखाना हो औरों को तो खुद जलते जाना है||
कोई हाथ न...
लुटा जो अश्क पर उस पर मुहब्बत नाज़ करती है,
उसी के हौसलों से पीढियां परवाज़ करती है|
वो देख उस मोड़ पर फिर जिंदगी आगाज़ करती है,
कि अब तो तोड़ दे ये रस्सियाँ आवाज़ करती है||
बंजारों के साथ चल रही तितली जुगनू से बोली,
साथ मेरे चलता जा मुझको शहर बदलते जाना है||
कोई हाथ न...
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविता की पहली चार पंक्तियाँ पढ़कर अच्छा लगा - बहुत सुंदर पंक्तियाँ लेकिन जैसे-जैसे आगे पढ़ा बात कहाँ से कहाँ पहुँच गई - समझ से परे लगा - आशीष जी आपने प्रयास किया - शुभकामनाएं.
तेरे पथ में अमावास है, नहीं साथ आएगा कोई,
तेरे कदमों का पीछा करके मंजिल पायेगा कोई|
अभी इस वेदना में संग तेरे न गायेगा कोई,
मगर जब ईद आयेगी इन्हें दोहराएगा कोई||
तपी दोपहर नीम के नीचे मिट्टी को समझाती है,
छुपा हुआ है ढालने वाला हमको ढलते जाना है||
कोई हाथ न...
सुंदर बातों को कहा है आपने अपनी कविता के माध्यम से प्रवाह थोड़ा रुक रुक कर चलती है पर भाव बढ़िया लगे..बधाई आशीष जी
रबिन्द्र नाथ टैगोर की 'एकला चलो रे " से प्रभावित कविता ...आशीष जी , अच्छा लिखने का प्रयास किया है ...प्रेरनादायी कविता है ...बस अंतिम छह पंक्तियों में अच्छे शब्दों का इस्तेमाल किया है परन्तु तारतम्य कुछ टूट सा गया है ...
कविता की प्रथम चार पंक्तिया बहुत अच्छी लगी
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
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