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Friday, August 28, 2009

कभी कभी


कभी कभी
जिंदगी कैसी तो टूट-फूट जाती है,
न जुड़ सकती है न मरम्मत हो सकती है,
बस बच्चों के किसी खिलोने की तरह -
चाभी कहीं, पहिया कहीं,
और इस टूटी फूटी जिंदगी का
न कोई मरकज़, न कोई धुरी

और कभी-कभी
कैसे तो ज़ख्म रिसते रहते हैं
रूह के हर पोर से;
और कैसा तो कभी बेशुमार दर्द भर जाता है !
इतना दर्द, इतना दर्द
जैसे पूरा वजूद ही दर्द बन जाए
इतना दर्द, इतना दर्द कि
दर्द की पोटली न बन्ध पाए
न ढोई जा पाए;
और कभी कभी
हम कैसे तो अलग - अलग
अपने अपने सय्यारों पर रहने लगते हैं
बिलकुल अजनबी
कोई किसी को नहीं समझता , पढ़ता -
जो परदेसी वो भी नहीं
जो अपने, बिलकुल अपने
वो भी नहीं
...........................
मरकज़- केंद्र
सय्यारे- ग्रह

--मोहम्मद अहसन

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

वाणी गीत का कहना है कि -

कभी कभी जिंदगी यूँ भी मिलती है ..बहुत अच्छी रचना..!!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

कभी कभी दुख इतना असह भी होता है कि उसकी अभिव्यक्ति ही नहीं हो पाति उसे कोई शब्द ही नहीं मिल पाता बहुत मार्मिक रचना है आभार्

Anonymous का कहना है कि -

दिल को छू देने वाली रचना, बहुत बहुत बधाई

विमल कुमार हेडा

Akhilesh का कहना है कि -

Ahsan sahib ne behtreen kavita post ki hai.
apne aas paas ki bhoomi par likhi kavita apni baat kah jati hai.

badhayee.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अहसान जी,

जिन्दगी के तमाम पहलू हैं .........कभी रंगों से भरी हुई, कभी अहसासों से खाली बदरंग, कभी चुलबुलापन तो कभी बेमकसद असहनीय अकेलापन लिए हुए. आपने यह रचना जिन्दगी की असहनीयता को दर्शित करते हुए बहुत अच्छे अंदाज़ में लिखी है. बधाई.

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

कभी कभी... जिंदगी कि अच्छी अभिव्यक्ति.
मार्मिक रचना!!!
बधाई!!!

Manju Gupta का कहना है कि -

दर्दभरी कविता ने यथार्थ का चित्रण किया है .बधाई

rachana का कहना है कि -

जीवन किन किन रंगों से गुजरता है क्या क्या पीडा होती है और जब पीडा होती है तो शब्द भी साथ छोड़ देते हैं आप ने बहुत खूब लिखा है
सादर
रचना

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

दर्द
पढ़ते-पढ़ते पलकों के कोरों में सिमट जाएगा
आह
ढरक जाएगा चुपके से
दृश्यमान हो जाएगा।
---जिन्दगी के दर्द को सफलता पूर्वक कागज में उकेरने के लिए
मेरी भी बधाई स्वीकार करें।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Shamikh Faraz का कहना है कि -

अहसान साहब. आपके कहने के अंदाज़ के क्या कहने. लाजवाब रहता है हर बार.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

अहसन साहब आपने बहुत ही खूबसूरत शुरुआत दी है नज़्म को. मुबारकबाद.

कभी कभी
जिंदगी कैसी तो टूट-फूट जाती है,
न जुड़ सकती है न मरम्मत हो सकती है,
बस बच्चों के किसी खिलोने की तरह -
चाभी कहीं, पहिया कहीं,
और इस टूटी फूटी जिंदगी का
न कोई मरकज़, न कोई धुरी

सदा का कहना है कि -

न जुड़ सकती है न मरम्मत हो सकती है,
बस बच्चों के किसी खिलोने की तरह -
चाभी कहीं, पहिया कही

बहुत ही गहरे शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति, आभार्

mohammad ahsan का कहना है कि -

सामान्यतयः इस प्रकार की dukh vishaad wali kavitaaen paathkon dwara kam pasand की jaati hain, phir bhi yeh kawita saraahi gayi jis ke liye main sabhi ka aabhaar prakat karta huun.
mohammad ahsan

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