प्रतियोगिता की 15वीं कविता की रचयिता दीपाली पन्त तिवारी "दिशा" बैंगलौर में रहती हैं। जब ये बारहवीं कक्षा में पढ़ती थीं तभी से कविता लेखन का शौक लगा। खेलकूद, संगीत, नृत्य, तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने की रूचि भी छुटपन से है। शादी से पूर्व शिक्षण कार्य भी किया और इलैक्ट्रोनिक मीडिया से भी जुडी रहीं। इन्होंने "रेडियो प्रसारण तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार" का कोर्स किया है। आकाशवाणी रामपुर में रेडियो कलाकार के रूप में कार्य किया है। कई रेडियो वार्ताओं में भाग लिया है। बरेली के चेनल वी एम दर्पण में न्यूज रिपोर्टर, न्यूज एंकर तथा एंकर के रूप में कार्य किया है। कई स्टोरीज में तथा विज्ञापनों में आवाज़ दी है। और आजकल इंटरनेट पर खूब सक्रिय हैं।
रचना- बूँद और नारी
फूल पर गिरे बूँद, तो ओस बन जाती है
गर गिरे सीप पर तो मोती कहलाती है
आँखों से गिरती है, वो आंसू बनकर
खो देती है अस्तित्व, पानी में मिलकर
लेती है नित नया आकार
लेकिन देती है सबको आधार
कहती है कई बातें अनकही
बूँद बिना पानी भी कुछ नहीं
बूँद की तरह नारी भी कई रूप बदलती है
कभी माँ, बेटी, बहिन तो कभी पत्नी बनती है
करती हैं दोनों ही हर रूप में त्याग अपना
ताकि जन्म ले सके, फिर एक नया सपना
प्रथम चरण मिला स्थान- उन्नतीसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- पंद्रहवाँ
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
हिन्दयुग्म का आभार मेरे शब्दों को एक दिशा देने के लिये
बहुत बहुत धन्यवाद
वाह!!! दिशाजी! वाह!बूंद को नारी के रुप से क्या मिलाया है। सुंदर रचना!!!!
बहुत सुन्दर एक बून्द नारी का अस्तित्व तभी तो वो् संवेदनाओं का सागर बनाती है दिशा जी बहुत बहुत बधाई और हिन्द युग्म का आभार्
बूँद की तरह नारी भी कई रूप बदलती है
कभी माँ, बेटी, बहिन तो कभी पत्नी बनती है
करती हैं दोनों ही हर रूप में त्याग अपना
sachhi bat achhi baat ..........
बहुत ही खूबसूरत सोच आपकी. बहुत ही सुन्दर कविता. आपने बहुत कम शब्दों में नारी को बूँद से बहुत आसानी से जोड़ दिया. अल्फाज़ भी अच्छे इस्तेमाल किये हैं; बहुत ही छोटी सी कविता में एक बड़ी बात कह दी. मुबारकबाद.
बूँद की तरह नारी भी कई रूप बदलती है
कभी माँ, बेटी, बहिन तो कभी पत्नी बनती है
करती हैं दोनों ही हर रूप में त्याग अपना
ताकि जन्म ले सके, फिर एक नया सपना
आज आपने बूँद पर एक कविता पढ़वाई तो मुझे भी बूँद पर एक कविता याद आ गई अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिओध जी की.
लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर ।
नारी का स्वभाव ही ऐसा है खुद को मिटा देना, अपने अपनों के लिए.
बहुत सुन्दर रचना.बधाई
उत्साह वर्धन के लिये सभी का धन्यवाद
बूँद की तरह नारी भी कई रूप बदलती है
कभी माँ, बेटी, बहिन तो कभी पत्नी बनती है
करती हैं दोनों ही हर रूप में त्याग अपना
ताकि जन्म ले सके, फिर एक नया सपना
Simply amazing !!!!
मन को छू लेनेवाली रचना है .बधाई .
मन को छू लेनेवाली रचना है .बधाई .
करती हैं दोनों ही हर रूप में त्याग अपना
ताकि जन्म ले सके, फिर एक नया सपना
आपको पढ़ना अच्छा लगा..
बूँद बिना पानी भी कुछ नहीं
बूँद की तरह नारी भी कई रूप बदलती है
कभी माँ, बेटी, बहिन तो कभी पत्नी बनती है
बहुत सुन्दर एक बूंद की व्याख्या के रूप में आपकी यह रचना अतिउत्तम जिसके लिये आपको बधाई ।
बहुत सुन्दर कविता.
दिशाजी बहुत बहुत बधाई.
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