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Monday, August 17, 2009

आज भी है याद मुझको बात पहली, प्यार पहला


प्रतियोगिता की दसवीं कविता के लेखक डॉ॰ भूपेन्द्र वर्तमान में शा० टी० आर० एस० शोध केंद्र, रीवा में हिंदी के प्रोफेसर हैं। लेखन में कवितायें, समालोचना, कहानियां, रिपोर्ताज आदि पर हाथ आजमाते हैं। अकादमिक विषयों पर इनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हैं। अनुवाद इनकी रूचि का कार्य है, कुछ प्रकाशित कृतियों में इनका योगदान रहा है।

पुरस्कृत कविता- दिन बहुत बीते, नहीं अब याद मुझको गीत पहला

रागिनी सी उम्र थी और प्यार था संतूर सा,
अश्रु कण भी नहीं थे और दर्द भी था दूर सा,
जी रहा था पुष्प सा, मधुगंध सी थीं तुम प्रिये,
रूप की इस धूप में हर हर शख़्स था मजबूर सा,
आज भी है याद मुझको बात पहली, प्यार पहला..

क्या करूं संघर्ष ही हरदम रहा है साथ मेरे,
वक़्त की तन्हाइयां हों या उजालों के सवेरे,
हारने की, जीतने की बात मै करता नहीं हूँ,
लग रहा है छल रहे हैं उम्र को मन के अँधेरे,
चाहता हूँ अब छोड़ ही दूं प्रीत का अधिकार पहला...

मैं थका हूँ पर अभी भी जूझने की चाह बाकी,
उम्र भर चलता रहा हूँ पर अभी भी राह बाकी,
ताप है मेरी शिराओं में कि अब भी शेष है रण,
मुस्कराहट है लबों पर, है हृदय में आह बाकी,
कर रहा अंतिम पलों में हार का स्वीकार पहला...


प्रथम चरण मिला स्थान- बारहवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- दसवाँ


पुरस्कार और सम्मान- सुशील कुमार की ओर से इनके पहले कविता-संग्रह 'कितनी रात उन घावों को सहा है' की एक प्रति।

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

प्रेम की मर्मस्पशी रचना केलिए बधाई .

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

प्रेम से ओतप्रोत बेहतरीन अभिव्यक्ति..

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

बहुत ही मधुर .......... अक्सर हिन्दयुग्म पर ऐसी कवितायेँ कम ही देखने को मिलती हैं छंद का पालन.. अद्भुत शब्द चयन.... बढ़िया प्रवाह एवं विषय...

चाहता हूँ अब छोड़ ही दूं प्रीत का अधिकार पहला...

इस मिसरे में दो मात्राएँ अधिक हैं बाकी सब बहुत ही अच्छा लगा... पढ़कर आनंद आ गया

सादर

अरुण अद्भुत

Shamikh Faraz का कहना है कि -

तीन stanza में बहुत ही सुन्दर कविता. लाजवाब. अपनी सोच को बहुत ही अच्छे शब्दों में पिरोया है.

रागिनी सी उम्र थी और प्यार था संतूर सा,
अश्रु कण भी नहीं थे और दर्द भी था दूर सा,
जी रहा था पुष्प सा, मधुगंध सी थीं तुम प्रिये,
रूप की इस धूप में हर हर शख़्स था मजबूर सा,
आज भी है याद मुझको बात पहली, प्यार पहला..

सदा का कहना है कि -

क्या करूं संघर्ष ही हरदम रहा है साथ मेरे,
वक़्त की तन्हाइयां हों या उजालों के सवेरे,
हारने की, जीतने की बात मै करता नहीं हूँ,
लग रहा है छल रहे हैं उम्र को मन के अँधेरे

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति आभार्

Akhilesh का कहना है कि -

रागिनी सी उम्र थी और प्यार था संतूर सा,
अश्रु कण भी नहीं थे और दर्द भी था दूर सा,

behtareen kavita hai saab.
aasi kavitao se hi hindi ke paathak phi se kavita ki taraf lautenge.

saadhubaad.

gazalkbahane का कहना है कि -

सरस-भावभीनी रचना बधाई
श्याम सखा श्याम

Atul Kumar का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर रचना...

Unknown का कहना है कि -

best!!!

Jalaj का कहना है कि -

रूप की इस धूप में हर हर शख़्स था मजबूर सा,
आज भी है याद मुझको बात पहली, प्यार पहला..

काफी अच्छी पंक्तिया है ,इसकी तो सच में प्रशंसा की जानी चाहिए

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