कुछ आश्वासनों को जन्म देता है
घर का मालिक टाँगता है
हर ज़रूरत को
पहली तारीख की नोक पर
रख ले धर्य
पहली तारीख पर ला दूँगा दवा
रात भर खाँसती
माँ से बेटे ने कहा
बाबा पेट बहुत दुखता है
चूरन भी अब काम नहीं करता है
बिटिया मिलने वाली है तनखाह
बड़े डाक्टर को दिखा दूँगा
दर्द से तड़पती बेटी से पिता ने कहा
सुनो जी फट गई है मेरी धोती
पड़ौसी की नियत भी है खोटी
धन्नो लगा ले धोती में गांठ
जैसे-तैसे बचा ले अपनी लाज
चिथड़े में लिपटी बीवी से पति ने कहा
पहली तारीख की पहली किरण
उम्मीद में जला चूल्हा,
उम्मीद की बनी चाय
उम्मीद का दमन पकड़े हर शय मुस्काए
उम्मीद के कपड़े पहन,
सजा उम्मीद की चप्पल पैर में
उत्साह भरा निकला वो घर से
लौटा तो प्रश्न भरी आँखें
चिपक गईं उससे
देखत को भेली बाटत को चुरकुना
गरीब की तनखाह का यही हाल है होना
कुछ पैसे बनिए को दिए
कुछ मकान के किराये में गए
दोस्तों का उधार चुकाया
जो बचे वो ये रहे
बेबसी पिघल के गालों पर लुढ़क गई
माँ, धन्नो और बिटिया ने
अपनी ज़रूरतों की गठरी बांध
दुछत्ती पर डाल दी
वे जानती हैं कि इन्हें करना होगा
पुनः पहली तारीख का इंतज़ार
कवयित्री- रचना श्रीवास्तव
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
रचना जी बहुत बढ़िया रचना समाज को आईना दिखती हुई और एक भरपूर संवेदना से निहित काव्य..
बहुत बढ़िया लगा ..बधाई
yeh savendanseelta hi hai jo doosre ki pristhitiyo ko mahsoos ker leti hai.
kaviyo ki samvedanseelta sachayee
likti rahegi.
badhayee
उम्मीद में जला चूल्हा,
उम्मीद की बनी चाय
उम्मीद का दमन पकड़े हर शय मुस्काए
उम्मीद के कपड़े पहन,
सजा उम्मीद की चप्पल पैर में
उत्साह भरा निकला वो घर से
रचना जी बहुत सुन्दरता के साथ आपने यह बात कहकर कविता को कवितामय बना दिया.
Aaj samaj ke gareeb tabke ke dard ko saamne lane wali aisi hi rachnaon ki jarurat hai.... agar aisi kavitayen aati rahin to samvedansheelta jinda rahegi, jisse ki in logon ke liye kuchh karne ka zazba bhi paida hoga... aapki is rachna ke aage nat mastak hoon.
Jai Hind
रचना जी ,
लघुता की कथा को आपने कुशलता से ब्यापक बना दिया .
लूट कर लाने और कूट कर खाने वाले सामान्य समुदाय पर एक संवेदनशील एवं सराहनीय रचना .
कमल किशोर सिंह , न्यू यार्क .
सुन्दर रचना.
"माँ से बेटे ने कहा
बाबा पेट बहुत दुखता है
चूरन भी अब काम नहीं करता है"
मार्मिक एहसासो से ओतप्रोत
देखत को भेली बांटत को चुरकुना
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माँ धन्नो और बिटिया ने अपनी जरूरतों की गठरी बांध दुछत्ती पर डाल दी
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इन पंक्तियों सेगरीब की उम्मीद और अभाव का मार्मिक चित्रण उभर कर सामने आता है।
--बधाई।
देखत को भेली बाटत को चुरकुना
गरीब की तनखाह का यही हाल है होना
ye muflisi shayad is desh ki niyati ban chuki hai..samvedasheel kavi ise gahre tak mahsoos karta hai par kiya kya jaye ? mere mitr kavi maharaj krishan Santoshi ne bahut pahle ek pankti sunai thee-"ANDHAPAN IS DESH MEIN KOI ROG NAHIN EK DARSHAN HAI"
Ghar mein AAG lagi hui jaise samasya hai JANSANKHYA KI.. kya chunav se pahle ya chunav ke bad ya media ya koi aur is bare mein kusak bhi raha hai ? soubhgya se aap logon ke pas ek plateform hai ek site banani hogi jis par sirf aur siraf is ek mudde par bat ho ek shor paida ho charon taraf ki bhai AAg lagi hui hai ..isi tarh se har samasya ko lekar ek site banai jani chahiye ..shayad shayad koi tuka teer ban jaye..
aapki rachna bahut sundar kasi hui aur bhavpoorn hai .. achh lag raha hai aap sabke beech apne ko pana ..
बेबसी पिघल के गालों पर लुढ़क गई
माँ, धन्नो और बिटिया ने
अपनी ज़रूरतों की गठरी बांध
दुछत्ती पर डाल दी
वे जानती हैं कि इन्हें करना होगा
पुनः पहली तारीख का इंतज़ार
दुखद स्थिति का बयान करती संवेदनशील कविता !
कविता पसंद करने के लिए और अपने विचार लिखने के लिए आप सभी का धन्यवाद .आप के विचारों का सदा ही मुझे इंतजार रहता है.आप के शब्द मेरे लिए बहुत खास होते हैं
.पुनः धन्यवाद
रचना
इतने दिन बाद हिंद युग्म देखा है आज...
कुछ कवितायें गजलें भी पढ़ी हैं...
काफी दिन बाद आपको पढ़ा...बहुत अच्छा लगा.....
अपनी ज़रूरतों की गठरी बांध
दुछत्ती पर डाल दी
वे जानती हैं कि इन्हें करना होगा
पुनः पहली तारीख का इंतज़ार
बहुत ही बेहतर अंत...
bahut praudh, samvedansheel aur yatharthvadi rachna hai ye Rachnaji ki. Kaviyatrii ke paas drtishti aur abhiyakti samarthya dono hain. Badhai Rachnaa ji. Nazar naa lage,maine jeevan bhar pahlii tariikh ka sukh-dukh bhooga hai. Ek pakh rah gaya,..jaise mukadme ki tareekhein padtii hain waise hi museebatoon ki bhi tariikh hotii hai pahlii tariikh...
Barambaar badhaii, iss sunder, saadi aur prabhavshalii kavitaa ke liye.
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