संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
तू भी मुझको लूट, लूटकर चलता बन
दुनिया देखी चेहरा बदला
खुद से खुद का पहरा बदला
अंतस का मीठा स्वर बदला
शांतिमयी सुरभित घर बदला
समझ न पाया यह परिवर्तन, मैं कब, कौन हुआ?
संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
बाजारों में बिकने आया
जो न था वो दिखने आया
खुद की हर पहचान को खोया
हाँ, ये अंतर्मन तब रोया
कोमल उँगलियों से मैंने, जब अंगार छुआ
संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
जीना है यूँ कठपुतली बन
तन में केवल शेष हैं धड़कन
मैंने नाता खुद से तोडा
खुद को ही दुविधा में छोडा
लगता है कुछ अपनों की ही, मुझको लगी दुआ
संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
हाँ, ये अंतर्मन तब रोया
कोमल उँगलियों से मैंने, जब अंगार छुआ
संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
वाह अरुण जी !
संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
तू भी मुझको लूट, लूटकर चलता बन
तेल डिपो की आग अपने आप बुझने की आस लिए वहां खड़े तमाशबीन यही सोच रहे होंगे ...!
दुनिया देखी चेहरा बदला
खुद से खुद का पहरा बदला
अंतस का मीठा स्वर बदला
शांतिमयी सुरभित घर बदला
समझ न पाया यह परिवर्तन,
मैं कब, कौन हुआ?
संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
bahut hi sarthak rachna, hamare samay ke antartam bhavon ko shabd deti hui .. dil ko chhoone wali ,lekin aapke yahan ka sampadan!!
बहुत ही अच्छी रचना है. बहुत- बहुत बधाई.
"सत्यप्रसन्न"
मैं कब, कौन हुआ?
संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
एक सार्थक और शाश्वत प्रश्न..मगर उत्तर बहुत मुश्किल लगता है इसका..संवादों की परिधि से परे खड़ा मौन ही शायद बांच सके इसे..अद्भुत रचना!!!
इतना अच्छा लगा कि क्या कहूं, मेरे पास शब्द नहीं हैं, बस ... ...
शब्द तो शोर है तमाशा है,
भाव के सिंधु में बताशा है।
मर्म की बात होठ से न कहो,
मौन ही भावना की भाषा है।
आप बधाई के पात्र हैं।
बाजारों में बिकने आया
जो न था वो दिखने आया
खुद की हर पहचान को खोया
हाँ, ये अंतर्मन तब रोया
कोमल उँगलियों से मैंने, जब अंगार छुआ
संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
सुंदर अभिव्यक्ति...बढ़िया भाव..बेहतरीन कविता..बधाई!!!
har line mai ek alag baat hai per ha ye kah sakte hai ki aap ne jo likha kai wo sabse juda hai
पूरी कविता में शब्द बहुत अच्छे है और सोच भी उम्दा है.
बाजारों में बिकने आया
जो न था वो दिखने आया
खुद की हर पहचान को खोया
हाँ, ये अंतर्मन तब रोया
कोमल उँगलियों से मैंने, जब अंगार छुआ
संवादों के बीच खडा हूँ मौन हुआ
कविता पढ़ कर दंग रह गया..
एक एक शब्द लगा जैसे मेरे लिए लिख डाला है..
sundar abhivykti arun badhaaee
mn ki bat likhi is bar aapne.
shyam skha shyam
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