सब चीख रहे थे
सूखा-सूखा
और वे
माप रहे थे - वर्षा का पानी !
उनके सलाहकार
एअरकंडीशन कमरों से निकलकर
खेतों की मेढ़ों तक गए
मेंढक से पूछा
झींगुर से पूछा
मोरों से पूछा
काले कौओं से भी पूछा
नहीं पूछा
तो सिर्फ
पथरीली जमीन पर
पसीना चुहचुहाते
फावड़ा उठाए घूम रहे
उस भूखे नंगे किसान से
जो अपनी किस्मत पर रो रहा था।
गहन जांच के पश्चात रिपोर्ट दी-
वर्षामापी यंत्र सहायक की आख्या,
अखबारों की रिपोर्ट,
और छत पर रक्खे
पानी की टंकी पर मडराते
कौओं के झुण्ड को देखकर
ऐसा प्रतीत होता है
कि यह क्षेत्र सूखा ग्रस्त है।
विद्वान सलाहकारों की रिपोर्ट के आधार पर
सम्पूर्ण क्षेत्र को सूखा-ग्रस्त घोषित कर दिया गया।
राहत की घोषणा हुई
उनके सिपहसलार
राहत की राशि लेकर
फिर एक बार
खेतों की मेड़ों तक गए
मेंढक को दिया
झींगुर को दिया
मोरों को दिया
काले कौओं को भी दिया
नहीं दिया
तो सिर्फ
उस भूखे-नंगे किसान को नहीं दिया
जो अब चीख रहा था
यह सूखा नहीं अकाल है।
--देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
सरकारी तन्त्र को आईना दिखाती हुई
सुन्दर कविता ! बधाई देवेन्द्र जी !
सुंदर सामयिक रचना..
आज जहाँ सूखा हर जगह व्याप्त हो चुकी है..किसान जिंदा मर रहे है
वहाँ सरकार के कदम और राहत कार्यो को तोलति संदेश भरी कविता..
आभार
सब चीख रहे थे
सूखा-सूखा
और वे
माप रहे थे - वर्षा का पानी
एक अच्छी कविता.
teek thaak kavita.
सूखे पर व्यंग्य बढिया है .बधाई .
बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है आपने सूखे को सत्यता के बेहद निकट, बधाई ।
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