आज यहाँ पर भीड़ बड़ी है
जाने क्यों चुपचाप खड़ी है
इसके सर है उसकी पगड़ी
कैसी यह मनहूस घड़ी है
रिश्तों की ज़ंजीर तोड़ मत
तू भी उसकी एक कड़ी है
आपा-धापी मारा-मारी
तेरे-मेरे बीच खड़ी है
आईने से लगता है डर
उसमें तो तसवीर जड़ी है
अपने भी बेगाने-से हैं
सब दुनिया उजड़ी-उजड़ी है
कल तक लगा पराया था जो
आज उसी से आँख लड़ी है
'श्याम’ जऱा उसकी भी सुन ले
बस अपनी ही तुझको पड़ी है
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
यही दुनिया है कभी भी कुछ भी किसी से हो सकता है..बढ़िया रचना..बधाई!!!
एक अच्छी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
अपने भी बेगाने-से हैं
सब दुनिया उजड़ी-उजड़ी है
बहुत खूब. बेहतरीन गज़ल
सच की तस्वीर दिखाती सुंदर गजल।
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बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
सुंदर रचना ,गागर में सागर भर दिया .
आईने से लगता है डर
उसमें तो तसवीर जड़ी है
बहुत सुंदर ! यथार्थ से जुडी रचना के लिए बधाई!
वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।
बहुत सुन्दर श्याम जी
रिश्तों की ज़ंजीर तोड़ मत
तू भी उसकी एक कड़ी है
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