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Monday, October 19, 2009

कुछ शून्य नहीं होता


वर्ष 2008 के वार्षिक पाठक सम्मान से सम्मानित और अगस्त 2008 माह की यूनिपाठिका दीपाली मिश्रा की एक कविता ग्यारहवें पायदान पर है। दीपाली इन दिनों दिल्ली में हैं और भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रही हैं।

पुरस्कृत कविता- सहारा

लहरों को किनारे की
जीवन को सहारे की
जरूरत होती है
एकांत भी विश्रांत नहीं होता
मौन की गूंज में भी
कुछ होता है श्रव्य
क्षितिज पर भी दिखाई पड़ते हैं
कई दृश्य
और
यात्रा अनंत, एकल व नीरस
होने पर भी साथ होते है,
अनेक सहचर
आकाश..
वो भी शून्य नहीं होता
उस वृहद् खोखले में है
अनेक नक्षत्र
घूम रहे है साथ साथ, यद्यपि अलग
मन.....
सहारे है सदैव से ही
पूर्व की स्मृतियों एवं
भविष्यत् कल्पनाओं के
"मैं"
ये तो सदैव सहारे रहा है
विचारों के, रिश्तों के, भावनाओं के
संगी के, संवेदनाओं के,
तथाकथित आशाओं के
ये तो सदैव सहारे रहा है,
फिर भी......
कुछ है निशांत अकेला
अन्दर जीता, वृद्धि करता,
रेशम के कीड़े सा
कमजोर और बेसहारा
शायद नहीं......
वो भी थी सदैव सहारे रहा है...
अध्यात्म के!!!

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

दीपाली जी की रचना बहुत सुन्दर है उन्हें बहुत बहुत बधाइ। अस्वस्थ रहने से कुछ दिन से आ नहीं पाई क्षमा चाहती हूँ आभार्

राकेश कौशिक का कहना है कि -

सार्थक और सराहनीय प्रयास है
शुभकामनाएं

श्याम जुनेजा का कहना है कि -

SHABD. BHAV AUR KATHY KE STAR PAR IS RACHNA KE POORVARDH MEIN KAVITA HAI.. LEKIN UTRARDH GADHY HAI

Shamikh Faraz का कहना है कि -

कविता में बढ़िया सोच छुपी है.

लहरों को किनारे की
जीवन को सहारे की
जरूरत होती है
एकांत भी विश्रांत नहीं होता
मौन की गूंज में भी
कुछ होता है श्रव्य
क्षितिज पर भी दिखाई पड़ते हैं
कई दृश्य
और
यात्रा अनंत, एकल व नीरस
होने पर भी साथ होते है,
अनेक सहचर
आकाश..
वो भी शून्य नहीं होता

manu का कहना है कि -

bahut sunder likhaa hai...

मनोज कुमार का कहना है कि -

इस रचना के लिए मेरे पास एक ही शब्द है – मर्मस्पर्शी।

rachana का कहना है कि -

kavita bahut achchhi hai .
saader
rachana

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