दीवाल की चिकनी सतह पर,
छिपकली के क्रियाकलाप;
मुझमें बड़ा कुतूहल जगाते हैं।
जिसे देख;
मेरे मन में
कई विचार आते हैं; जाते हैं।
चिंतन की इस प्रक्रिया में;
न जाने कब,
दीवाल कुर्सी में बदल जाती है,
और
छिपकली की जगह;
नेता की तस्वीर नज़र आती है।
कुर्सी हो या दीवाल;
चिपके रहना ही दोनों की नियति है,
पकड़ का छूटना;
दोनों के लिये पतन है, अवनति है।
सधी हुई चाल, सतर्क निगाहें,
एवं;
मौका पाते ही झपट्टा मार कर
शिकार कर लेना दोनों को भाता है,
और
खतरा देखते ही;
अपनी-अपनी पूँछ छोड़ कर भाग जाना;
दोनों को भली-भांति आता है।
दोनों में वही लिज़लिज़ापन,
वही ज़हरीलापन और वही काँइयाँपन है।
किसी छिपकली में नेतापन हो या न हो,
हर नेता में छिपकलीपन अवश्य है।
हर नेता में छिपकलीपन अवश्य है।
कवि- सत्यप्रसन्न
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
सही फरमाया आपने
इन में छिपकलीपन अवश्य है ............
छिपकली बनाते बनाते विधाता ने मज़ाक कर लिया
इन्हें आदमी बना दिया..........
====बधाई ! अच्छी कविता........
chhipkali ke madyam se jo vyangy ksa gya hai steek hai ... chhipkali aur bhi kai aayam kholti hai ... ghar par ek baap ..ek sas ... daftar mein boss ..lagbhag har samajik, arthik, darmik ya rajnaitik samband mein kahin na kahin ek chipkali ghat lgaye baithi hai... hum sab ke bhitar jo chhipkali virajman hai use bhi chinhit kia jana chahiye..kul milakar achhi rachna hai.. badai..
हली पंक्ति पढ़ते ही चौंक गए ...छिपकिली भी किसी में कुतूहल जगा सकती है ...यहाँ तो डर और घृणा से जान निकलने लगती है ...
मगर आगे की पंक्तियों में मूल भावः प्रकट हो गया ...
नेताओं में छिपकलिपन होता है ...होता है भाई होता है ...!!
kaafi dino baad kavita parne ko mili aapki.
hamesha ki tarah acchi hai.
वही ज़हरीलापन और वही काँइयाँपन है।
किसी छिपकली में नेतापन हो या न हो,
हर नेता में छिपकलीपन अवश्य है।
हर नेता में छिपकलीपन अवश्य है।
बहुत अच्छा लगा सत्यप्रसन्न ही.
Neta ji aur chipkali ka ye relationship to bahut bhaya hamko....jo chipkali ko pata chala ki aapne kis cheez se compare kiya hai..... wo to bechari sharmsaar ho jayegi :-)
क्या बात है सत्यप्रसन्न जी!!
आपने तो नेता के लिए एक नई उपमा ढूँढ निकाली है। सोलह आने सच कहा है आपने।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
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